अमेरिका और तुर्की जैसे शक्तिशाली राष्ट्र और विश्व आतंकवाद की चुनौती

आतंकवाद आज विश्व के समक्ष एक सबसे बड़ा और जटिल संकट बन चुका है। यह न केवल निर्दोष लोगों के जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि वैश्विक स्थिरता, आर्थिक प्रगति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को भी गहराई से प्रभावित करता है। अमेरिका, तुर्की और पाकिस्तान जैसे राष्ट्र इस संकट से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जूझ रहे हैं। भारत, जो स्वयं आतंकवाद का दीर्घकालीन शिकार रहा है, इस वैश्विक विमर्श का एक महत्वपूर्ण पक्ष बन चुका है। इस लेख में हम अमेरिका, तुर्की और पाकिस्तान की आतंकवाद-रोधी नीतियों के विश्लेषण के साथ-साथ भारत के अनुभवों और रणनीतियों को भी जोड़कर देखेंगे।
1. अमेरिका और आतंकवाद 1.1 9/11 के बाद की अमेरिकी नीति: 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले ने अमेरिका को आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक और आक्रामक नीति अपनाने पर मजबूर किया। इसके पश्चात "ग्लोबल वॉर ऑन टेरर" की अवधारणा सामने आई और अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में सैन्य हस्तक्षेप किया। 1.2 सैन्य और तकनीकी रणनीति: अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ आधुनिक तकनीक जैसे ड्रोन स्ट्राइक, साइबर सर्विलांस, और विशेष बलों के अभियान का प्रयोग किया। CIA और NSA जैसे खुफिया एजेंसियों को नई शक्तियाँ दी गईं। 1.3 आलोचनाएँ: हालाँकि अमेरिका ने कई आतंकवादी नेटवर्क को समाप्त करने में सफलता पाई, परंतु उसकी नीतियों की आलोचना भी हुई, विशेष रूप से नागरिकों की मौत और स्थिर सरकारों के पतन के कारण। अफगानिस्तान से वापसी के बाद अमेरिका की भूमिका पर पुनर्विचार की आवश्यकता भी महसूस की गई। 2. तुर्की और आतंकवाद 2.1 घरेलू आतंकवाद और कुर्द समस्या: तुर्की वर्षों से PKK (कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी) के आतंक से जूझता आ रहा है। यह संगठन तुर्की की एकता के लिए गंभीर खतरा माना जाता है। 2.2 सीमावर्ती चुनौतियाँ: सीरिया और इराक की सीमाओं से लगे होने के कारण तुर्की पर आतंकवादी गतिविधियों का सीधा प्रभाव पड़ता है। ISIS और अन्य जिहादी गुटों ने तुर्की में हमले किए हैं। 2.3 रणनीतिक जटिलताएँ: तुर्की पर कई बार यह आरोप लगे हैं कि वह कुछ इस्लामी उग्रवादी गुटों को सीरिया में समर्थन देता है, विशेष रूप से जब वे तुर्की के शत्रु कुर्द गुटों से लड़ते हैं। इससे उसकी छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 3. पाकिस्तान और आतंकवाद 3.1 आतंकवाद का पालक या पीड़ित? पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद के दोहरे स्वरूप के लिए आलोचना का केंद्र रहा है। एक ओर वह आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का दावा करता है, दूसरी ओर भारत सहित विश्व समुदाय उस पर कुछ संगठनों को प्रायोजित करने का आरोप लगाता है। 3.2 पाकिस्तानी भूमि से भारत पर हमले: 26/11 मुंबई हमला, पठानकोट एयरबेस हमला, उरी और पुलवामा जैसे हमले पाकिस्तान की सरज़मीं से संचालित आतंकवादी गुटों द्वारा किए गए, जिनमें जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे गुट शामिल हैं। भारत के लिए पाकिस्तान आतंकवाद का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है। 3.3 FATF और अंतरराष्ट्रीय दबाव: Financial Action Task Force (FATF) ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालकर उसके ऊपर आतंकी फंडिंग रोकने का दबाव बनाया है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद का संरक्षक सिद्ध करने के लिए लगातार प्रयास किए हैं। 3.4 आतंरिक संघर्ष और चरमपंथ: खुद पाकिस्तान भी आतंरिक आतंकवाद और धार्मिक चरमपंथ से पीड़ित रहा है — जैसे TTP (तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) और बलूच विद्रोही। इससे उसकी घरेलू स्थिरता भी प्रभावित हुई है। 