दोआब के रूप में भारत की विदेश नीति: रूस और अमेरिका के बीच संतुलन
प्रस्तावना
भारत आज एक ऐसी भू-राजनीतिक स्थिति में है जहाँ उसे विश्व की दो बड़ी शक्तियों — अमेरिका और रूस — के बीच संतुलन बनाए रखना पड़ रहा है। इस स्थिति को प्रतीकात्मक रूप से “दोआब” कहा जा सकता है — जैसे गंगा और यमुना के बीच की भूमि, जो उपजाऊ तो होती है, लेकिन दोनों धाराओं की दिशा बदलने पर सबसे पहले प्रभावित भी होती है। भारत की विदेश नीति इसी प्रकार दो महाशक्तियों के बीच स्थित है — एक ओर अमेरिका की नव-पूंजीवादी धारा, और दूसरी ओर रूस की पारंपरिक सामरिक मित्रता।
“दोआब” का प्रतीक और उसका कूटनीतिक अर्थ
- भौगोलिक रूप में दोआब: दो नदियों के बीच की ज़मीन होती है, जो दोनों के योगदान से समृद्ध होती है।
- राजनीतिक रूप में: भारत आज अमेरिका और रूस — दोनों के साथ गहरे संबंध रखता है।
- यह स्थिति भारत को लाभ भी देती है, परंतु जोखिम भी उठाने पड़ते हैं।
- यह संतुलन गुटनिरपेक्षता की परंपरा का आधुनिक संस्करण है, जिसे भारत अब “रणनीतिक स्वायत्तता” कहता है।
भारत-रूस संबंध: परंपरा और सामरिक गहराई
इतिहास की दृष्टि से
- 1950 के दशक से ही सोवियत संघ (अब रूस) भारत का स्थायी सहयोगी रहा है।
- 1971 भारत-पाक युद्ध में रूस ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के पक्ष में वीटो का प्रयोग किया।
- रक्षा क्षेत्र में 70% से अधिक भारत की सैन्य सामग्री रूस से आती रही है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य
- रूस से भारत S-400 मिसाइल प्रणाली, ब्रह्मोस मिसाइल, और परमाणु पनडुब्बियों जैसे उच्चस्तरीय हथियार प्राप्त कर रहा है।
- यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने रूस के खिलाफ UN प्रस्तावों से दूरी बनाकर तटस्थ रुख अपनाया।
- भारत ने रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदकर अपने ऊर्जा संकट को नियंत्रित किया।
भारत-अमेरिका संबंध: नई ऊँचाइयों की ओर
इतिहास और प्रारंभिक अविश्वास
- 1947–1990: अमेरिका ने भारत की गुटनिरपेक्षता और समाजवादी झुकाव पर संदेह किया।
- 1971 युद्ध में अमेरिका ने भारत की आलोचना की और पाकिस्तान का पक्ष लिया।
- 1998 परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए।
संबंधों में परिवर्तन
- 2005: सिविल न्यूक्लियर डील — एक टर्निंग पॉइंट।
- 2016: भारत को अमेरिका ने “मेजर डिफेंस पार्टनर” का दर्जा दिया।
- वर्तमान में QUAD (Japan, US, India, Australia) में भारत की भागीदारी से चीन के विरुद्ध रणनीतिक सहयोग बढ़ा।
वाणिज्यिक और तकनीकी सहयोग
- अमेरिका अब भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है (~200 अरब डॉलर व्यापार)।
- चिप मैन्युफैक्चरिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग।
लाभ और हानि का तुलनात्मक विश्लेषण
लाभ (Benefits)
क्षेत्र | विवरण |
---|---|
सुरक्षा | रूस से पारंपरिक सैन्य शक्ति, अमेरिका से आधुनिक युद्ध तकनीक |
ऊर्जा | रूस से सस्ता कच्चा तेल, अमेरिका से हरित ऊर्जा सहयोग |
राजनयिक स्थिति | विश्व में एक "बैलेंसर" और स्वतंत्र सोच वाले राष्ट्र की छवि |
अर्थव्यवस्था | अमेरिका से निवेश और तकनीकी सहयोग, रूस से वस्तु विनिमय व्यापार |
वैश्विक मंच पर स्थिति | भारत आज G-20, BRICS और QUAD जैसे मंचों पर एक सक्रिय शक्ति है |
हानि (Risks)
क्षेत्र | विवरण |
---|---|
राजनयिक दबाव | अमेरिका चाहता है भारत रूस से दूरी बनाए; रूस को QUAD में भारत की भूमिका खटकती है |
प्रतिबंधों का जोखिम | अमेरिका के CAATSA कानून के अंतर्गत रूस से हथियार खरीदने पर प्रतिबंध संभव |
छवि पर आघात | पश्चिमी देशों में भारत की "तटस्थता" को नैतिक अस्पष्टता की दृष्टि से देखा जाता है |
दीर्घकालिक रणनीतिक असमंजस | यदि अमेरिका-रूस टकराव तीव्र होता है, तो भारत को किसी एक पक्ष का समर्थन करना पड़ सकता है |
दोआब की चेतना और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता
दोआब क्षेत्र — विशेषतः उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली — ने भारतीय राजनीति और कूटनीति में गहरी संतुलन की चेतना दी है। भारत की विदेश नीति इसी चेतना को अपनाकर सामरिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता देती है। भारत न तो पूरी तरह पश्चिम की ओर झुका है, न ही रूस पर निर्भर — यह “बहुध्रुवीय विश्व” की कल्पना को साकार करता है।
निष्कर्ष
भारत का "दोआब" बनना — अमेरिका और रूस जैसी दो महाशक्तियों के बीच — एक चुनौती भी है और अवसर भी। यदि यह संतुलन चतुराई से बना रहा तो भारत विश्व राजनीति का केंद्र बन सकता है। लेकिन यदि यह संतुलन टूटा, तो भारत को रणनीतिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।
इसलिए, भारत की विदेश नीति का भविष्य उसी “दोआब” की तरह है — जहां दोनों धाराओं से पोषण भी है, और संभावित बाढ़ से खतरा भी।
संदर्भ
- भारतीय विदेश मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट्स
- जवाहरलाल नेहरू – Discovery of India
- C. Raja Mohan – Crossing the Rubicon: The Shaping of India’s New Foreign Policy
- ORF, IDSA, Carnegie India की रिपोर्ट्स
- Reuters, The Hindu, Indian Express – विदेश नीति पर विश्लेषणात्मक लेख
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