भारत, ट्रंप और पाकिस्तान: कूटनीति का वास्तविक परिदृश्य



हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और आगामी चुनाव के प्रबल प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “दोस्त” बताते हुए भारत-अमेरिका संबंधों को “विशेष” करार दिया। जैसे ही यह बयान आया, भारतीय मीडिया ने इसे ऐसे प्रस्तुत किया मानो यह भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि हो। टीवी डिबेट्स में हेडलाइन बनीं, अख़बारों में बड़े अक्षरों में छप गया और सोशल मीडिया पर चर्चा का माहौल बन गया।


लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई यह बयान भारत की विदेश नीति के लिए कोई निर्णायक मोड़ है? या यह सिर्फ अमेरिकी चुनावी राजनीति का एक हिस्सा है, जिसका स्थायी प्रभाव सीमित ही रहेगा?



---


मीडिया की सतही प्रतिक्रिया


भारतीय मीडिया की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह विदेशी नेताओं के हर छोटे-बड़े बयान को सनसनी बना देता है। ट्रंप ने मोदी को दोस्त कहा—यह निश्चित रूप से सकारात्मक संकेत है, लेकिन क्या इससे भारत-अमेरिका संबंधों की दिशा तय हो जाती है? जवाब है—नहीं।


अमेरिका की विदेश नीति संस्थागत ढांचे से चलती है, केवल नेताओं की व्यक्तिगत “दोस्ती” से नहीं। ट्रंप जैसे नेता आज भारत की तारीफ़ करते हैं, कल व्यापार घाटे, वीज़ा नीति या चीन नीति के चलते भारत पर दबाव भी डाल सकते हैं। ऐसे में भारतीय मीडिया का इन बयानों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना कूटनीतिक परिपक्वता की कमी को दर्शाता है।



---


भारत सरकार की ज़िम्मेदारी: Wait and Watch नीति


भारत सरकार को भी इस तरह के बयानों पर अधिक प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए। कूटनीति में धैर्य और गंभीरता सबसे बड़े हथियार होते हैं।


1. व्यक्तिगत संबंधों से परे सोचना होगा – मोदी और ट्रंप की मित्रता महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन भारत की विदेश नीति को व्यक्तियों से परे, दीर्घकालिक रणनीति पर आधारित होना चाहिए।



2. रणनीतिक संतुलन ज़रूरी है – अगर भारत अमेरिका पर ज़्यादा झुकाव दिखाता है, तो रूस और चीन जैसे देश भारत की नीयत पर सवाल उठा सकते हैं। यही कारण है कि भारत को “wait and watch” नीति अपनानी चाहिए।



3. वास्तविक हितों पर ध्यान – भारत का फोकस केवल बयानों पर नहीं बल्कि ठोस मुद्दों पर होना चाहिए—ऊर्जा सुरक्षा, तकनीकी साझेदारी, रक्षा सहयोग और वैश्विक मंचों पर समर्थन।





---


पाकिस्तान की वास्तविक कूटनीति: असली लाभार्थी कौन?


भारत की तुलना में इन परिस्थितियों का सबसे बड़ा लाभार्थी पाकिस्तान है।


चीन का आयरन ब्रदर – पाकिस्तान चीन का सबसे नज़दीकी सहयोगी है। CPEC प्रोजेक्ट और सैन्य सहयोग ने इस रिश्ते को अभेद्य बना दिया है।


अमेरिका की उपयोगिता – पाकिस्तान की भू-राजनीतिक स्थिति अमेरिका के लिए अहम है। चाहे आतंकवाद हो, अफगानिस्तान की स्थिति या मध्य एशिया की स्थिरता—अमेरिका पाकिस्तान को पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।


रूस से नज़दीकी – हाल के वर्षों में पाकिस्तान रूस के भी नज़दीक आया है। ऊर्जा आपूर्ति, गैस पाइपलाइन और सैन्य सहयोग ने इस रिश्ते को नया आयाम दिया है।


खाड़ी देशों का सहारा – सऊदी अरब और UAE पाकिस्तान की डूबती अर्थव्यवस्था को बार-बार बचाते हैं।



इस प्रकार पाकिस्तान एक साथ चार बड़े ध्रुवों—चीन, अमेरिका, रूस और खाड़ी—से संबंध बनाए हुए है। यही उसकी कूटनीतिक चालाकी है।



---


भारत की चुनौतियाँ


1. मीडिया की अपरिपक्वता – अगर भारतीय मीडिया हर विदेशी बयान को उपलब्धि बताकर हल्ला मचाएगा, तो आम जनता में भ्रम फैलेगा और भारत की विदेश नीति की गंभीरता पर असर पड़ेगा।



2. सरकार की जल्दबाज़ी – अगर सरकार भी मीडिया के शोर में बहकर ट्रंप के बयानों को असली रणनीति समझ लेगी, तो दीर्घकालिक हितों को नुकसान हो सकता है।



3. पाकिस्तान का संतुलनकारी खेल – पाकिस्तान जिस तरह चीन, अमेरिका, रूस और खाड़ी देशों से संतुलन बनाकर लाभ ले रहा है, भारत को भी उससे सबक लेना होगा।





---


निष्कर्ष


भारत को यह समझना होगा कि ट्रंप का मोदी को दोस्त कहना या भारत-अमेरिका संबंधों को विशेष बताना कूटनीति की केवल एक परत है। असली कूटनीति धैर्य, गंभीरता और दीर्घकालिक रणनीति से बनती है।


जहाँ भारतीय मीडिया और कभी-कभी सरकार भी सतही बयानों पर उत्साहित होकर “कूटनीतिक जीत” का झंडा लहराने लगते हैं, वहीं पाकिस्तान चुपचाप चीन, अमेरिका, रूस और खाड़ी देशों से अपने रिश्तों को गहराता जा रहा है और असली लाभ उठा रहा है।


👉 इसलिए भारत को अब सतही प्रतिक्रियाओं से ऊपर उठकर ठोस, गंभीर और संतुलित कूटनीति अपनानी होगी। केवल इसी से भारत अपने हित सुरक्षित रख पाएगा और पाकिस्तान की चालों को मात दे सकेगा।


टिप्पणियाँ