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ईरान और इज़राइल के बीच हालिया संघर्ष ने समूचे एशिया को एक नए संकट के मुहाने पर ला खड़ा किया है। जहां एक ओर यह टकराव धार्मिक, सामरिक और राजनीतिक तनावों से उत्पन्न है, वहीं दूसरी ओर इसकी आँच ऊर्जा आपूर्ति, व्यापारिक स्थिरता और क्षेत्रीय सुरक्षा पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। ऐसे समय में भारत की भूमिका एक तटस्थ मध्यस्थ और संभावित शांति-निर्माता के रूप में वैश्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो जाती है।
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🔥 युद्ध की पृष्ठभूमि:
13 June: Israel launches "Operation Rising Lion"
→ 14–20 June: Iranian countermeasures, regional escalation
→ 21 June onward: Global calls for ceasefire
→ India engages diplomatically with both nations
13 जून 2025 को इज़राइल द्वारा ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों और सैन्य ठिकानों पर किए गए हमले ने दशकों पुरानी कटुता को एक बार फिर उग्र रूप दे दिया है। इसका प्रभाव न केवल पश्चिम एशिया तक सीमित रहा, बल्कि पूरी एशिया की भूराजनीतिक संरचना को हिला कर रख दिया है।
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🇮🇳 भारत: शांति का संभावित वाहक
भारत की विदेश नीति की सबसे बड़ी विशेषता रही है — संतुलन और संवाद। भारत इज़राइल का रणनीतिक साझेदार है और साथ ही ईरान के साथ उसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और ऊर्जा संबंधों का तानाबाना भी गहराई से जुड़ा है। ऐसे में भारत यदि आगे बढ़कर एक शांतिदूत की भूमिका निभाता है, तो उसे दोनों पक्षों से नैतिक समर्थन मिलने की संभावना प्रबल है।
Iran ←←←← INDIA →→→→ Israel
- Oil imports Neutral stance - Defense ties
- Chabahar Port Non-aligned policy - Agri-tech & innovation
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भारत क्यों निभा सकता है अहम भूमिका?
1. गुटनिरपेक्षता की साख:
भारत की पारंपरिक गुटनिरपेक्ष नीति उसे निष्पक्ष मध्यस्थ बनाने में मदद करती है।
2. ऊर्जा निर्भरता:
भारत की ऊर्जा आपूर्ति ईरान और खाड़ी देशों पर निर्भर है — इसलिए युद्ध का सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।
3. प्रभावशाली वैश्विक मंचों तक पहुंच:
भारत G20, ब्रिक्स, SCO और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर अपनी आवाज प्रभावी ढंग से रख सकता है।
4. लोकनीति और मानवता का पक्षधर:
भारत “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना से प्रेरित होकर हमेशा सह-अस्तित्व और शांति का संदेश देता रहा है।
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भारत क्या कर सकता है?
राजनयिक प्रयास: भारत को दोनों देशों के नेताओं से बात कर, "बैकचैनल डिप्लोमेसी" के ज़रिये संवाद पुनः स्थापित करना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र में सक्रिय पहल: भारत को युद्ध विराम और मानवीय राहत के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत करना चाहिए।
एशियाई शांति मंच की स्थापना: भारत एक एशियाई शांति गठबंधन की पहल कर सकता है जिसमें चीन, रूस, तुर्की, सऊदी अरब आदि को जोड़ा जाए।
मानवीय सहयोग: युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री, दवाइयाँ और शरणार्थियों की मदद भेजकर भारत विश्व पटल पर अपनी संवेदनशीलता दिखा सकता है।
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निष्कर्ष:
भारत के पास यह अवसर है कि वह केवल एक मूक दर्शक न बने, बल्कि शांति का पुरोधा बनकर उभरे। जब दुनिया युद्ध की लपटों में झुलस रही है, तब भारत को चाहिए कि वह अपने नैतिक नेतृत्व से एशिया को एक नई दिशा दे — जहां संवाद हो, समावेशिता हो और स्थायित्व हो।
शांति की खोज हमेशा संवाद से शुरू होती है — और भारत वह संवाद शुरू करने की सबसे उपयुक्त जगह पर खड़ा है।
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🖋️ – सम्पादक
‘समय संवाद’
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