ट्रम्प धूर्त शिरोमणि और मोदी की प्रचारक कूटनीति: भारत के लिए गंभीर चेतावनी



वैश्विक राजनीति में नेताओं के बयानों और इशारों का गहरा महत्व होता है। लेकिन परिपक्व राष्ट्र और उनके कूटनीतिज्ञ यह समझते हैं कि केवल शब्दों पर भरोसा करना आत्मघाती भूल है। दुर्भाग्य यह है कि भारत आजकल बार-बार ऐसी ही भूल करता दिखाई देता है। हाल ही में अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “मित्र” कहकर भारत-अमेरिका संबंधों को “विशेष” बताया। भारतीय मीडिया और राजनीति ने इस बयान को मानो किसी ऐतिहासिक उपलब्धि की तरह पेश किया। परंतु सच्चाई यह है कि ट्रम्प को सही ही “धूर्त शिरोमणि” कहा जा सकता है, क्योंकि उनकी राजनीति सौदेबाज़ी, अनिश्चितता और आत्महित पर आधारित है। और दुखद यह है कि मोदी की विदेश नीति बार-बार इस धूर्तता के जाल में फँस जाती है।



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1. ट्रम्प: धूर्त शिरोमणि


डोनाल्ड ट्रम्प एक असाधारण व्यक्तित्व हैं। वे न तो परंपरागत राजनेता हैं और न ही परिपक्व कूटनीतिज्ञ। वे मूलतः एक व्यापारी, सौदेबाज़ और मीडिया के खेल में माहिर खिलाड़ी हैं। उनकी राजनीति की चार प्रमुख विशेषताएँ हैं:


1. सौदेबाज़ी की मानसिकता – हर रिश्ते को एक डील की तरह देखना। मित्रता और साझेदारी उनके लिए केवल तब तक उपयोगी है जब तक तत्कालिक लाभ हो।



2. अनिश्चितता – वे कल क्या कहेंगे, इसका अंदाज़ा कोई नहीं लगा सकता। आज भारत की प्रशंसा करेंगे, कल पाकिस्तान को “महत्वपूर्ण मित्र” बता देंगे।



3. दोहरे मापदंड – घरेलू राजनीति के हिसाब से वे अंतरराष्ट्रीय बयान बदलते रहते हैं। एक मंच पर मोदी की तारीफ़, दूसरे मंच पर चीन की मजबूती की प्रशंसा।



4. नाटकीयता – मीडिया सुर्खियाँ बटोरने के लिए वे ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जिनका वास्तविक नीति से कोई लेना-देना नहीं होता।




इसीलिए उन्हें “धूर्त शिरोमणि” कहना उचित है। वे दोस्ती के नाम पर ऐसा जाल बुनते हैं, जिसमें विपक्षी भी उलझ जाते हैं और सहयोगी भी।



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2. भारत की विश्वसनीयता पर असर


भारत का मीडिया और राजनीतिक वर्ग ट्रम्प के बयानों को जिस तरह बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करता है, उससे भारत की कूटनीतिक परिपक्वता पर सवाल खड़े होते हैं।


जब भारत बार-बार ट्रम्प की छोटी-सी तारीफ़ को “विशेष संबंध” का सबूत बताता है, तो दुनिया को यह संदेश जाता है कि भारत अपनी स्वतंत्र रणनीतिक पहचान की बजाय बाहरी नेताओं के बयानों पर ज़्यादा निर्भर है।


इससे भारत की छवि एक भावनात्मक और अपरिपक्व राष्ट्र की बनती है, जबकि उसे एक गंभीर शक्ति के रूप में उभरना चाहिए।


ऐसी स्थिति में विरोधी देशों को भारत की कमज़ोरी का अंदाज़ा हो जाता है और वे इसे अपने लाभ के लिए प्रयोग करते हैं।




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3. पाकिस्तान: वास्तविक लाभार्थी


इन परिस्थितियों का असली लाभार्थी पाकिस्तान है।


पाकिस्तान अमेरिका को लगातार यह याद दिलाता है कि उसकी भौगोलिक स्थिति (अफगानिस्तान, खाड़ी, चीन की निकटता) कितनी महत्वपूर्ण है।


