भारत की सीमांत विश्वनीति: SAARC, NAM और पड़ोसी देशों में बदलता प्रभाव



🔰 प्रस्तावना


भारत का भू-राजनीतिक सपना सदैव से 'विश्वगुरु' या 'ग्लोबल साउथ के नेता' बनने का रहा है। परंतु हकीकत यह है कि भारत आज अपना ही नेतृत्व वाला क्षेत्रीय संगठन SAARC निष्क्रिय कर बैठा है, NAM जैसी वैश्विक विचारधारा को भूल चुका है, और पड़ोसी देशों में उसकी उपस्थिति धीरे-धीरे चीन और पाकिस्तान के कारण सिमट रही है।


यह लेख विशेष रूप से तीन प्रश्नों पर केंद्रित है:


1. क्या भारत बार-बार पाकिस्तान के कारण SAARC जैसे संगठन छोड़ता रहेगा?



2. क्या भारत अब गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) को भूला चुका है?



3. क्या श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव जैसे देश अब भारत की बजाय चीन और पाकिस्तान की ओर झुक रहे हैं?





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🕸️ 1. SAARC – दक्षिण एशिया में भारत की नेतृत्व परीक्षा


🔍 संक्षिप्त परिचय


स्थापना: 1985, काठमांडू


सदस्य देश: भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, मालदीव, अफगानिस्तान


उद्देश्य: क्षेत्रीय सहयोग, शांति और समृद्धि



🇮🇳 भारत की भूमिका:


भारत SAARC का सबसे बड़ा सदस्य होने के नाते इस मंच का नैतिक और आर्थिक नेतृत्व करता रहा है। SAARC का निर्माण क्षेत्रीय समन्वय के लिए किया गया था, परंतु यह कभी भी EU या ASEAN जैसा प्रभावशाली संगठन नहीं बन पाया।


🚫 विघटन के कारण:


पाकिस्तान की आतंकवाद नीति और भारत का विरोध संगठन के सबसे बड़े अवरोधक बन गए।


2016 के उरी हमले के बाद भारत ने इस मंच से खुद को दूर कर लिया।


SAARC के शिखर सम्मेलन स्थगित हो गए, और संगठन निष्क्रिय हो गया।



❓ यक्ष प्रश्न:


> क्या भारत हर बार पाकिस्तान की वजह से अपने ही बनाए मंचों को छोड़ता रहेगा?




🔄 समाधान की दिशा:


1. SAARC-7 मॉडल: पाकिस्तान को छोड़कर बाकी 7 देशों के साथ सहयोग बढ़ाना।



2. मताधिकार आधारित निर्णय प्रणाली: सर्वसम्मति की बाध्यता को समाप्त करना।



3. क्षेत्रीय सहयोग के व्यावहारिक लक्ष्य: स्वास्थ्य, शिक्षा, डिजिटलीकरण आदि को प्राथमिकता देना।





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🕊️ 2. NAM – गुटनिरपेक्षता से दूरी या विस्मृति?


📚 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:


गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement - NAM) की शुरुआत 1961 में हुई।


भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के नासिर और यूगोस्लाविया के टीटो इसके प्रमुख नेता थे।


उद्देश्य था – शीत युद्ध के दो गुटों (अमेरिका और सोवियत संघ) से दूरी बनाए रखते हुए विकासशील देशों की आवाज बनना।



🧭 वर्तमान स्थिति:


आज भारत issue-based alignment की नीति अपनाता है – यानी प्रत्येक मुद्दे पर अलग गुटबंदी।


QUAD (अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया), रूस से रक्षा सहयोग, ईरान से ऊर्जा समझौते – ये सभी NAM की मूल भावना से विपरीत हैं।


भारत NAM सम्मेलनों में भाग तो लेता है, लेकिन सक्रिय नेतृत्व नहीं करता।



📉 कारण:


1. वैश्विक ध्रुवों का धुंधलापन – अब अमेरिका-रूस जैसा सीधा ध्रुवीय युद्ध नहीं रहा।



2. भारत की वैश्विक आकांक्षा – भारत अब 'गुट से बाहर' नहीं, बल्कि 'गुटों का निर्माता' बनना चाहता है।



3. नई विश्व चुनौतियाँ – जैसे जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, जिन पर NAM मौन है।




❓ क्या NAM अप्रासंगिक हो चुका है?


