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प्रस्तावना
नेपाल, हिमालय की गोद में स्थित एक लैंडलॉक्ड राष्ट्र, दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभाता है। यह भारत और चीन—दो महाशक्तियों—के बीच “बफर स्टेट” माना जाता है। नेपाल की आंतरिक राजनीति लंबे समय से अस्थिर रही है। राजतंत्र, लोकतंत्र, माओवादी जनयुद्ध, गणतंत्र, संवैधानिक संकट—इन सबने नेपाल को निरंतर संकटग्रस्त बनाए रखा।
भारत नेपाल का परंपरागत साझेदार रहा है, लेकिन पिछले दो दशकों में चीन ने नेपाल की राजनीति और अर्थव्यवस्था में गहरी पैठ बनाई है। चीन ने न केवल नेपाल को अपने आर्थिक और रणनीतिक घेरे में लेने की कोशिश की, बल्कि माओवादी आंदोलन को वैचारिक प्रश्रय और बाद में राजनीतिक सहयोग देकर वामपंथी शक्ति को मजबूत करना चाहा। साथ ही, हाल के वर्षों में चीनी राजदूतों की असामान्य सक्रियता ने नेपाल की राजनीति को और अधिक जटिल बना दिया।
इस लेख में हम देखेंगे कि चीन की भूमिका नेपाल संकट में किस प्रकार विकसित हुई, माओवादी आंदोलन और लोकतंत्र क्यों असफल हुआ, और पिछले वर्षों में चीनी राजदूतों की सक्रियता ने नेपाल की राजनीति को किस दिशा में प्रभावित किया।
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नेपाल संकट की पृष्ठभूमि
नेपाल का राजनीतिक इतिहास कई महत्वपूर्ण पड़ावों से गुज़रा है:
1990 का जनआंदोलन – बहुदलीय लोकतंत्र की बहाली।
1996-2006 माओवादी जनयुद्ध – राजतंत्र के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष।
2006 का जनआंदोलन-II – राजा ज्ञानेन्द्र का पतन, लोकतंत्र की वापसी।
2008 – नेपाल गणतंत्र बना, माओवादी सत्ता में आए।
2015 – नया संविधान, लेकिन मधेसी और जनजातीय असंतोष।
2019-2021 – कम्युनिस्ट दलों का विघटन और राजनीतिक अस्थिरता।
2020 – भारत-नेपाल सीमा विवाद (कालापानी, लिपुलेख, लिम्पियाधुरा)।
इन घटनाओं से यह साफ़ है कि नेपाल लगातार राजनीतिक अस्थिरता और संकट की स्थिति में रहा। यही वह अवसर था जिसका चीन ने लाभ उठाया।
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चीन-नेपाल संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
प्राचीन और मध्यकाल – तिब्बत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध।
1950-1960 का दशक – भारत-नेपाल संधि और चीन-नेपाल सीमा समझौते।
1970-1990 – नेपाल ने संतुलन की नीति अपनाई।
1990 के बाद – लोकतंत्र की बहाली के साथ चीन ने वामपंथी दलों और माओवादी आंदोलन में दिलचस्पी बढ़ाई।
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नेपाल संकट में चीन की भूमिका
1. राजनीतिक हस्तक्षेप
चीन ने नेपाल के वामपंथी दलों को एकजुट रखने की कोशिश की।
2018 में UML और माओवादी मिलकर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (NCP) बने—चीन की सक्रिय भूमिका रही।
राजनीतिक संकटों के समय चीनी राजदूत लगातार नेताओं से मिलकर मध्यस्थता करते रहे।
2. आर्थिक दबदबा
नेपाल को BRI (Belt and Road Initiative) में शामिल किया गया।
चीन ने सड़क, हाइड्रो पावर, रेलवे और अवसंरचना में निवेश बढ़ाया।
2015 के भारत-नेपाल ब्लॉकेड के समय चीन ने नेपाल को वैकल्पिक आपूर्ति देकर “संकटमोचक” की छवि बनाई।
3. सामरिक और रणनीतिक महत्व
चीन चाहता है कि नेपाल उसकी वन चाइना पॉलिसी पर कायम रहे और तिब्बती शरणार्थियों की गतिविधियों को रोके।
नेपाल चीन के लिए भारत पर रणनीतिक दबाव का साधन है।
चीन ने नेपाली सेना और सुरक्षा एजेंसियों से भी सहयोग बढ़ाया।
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माओवादी आंदोलन और चीन का प्रश्रय
