अमेरिका–भारत संबंधों का छिपा चेहरा: आर्थिक टैरिफ से आगे नस्लीय मानसिकता और ग्लोबल साउथ का असली सच


1. भूमिका: सतह से गहराई तक की यात्रा

आपका कथन — “अमेरिका का भारत पर टैरिफ केवल आर्थिक और रणनीतिक अपराध नहीं, बल्कि नस्लवादी ग्रंथि से पीड़ित यूरो-अमेरिकी 'सेफ दिमाग' की उपज है…” — आज के अंतरराष्ट्रीय संबंधों की सच्चाई को उजागर करता है।
2025 में अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% तक के टैरिफ ने यह दिखा दिया कि व्यापारिक टकराव केवल आर्थिक रणनीति का हिस्सा नहीं होते, बल्कि इन पर औपनिवेशिक और नस्लीय सोच का भी असर रहता है।

ट्रंप प्रशासन का कहना था कि यह रूस से भारत की तेल-खरीद के कारण है, पर WTO के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका ने इसी अवधि में कुछ यूरोपीय देशों के साथ ऐसी कठोरता नहीं दिखाई। यह चयनात्मक दृष्टिकोण एक गहरे “हम बनाम वे” मानसिक ढाँचे की ओर इशारा करता है।


2. औपनिवेशिक मानसिकता की विरासत: चमड़ी का रंग और साझेदारी की परिभाषा

औपनिवेशिक युग में गोरी चमड़ी को श्रेष्ठ, पीली चमड़ी को अनुशासित और भूरी/काली चमड़ी को अधीन समझा गया।

  • ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत को “अनुशासन सिखाने योग्य” क्षेत्र माना।

  • अमेरिकी नीतियों ने भी लंबे समय तक अफ्रीकी और दक्षिण एशियाई देशों के प्रति ‘गाइड करने वाले’ रवैये को अपनाया।

आज जब अमेरिका चीन के साथ उच्चस्तरीय वार्ताएँ करता है, तो यह अक्सर “सम्मानजनक प्रतिस्पर्धा” कहलाती है। लेकिन भारत या अफ्रीका के देशों के साथ यह ‘अनुपालन सुनिश्चित करने’ की भाषा में होती है—मानो साझेदारी बराबरी की नहीं, बल्कि संरक्षक-शिष्य जैसी हो।


3. नस्लीय ग्रंथि का वैश्विक राजनीति पर प्रभाव

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह अक्सर दिखाई देता है:

  • अमेरिकी थिंक टैंक रिपोर्ट्स में भारत को ‘Emerging Power’ कहकर संबोधित किया जाता है, जबकि जर्मनी, जापान को ‘Major Power’।

  • तकनीकी ट्रांसफर पर अमेरिकी रोक—जैसे रक्षा ड्रोन तकनीक या एडवांस्ड चिप मैन्युफैक्चरिंग—भारत के लिए अधिक सख्त रहती है, जबकि वही टेक्नोलॉजी कोरिया या जापान को आसानी से मिलती है।

ये अंतर केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि नस्लीय मानसिकता से भी प्रेरित हो सकते हैं—जहाँ भूरी त्वचा वाले देशों के लिए "विश्वास" का स्तर कम माना जाता है।


4. ग्लोबल साउथ के प्रति पितृसत्तात्मक नजरिया

ग्लोबल साउथ के साथ अमेरिका का रवैया अक्सर दोहरा होता है:

  • सार्वजनिक रूप से—लोकतंत्र, स्वतंत्रता, साझेदारी की बात।

  • बंद कमरों में—नियम, शर्तें, और अगर पालन न हो तो आर्थिक दंड।

उदाहरण:

  • अफ्रीकी देशों पर 2023–24 में अमेरिका ने औसतन 14% टैरिफ लगाया, जबकि यूरोपीय संघ पर मात्र 3% (UNCTAD Trade Data)।

  • भारत के मामले में 2025 के 50% टैरिफ का कारण रूस से तेल खरीद बताया गया, पर तुर्की और इजराइल ने भी रूस से ऊर्जा ली, फिर भी उनके साथ टैरिफ युद्ध नहीं हुआ।