> नहीं, NAM को नवजीवन की ज़रूरत है। भारत जैसे देशों को इसे नई विचारधारा – जैसे डिजिटल सशक्तिकरण, वैश्विक न्याय, जलवायु न्याय – से जोड़ना चाहिए।





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🌏 3. भारत के पड़ोसी: बदलती प्राथमिकताएँ, चीन और पाकिस्तान का प्रभाव


🔍 श्रीलंका:


चीन का प्रभाव: Hambantota बंदरगाह चीन को 99 वर्षों की लीज़ पर दे दिया गया। चीनी निवेश तेज़ी से बढ़ा है।


पाकिस्तान का प्रवेश: सुरक्षा तंत्र में ISI के संपर्क, कट्टरपंथी संगठन


भारत का उत्तर: IMF सहायता में मदद, कोरोना वैक्सीन, आर्थिक ऋण सहायता


स्थिति: भारत सांस्कृतिक रूप से जुड़ा है, लेकिन राजनीतिक समीकरण चीन के पक्ष में जा रहे हैं।



🔍 बांग्लादेश:


चीन का निवेश: रोड, रेलवे, पोर्ट प्रोजेक्ट्स में बड़ा निवेश


पाकिस्तानी लिंक: कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों में ISI के संपर्क


भारत की चुनौती: तीस्ता जल विवाद, घुसपैठ, सीमा संघर्ष


राजनीतिक समीकरण: शेख हसीना भारत समर्थक हैं, लेकिन अंदरूनी दबाव चीन की ओर झुका रहा है।



🔍 मालदीव:


China-first नीति: नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुईज़ू ने 'India Out' आंदोलन का समर्थन किया।


पाकिस्तान का वैचारिक प्रभाव: कट्टरपंथी विचारधाराओं का समर्थन


भारत की प्रतिक्रिया: सैन्य टुकड़ी की वापसी, संबंधों में ठंडापन


स्थिति: भारत की सदाशयता को वहाँ 'हस्तक्षेप' के रूप में देखा जा रहा है।




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🔍 विश्लेषण: भारत की रणनीति में कहाँ चूक?


क्षेत्र भारत की नीति समस्या


SAARC पाकिस्तान से टकराव के बाद दूरी नेतृत्व छोड़ना कमजोर संदेश देता है

NAM सक्रिय भागीदारी नहीं विचारधारा को नया रूप नहीं दिया

पड़ोसी Soft Power पर अधिक भरोसा Hard Investment और सुरक्षा नीति कमजोर




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🔧 आगे की राह: क्या करें?


🧭 1. SAARC को पुनर्जीवित करें


भारत को अपने नेतृत्व वाले मंच को बचाने और सुधारने की हिम्मत दिखानी चाहिए।


SAARC-7 मॉडल, मताधिकार प्रणाली, व्यावहारिक क्षेत्रीय सहयोग की पहल करें।



🧭 2. NAM को फिर से अर्थपूर्ण बनाएं


भारत को NAM को नए वैश्विक मुद्दों से जोड़ना होगा: डिजिटल गरीबी, जलवायु न्याय, वैश्विक शिक्षा, स्वास्थ्य



🧭 3. पड़ोस में सशक्त वापसी


केवल सांस्कृतिक संबंध नहीं, आर्थिक निवेश, इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल साझेदारी से विश्वास फिर से बनाएं।


चीन की तरह Long-Term Loan Model अपनाएं – पारदर्शी और न्यायपूर्ण शर्तों के साथ।


ISI और कट्टरपंथ के खिलाफ इंटेलिजेंस साझेदारी विकसित करें।




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🪔 निष्कर्ष:


> भारत यदि वैश्विक नेतृत्व चाहता है, तो उसे अपने ही क्षेत्रीय और वैचारिक मंचों (SAARC और NAM) को पुनर्जीवित करना होगा। पाकिस्तान के डर से पीछे हटना रणनीतिक पराजय है। चीन की नकल करना नहीं, अपनी शक्ति का आत्मबोध ज़रूरी है।




भारत को SAARC छोड़ने की बजाय उसका पुनर्गठन करना चाहिए। NAM को त्यागने की बजाय नया दर्शन देना चाहिए। और अपने पड़ोसियों को दुश्मन नहीं, साझेदार बनाना चाहिए।



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✍️ अंतिम पंक्तियाँ:


“SAARC से भागना नेतृत्व नहीं है, N

AM को भूलना दिशा नहीं है, और पड़ोसी को छोड़ना मित्रता नहीं है।”


भारत को 'कर बहियां बल अपने' की नीति अपनाकर अपने ही मंचों को फिर से जीवित करना होगा — यही रणनीतिक आत्मनिर्भरता का पहला अध्याय होगा।


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