1. माओवादी जनयुद्ध
1996 में माओवादी विद्रोह शुरू हुआ।
प्रेरणा स्रोत था माओ त्से तुंग का “जनयुद्ध” मॉडल।
10 वर्षों में हजारों लोगों की मौत हुई, राजतंत्र कमजोर हुआ।
2. चीन का प्रभाव
शुरुआती दौर में चीन खुलकर समर्थन नहीं देता था, लेकिन वैचारिक प्रेरणा स्पष्ट थी।
शांति प्रक्रिया (2006) और गणतंत्र (2008) के बाद चीन ने माओवादी नेतृत्व को खुलकर समर्थन दिया।
चीन ने उन्हें राजनीतिक वैधता और आर्थिक सहयोग दिया।
3. माओवादी एकता प्रयास
चीन चाहता था कि UML और माओवादी मिलकर एक स्थिर वामपंथी सरकार बनाएं।
लेकिन गुटबाजी और सत्ता संघर्ष ने यह परियोजना नाकाम कर दी।
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माओवादी लोकतंत्र की असफलता
1. वादे बनाम हकीकत
जनता को भूमि सुधार, सामाजिक न्याय और विकास का वादा किया गया।
सत्ता में आने पर माओवादी भी भ्रष्टाचार और अवसरवादिता में फँस गए।
2. गुटबाजी और सत्ता संघर्ष
प्रचंड और बाबुराम के बीच मतभेद।
मोहन वैद्य “किरण” गुट का अलग होना।
UML-माओवादी एकता का टूटना।
3. जनता का मोहभंग
किसान और मजदूर वर्ग निराश हुए।
माओवादी लोकतंत्र जनता को कोई ठोस लाभ नहीं दे पाया।
4. चीन की रणनीति की विफलता
चीन का सपना था एक “स्थिर वामपंथी नेपाल”।
लेकिन माओवादी लोकतंत्र असफल रहा और चीन की रणनीति अधूरी रह गई।
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पिछले वर्षों में चीनी राजदूतों की सक्रियता
1. होउ यांकी (2019-2021)
उन्हें “पावर ब्रोकर” कहा गया।
प्रचंड और ओली के बीच मध्यस्थता करती रहीं।
नेताओं से घर जाकर मुलाकात करना नेपाल में चर्चा और आलोचना का विषय बना।
2. NCP संकट 2020-2021
चीन चाहता था कि UML और माओवादी अलग न हों।
बार-बार बैठकें और दबाव के बावजूद NCP टूट गई।
3. 2022 के चुनाव
चीन ने वामपंथी गठबंधन बनाने का प्रयास किया।
लेकिन नेपाल की राजनीति में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा ने यह योजना विफल कर दी।
4. 2023-2024
चीन अब सभी दलों से संतुलित संबंध बना रहा है।
लेकिन राजदूतों की सक्रियता बनी हुई है—वे मंत्रियों और नेताओं से लगातार मिलते रहते हैं।
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भारत बनाम चीन प्रभाव
पहलू भारत चीन
सांस्कृतिक संबंध भाषा, धर्म, रोजगार, परिवार बौद्ध धरोहर, तिब्बत
आर्थिक सहयोग सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार BRI, अवसंरचना निवेश
राजनीतिक लोकतंत्र, खुली सीमा कम्युनिस्ट दलों को समर्थन
रणनीतिक नेपाल को सुरक्षा बफर भारत पर दबाव का साधन
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भविष्य की संभावनाएँ
नेपाल की राजनीति में अस्थिरता बनी रही तो चीन और भारत दोनों का प्रभाव बढ़ता रहेगा।
नेपाल की जनता विकास और रोज़गार चाहती है, वैचारिक क्रांति नहीं।
चीन की सक्रियता से भारत-नेपाल संबंधों में तनाव की संभावना बनी रहती है।
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निष्कर्ष
नेपाल संकट में चीन की भूमिका गहन और हस्तक्षेपकारी रही है। उसने माओवादी आंदोलन को वैचारिक और राजनीतिक प्रश्रय दिया, लेकिन माओवादी लोकतंत्र असफल हो गया। हाल के वर्षों में चीनी राजदूतों की असामान्य सक्रियता ने यह स्पष्ट कर दिया कि बीजिंग नेपाल को केवल पड़ोसी नहीं, बल्कि रणनीतिक मोहरा मानता है।
फिर भी, नेपाल पूरी तरह चीन के प्रभाव क्षेत्र में नहीं जा पाया। गुटबाजी, आंतरिक संकट और जनता की आकांक्षाएँ चीन की योजनाओं के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई हैं।
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