5. वर्तमान घटनाएँ और टैरिफ संघर्ष (2025)

  • फरवरी 2025 – मोदी की व्हाइट हाउस यात्रा में “Mission 500” लक्ष्य तय हुआ: 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार $500 अरब।

  • अप्रैल 2025 – अमेरिका ने 27% ‘reciprocal tariffs’ लागू किए, भारत की 87% निर्यात श्रेणियाँ प्रभावित।

  • 1 अगस्त – 25% अतिरिक्त टैरिफ।

  • 6 अगस्त – और 25% जोड़कर कुल 50% टैरिफ (Times of India)।

इसका असर—

  • पंजाब के बासमती निर्यातक अमेरिकी बाज़ार खोने के कगार पर।

  • MSME निर्यातक—कपड़ा, ज्वेलरी, इंजीनियरिंग गुड्स—प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं।

  • WTO में भारत ने इसे “Selective and Unfair” करार दिया।


6. ओबामा का दौर: सम्मान और गर्मजोशी

बराक ओबामा ने भारत को Natural Partner कहा और 2009–17 में:

  • न्यूक्लियर डील के क्रियान्वयन में मदद दी।

  • वीजा और छात्र नीतियों को उदार बनाया।

  • जलवायु परिवर्तन पर भारत के साथ बराबरी का समझौता किया।

उनके दौर में नस्लीय मानसिकता कम से कम औपचारिक संवाद में दिखाई नहीं देती थी। भारत को “Strategic Autonomy” के साथ स्वीकार किया गया।


7. ट्रंप और बाइडेन का दौर: लेन-देन और नियंत्रण

  • ट्रंप 1.0 (2017–21) – H1B वीजा कड़ा, GSP स्कीम से भारत बाहर।

  • बाइडेन (2021–25) – चीन-केंद्रित नीति में भारत को Indo-Pacific का “balancing partner” कहा, पर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और मार्केट एक्सेस में सीमाएँ रहीं।

  • ट्रंप 2.0 (2025–) – सीधा आर्थिक दबाव, टैरिफ का हथियार, और रूस–भारत व्यापार पर प्रतिबंध।


8. रणनीतिक साझेदारी बनाम वास्तविक साझेदारी

रक्षा समझौते:

  • LEMOA (2016) – लॉजिस्टिक एक्सचेंज।

  • COMCASA (2018) – सुरक्षित संचार।

  • BECA (2020) – जियोस्पैटियल डेटा शेयरिंग।

इनसे भारत को अमेरिकी सैन्य तकनीक का एक्सेस मिला, पर इससे निर्भरता भी बढ़ी। अमेरिका चाहें तो तकनीकी सप्लाई रोक सकता है।


9. ग्लोबल साउथ के प्रति अमेरिका की द्वैत नीति

  • जलवायु वित्त—वादा $100 अरब सालाना, पर वास्तविक योगदान $20–25 अरब।

  • WTO वार्ताओं में—ग्लोबल साउथ की कृषि सब्सिडी को “डिसटॉर्टिव” कहा, जबकि यूरोप-अमेरिका की सब्सिडी पर सख्ती नहीं।


10. भारत की चुनौतियाँ और अवसर

  1. आत्मनिर्भरता – रक्षा, ऊर्जा और तकनीक में।

  2. बहु-ध्रुवीय नीति – रूस, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के साथ गहरे संबंध।

  3. WTO और UN मंचों पर सक्रिय भूमिका – टैरिफ भेदभाव के खिलाफ।


11. निष्कर्ष

अमेरिका–भारत संबंधों का बाहरी चेहरा मित्रवत हो सकता है, पर भीतरी परतों में नस्लीय सोच, औपनिवेशिक विरासत और रणनीतिक नियंत्रण का तत्व मौजूद है। भारत को इस मानसिकता को समझकर, सम्मान और बराबरी पर आधारित साझेदारी की ओर बढ़ना होगा—चाहे वह अमेरिका के साथ हो या ग्लोबल साउथ के भीतर।

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