2025 का मध्य एशियाई परिदृश्य अचानक उस बिंदु पर पहुंच गया जहां परमाणु युद्ध का खतरा केवल एक संभावना नहीं, बल्कि एक गंभीर वास्तविकता बन गई। इज़राइल और ईरान के बीच छिड़े युद्ध ने केवल दो देशों को नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। यह टकराव इतिहास, धर्म, सामरिक रणनीति और भू-राजनीतिक जटिलताओं का संगम बन गया है।
युद्ध की शुरुआत:
13 जून 2025 को इज़राइल ने 'Operation Rising Lion' के तहत ईरान के नतांज़ और फ़ोर्डो जैसे परमाणु प्रतिष्ठानों पर गुप्त ड्रोन और हवाई हमले किए। इस हमले में ईरान की संवेदनशील सैन्य व आणविक सुविधाओं को भारी नुकसान पहुंचा।
ईरान ने इसे अपनी संप्रभुता पर सीधा हमला बताया और उसी रात 150 से अधिक मिसाइलें व 100+ ड्रोन इज़राइल की ओर दागे, जिनमें से अधिकांश को इज़राइल के 'आयरन डोम' ने रोक दिया, लेकिन कुछ मिसाइलें तेल अवीव और हैफा में तबाही मचाने में सफल रहीं।
अमेरिका की भूमिका:
22 जून को अमेरिका ने युद्ध में प्रत्यक्ष भागीदारी लेते हुए ईरान के तीन गुप्त परमाणु स्थलों पर 'Operation Midnight Hammer' के तहत बंकरबस्टर हमले किए। यह अमेरिका की ओर से ईरान को 'रेड लाइन' पार करने पर मिली सबसे बड़ी सैन्य चेतावनी थी।
अमेरिका के इस हस्तक्षेप ने युद्ध को केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक बना दिया।
ईरान की प्रतिक्रिया:
ईरान ने हमलों के जवाब में अमेरिकी ठिकानों की ओर साइबर हमले शुरू किए और इज़राइल के खिलाफ 'सभी मोर्चों पर प्रतिकार' की नीति घोषित की।
- हिज़्बुल्लाह और हौथी जैसे ईरान समर्थित गुटों ने भी इज़राइल पर सीमित हमले किए।
- तेहरान ने होरमुज की खाड़ी में तेल टैंकरों को निशाना बनाने की धमकी दी, जिससे वैश्विक तेल कीमतों में 40% उछाल आ गया।
मानवीय संकट:
- ईरान में: 950 से अधिक नागरिक मारे गए, हज़ारों घायल। राजधानी तेहरान और इस्फहान से बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हुआ।
- इज़राइल में: 24 लोगों की मृत्यु, 300+ घायल। नागरिक बंकरों में शरण लिए हुए हैं।
वैश्विक प्रतिक्रियाएँ:
- संयुक्त राष्ट्र: तत्काल संघर्षविराम की अपील, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं।
- रूस: आधिकारिक रूप से तटस्थ लेकिन ईरान के साथ बैकडोर समर्थन की अटकलें।
- चीन: संघर्ष से दूर रहकर आर्थिक लाभ के अवसर देख रहा है।
- यूरोपियन यूनियन: राजनयिक समाधान की अपील, लेकिन विभाजित प्रतिक्रिया।
भारत का रुख:
भारत ने इस युद्ध पर गहरी चिंता जताई और सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की।
- तेल कीमतों में वृद्धि से भारत की ऊर्जा नीति पर असर पड़ा है।
- खाड़ी में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए विशेष बचाव अभियान चलाया गया।
निष्कर्ष:
यह युद्ध केवल इज़राइल और ईरान का नहीं, बल्कि 21वीं सदी के भू-राजनीतिक संतुलन की परीक्षा है। इसमें धर्म, राष्ट्रवाद, सैन्य शक्ति और कूटनीति की जटिलताएँ एक साथ सामने आई हैं। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह टकराव वैश्विक परमाणु संकट का प्रवेश द्वार बन सकता है।
दुनिया के लिए यह समय है—ठहरकर सोचने का, कूटनीति को मौका देने का, और मानवता को प्राथमिकता देने का।
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