(अमेरिका की दादागिरी, रूस की उदासीनता और चीन की प्रतिबद्धता के बीच भारत की रणनीतिक जद्दोजहद)
1. भूमिका — मीनार की ऊँचाई और गौरवगाथा
कभी-कभी इतिहास किसी राष्ट्र के साथ ऐसा खेल खेलता है कि वह एक ऊँची मीनार पर चढ़ जाता है, लेकिन उसके पाँव के नीचे की सीढ़ियाँ खोखली होती हैं। पिछले दशक में भारत को अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ, निवेशक और वैश्विक मीडिया “दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था” कहकर पुकारने लगे।
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GDP growth के आँकड़े 2014–2018 के बीच 7–8% की ऊँचाई पर टिके।
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IT exports ने भारत को global services hub का ताज पहनाया।
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Foreign Direct Investment (FDI) record तोड़ने लगा।
पर सवाल यह है कि क्या यह मीनार सिर्फ चमकीली ईंटों से बनी है, या इसकी नींव भी मजबूत है?
2. इतिहास की परछाइयाँ — 1974 से 2025 तक
भारत की आर्थिक कूटनीति का अतीत कई खट्टे-मीठे मोड़ों से गुज़रा है।
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1974: परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर तकनीकी और आर्थिक प्रतिबंध लगाए।
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1991: IMF bailout, आर्थिक उदारीकरण और वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रवेश।
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2005–2010: Indo–US Civil Nuclear Deal और strategic partnership का उदय।
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2019–2020: अमेरिका ने Generalised System of Preferences (GSP) से भारत को बाहर किया, टैरिफ युद्ध शुरू।
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2022–2025: रूस–यूक्रेन युद्ध के बीच भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदा, जिससे पश्चिम नाराज़ हुआ, पर चीन की नजरें और तेज़ हो गईं।
3. मीनार की सीढ़ियाँ — आर्थिक ट्रेंड
ऊपर के चार्ट में साफ दिखता है:
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GDP Growth: 2016–2018 तक मजबूत, 2019 में गिरावट, 2020 में कोविड से ऐतिहासिक -7.3%, फिर bounce back लेकिन स्थिरता नहीं।
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Exports: 2010–2013 में steady growth, 2015 में गिरावट, फिर 2021–2024 में global demand से उछाल।
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FDI Inflows: 2010 के $25B से 2021 में $85B तक, लेकिन 2024 में ठहराव।
मीनार की ऊँचाई बनी, पर दरारें भी दिखने लगीं।
4. चीन के जाल में भारत और अमेरिकी “सहानुभूति”
चीन का Belt and Road Initiative (BRI) और South China Sea में आक्रामक रुख अमेरिका के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द है। भारत, चीन से सीमा विवाद और व्यापार असंतुलन से परेशान, अमेरिका के Indo–Pacific गठजोड़ में शामिल हुआ।
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अमेरिका को लगता है कि भारत उसकी anti-China strategy में “frontline partner” है।
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पर भारत जानता है कि अमेरिका का यह प्यार strategic convenience से ज्यादा कुछ नहीं।
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जैसे ही चीन के साथ उसकी trade war कम होगी, भारत की प्राथमिकता घट सकती है।
5. ट्रम्प युग — क्रूरता, नस्लवाद और व्यापारिक बदतमीज़ी
डोनाल्ड ट्रम्प ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को Walmart की bargaining table बना दिया:
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GSP से भारत की छूट खत्म।
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स्टील और एल्यूमिनियम पर टैरिफ।
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भारतीय IT workers के लिए H1-B visa restrictions।
ट्रम्प का भारत-प्रेम सिर्फ फोटो-ऑप्स और “Howdy Modi” रैलियों तक सीमित रहा, असल में उन्होंने भारत को एक tough trader की तरह treat किया, जो सिर्फ डॉलर और deals समझता है।
6. बाइडेन की नरमी या नई चालाकी?
जो बाइडेन ने tone बदला, diplomacy को वापस लाया, पर underlying US policy वही रही:
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चीन के मुकाबले भारत का इस्तेमाल।
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रूस से दूरी बढ़ाने का दबाव।
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Trade negotiations में टैरिफ को leverage बनाना।
7. टैरिफ की राजनीति — GSP से Indo–Pacific तक
अमेरिका का तर्क: “भारत बड़ा बाज़ार है, तो उसे reciprocal market access देना होगा।”
भारत का जवाब: “हमारा manufacturing अभी developing stage में है, हमें protection चाहिए।”
पर GSP खत्म होने से भारत के कुछ export sectors को चोट पहुँची — खासकर textile, leather, gems & jewellery।
8. रूस का ठंडा प्रेम और चीन की गर्म दुश्मनी
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रूस: दशकों पुराना रक्षा सहयोग, लेकिन अब energy और arms तक सीमित। रूस भारत को भरोसेमंद मानता है, पर चीन के साथ उसकी strategic friendship भारत के लिए चिंता है।
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चीन: आर्थिक संबंध बड़े, पर trade deficit और सीमा विवाद से भरोसा शून्य।
9. भारत की रणनीतिक ढुलमुल नीति
भारत ने multi-alignment अपनाई — QUAD में अमेरिका के साथ, BRICS में रूस-चीन के साथ।
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लाभ: सभी पक्षों से लाभ लेने की संभावना।
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नुकसान: कोई भी पक्ष भारत को पूरी तरह भरोसेमंद ally नहीं मानता।
10. भविष्य का रास्ता — मीनार से फिसलना या संभलना
अगर भारत को मीनार पर टिके रहना है तो:
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Domestic manufacturing base मजबूत करना
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Export markets diversify करना
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Policy consistency लाना
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Strategic autonomy बनाए रखना
निष्कर्ष — हकीकत का सामना
भारत अभी भी मीनार के शीर्ष पर खड़ा है, पर हवा तेज़ है और सीढ़ियाँ कमजोर। अमेरिका की दादागिरी, रूस की उदासीनता और चीन की प्रतिबद्धता के बीच, अगर भारत ने अपने economic safety nets मजबूत नहीं किए, तो मीनार से लुढ़कने में ज़्यादा वक्त नहीं लगेगा।
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