4. भारत: एक दीर्घकालिक पीड़ित राष्ट्र 4.1 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है — पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद, जम्मू-कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंक, उत्तर-पूर्वी राज्यों में अलगाववाद और माओवादी हिंसा। 4.2 26/11 और उसका प्रभाव: 2008 में मुंबई पर हुए आतंकी हमले ने भारत की आंतरिक सुरक्षा प्रणाली पर गहरा प्रश्नचिन्ह लगाया। इसके पश्चात भारत ने अपनी खुफिया प्रणाली को सशक्त किया और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की स्थापना की। 4.3 आतंकवाद के विरुद्ध भारत की रणनीति: भारत सैन्य, कूटनीतिक और वैधानिक उपायों से आतंकवाद से निपटने का प्रयास करता है: सीमा सुरक्षा बल और RAW जैसी एजेंसियों की सक्रिय भूमिका आतंकवाद-रोधी कानून जैसे UAPA का प्रयोग संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के आतंकी समर्थन को उजागर करना 5. वैश्विक सहयोग की आवश्यकता 5.1 अंतरराष्ट्रीय सहयोग का महत्व: आतंकवाद की कोई सीमा नहीं होती। अमेरिका, तुर्की, पाकिस्तान और भारत जैसे देशों को आतंकवाद के विरुद्ध सूचना साझा करना, वित्तीय नेटवर्क को बाधित करना, और संयुक्त सैन्य अभ्यास करना आवश्यक है। 5.2 अमेरिका-भारत सहयोग: हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ मजबूत सहयोग स्थापित किया है। दोनों देशों के बीच सूचना साझा करने, आतंकवादियों को ब्लैकलिस्ट करने, और तकनीकी सहयोग के कई समझौते हुए हैं। 5.3 भारत-तुर्की संबंध और आतंकवाद: भारत और तुर्की के संबंध कुछ वर्षों से तनावपूर्ण रहे हैं, विशेष रूप से जब तुर्की ने कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थन किया। परंतु वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध सहयोग के लिए इन मतभेदों को पीछे छोड़ना होगा। 5.4 पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय विश्वास की कमी: पाकिस्तान को यदि वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध सच्चा सहभागी बनना है, तो उसे पारदर्शिता, आतंकी संगठनों के खिलाफ कठोर कार्रवाई, और भारत जैसे पड़ोसी देशों के साथ विश्वास बहाली करनी होगी। 6. मीडिया, साइबर आतंक और सोशल मीडिया की भूमिका 6.1 सूचना युद्ध: आतंकवादी संगठन आज सोशल मीडिया और इंटरनेट का उपयोग करके युवाओं का ब्रेनवॉश करते हैं। भारत, अमेरिका और तुर्की सभी को इस साइबर युद्ध के प्रति सजग रहना होगा। पाकिस्तान के कुछ कट्टरपंथी गुट भी इसका उपयोग करते हैं। 6.2 फेक न्यूज और नफरत फैलाना: सोशल मीडिया पर गलत जानकारी और नफरत फैलाने वाले संदेश आतंकवाद के लिए उपजाऊ जमीन बनाते हैं। भारत में इसके कई उदाहरण देखने को मिले हैं। 7. भारत की नीति: सख्ती और समावेशन दोनों 7.1 कड़ी कार्रवाई: भारत ने आतंकवाद के खिलाफ 'सर्जिकल स्ट्राइक' जैसी कार्रवाइयाँ कर यह संदेश दिया कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है। 7.2 समावेशी विकास: भारत यह भी मानता है कि आतंकवाद का मुकाबला केवल हथियारों से नहीं किया जा सकता। सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक समावेशन से भी आतंक की जड़ों को काटा जा सकता है। 8. निष्कर्ष: एक साझा भविष्य की ओर भारत, अमेरिका, तुर्की और पाकिस्तान जैसे राष्ट्रों को अपने-अपने दृष्टिकोणों और रणनीतियों के बीच एक साझा मंच पर आना होगा। आतंकवाद केवल एक देश या एक क्षेत्र की समस्या नहीं है — यह एक वैश्विक संकट है, जिसका उत्तर भी वैश्विक सहयोग और समझदारी में ही निहित है। भारत, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और शांति की परंपरा में विश्वास करता है, इस लड़ाई में एक संतुलित और नैतिक नेतृत्व प्रदान कर सकता है। आज आवश्यकता है एक ऐसी वैश्विक रणनीति की जो केवल आतंकवादी को खत्म करने तक सीमित न हो, बल्कि आतंकवाद की मानसिकता, वित्तीय स्रोतों और सामाजिक परिस्थितियों को भी समाप्त कर सके। अमेरिका की सैन्य शक्ति, तुर्की की भू-राजनीतिक स्थिति, पाकिस्तान की भूमिका की पारदर्शिता और भारत की लोकतांत्रिक व नैतिक शक्ति मिलकर इस दिशा में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

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