ट्रम्प जैसे नेता पाकिस्तान पर दबाव डालकर भी उसे मदद करने का रास्ता निकाल लेते हैं। यह उनकी सौदेबाज़ी की शैली है।


परिणाम यह होता है कि भारत चाहे जितना उत्साहित हो, लेकिन व्यावहारिक रूप से पाकिस्तान को ही मदद, छूट या कूटनीतिक अवसर मिलते रहते हैं।




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4. चीन और रूस की चालें


चीन: अमेरिका-भारत समीकरण की हर हलचल का सबसे बड़ा लाभार्थी चीन होता है। जब अमेरिका भारत की ओर झुकता है, चीन पाकिस्तान को मज़बूत करता है। जब अमेरिका पाकिस्तान की मदद करता है, चीन भारत पर दबाव बढ़ा देता है।


रूस: पारंपरिक रूप से भारत का मित्र रहा रूस, अब पाकिस्तान के भी क़रीब आ रहा है। यह स्थिति भारत के लिए चिंताजनक है, क्योंकि ट्रम्प के दौर में अमेरिका और रूस के बीच तनाव ने पाकिस्तान को रूस के करीब पहुँचने का अवसर दिया।




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5. मोदी: प्रचारक कूटनीतिज्ञ


अब सबसे बड़ा सवाल यही है—इस परिदृश्य में भारत की नीति क्या है? दुर्भाग्य से मोदी का कूटनीतिक दृष्टिकोण अधिकतर प्रचारक कूटनीति तक सीमित है।


वे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बड़े-बड़े आयोजनों और चमकदार तस्वीरों के सहारे यह दिखाना चाहते हैं कि भारत की स्थिति बहुत मज़बूत है।


लेकिन जब वास्तविक रणनीति की बात आती है, तो बार-बार भारत ट्रम्प जैसे नेताओं के जाल में फँस जाता है।


मोदी की विदेश नीति अक्सर “तुरंत सुर्खियाँ” बनाने पर केंद्रित रहती है, न कि दीर्घकालिक संतुलन पर।



इसी कारण मोदी को कई आलोचक “मूर्ख कूटनीतिज्ञ” भी कहते हैं, क्योंकि वे प्रचार और वास्तविक नीति में अंतर नहीं कर पाते।



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6. भारत के लिए रणनीतिक विकल्प


भारत को इस परिदृश्य में क्या करना चाहिए?


1. बहुध्रुवीय कूटनीति – केवल अमेरिका पर भरोसा करने के बजाय यूरोप, एशिया, अफ्रीका और ग्लोबल साउथ में समानांतर संबंध मज़बूत करने होंगे।



2. मीडिया संयम – भारतीय मीडिया को नेताओं के बयानों पर उछलने की बजाय परिपक्व रिपोर्टिंग करनी चाहिए।



3. स्वतंत्र पहचान – भारत को दिखाना होगा कि वह किसी भी महाशक्ति का “जूनियर पार्टनर” नहीं, बल्कि स्वतंत्र नीति वाला राष्ट्र है।



4. दीर्घकालिक रणनीति – तात्कालिक सुर्खियों से बाहर निकलकर भविष्य के संतुलन पर ध्यान देना ज़रूरी है।





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निष्कर्ष


डोनाल्ड ट्रम्प जैसे नेता दुनिया के सामने भले ही भारत को मित्र कहें, लेकिन सच्चाई यह है कि वे केवल अपने हितों के लिए ऐसा करते हैं। वे एक धूर्त शिरोमणि हैं, जिनकी मित्रता स्थायी नहीं बल्कि सौदेबाज़ी पर आधारित है। दूसरी ओर, मोदी की विदेश नीति यदि इसी तरह प्रचारक कूटनीति तक सीमित रही, तो भारत की विश्वसनीयता को गहरी चोट पहुँच सकती है।


भारत को चाहिए कि वह ट्रम्प जैसे नेताओं की नाटकीय बातों में न उलझे और अपनी स्वतंत्र, बहुध्रुवीय और गंभीर कूटनीति को मज़बूत करे। यही भारत के लिए दीर्घकालिक समाधान है, और यही उसकी वास्तविक ताक़त है।

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