🔹 1. नेहरूवादी विश्वनीति की वापसी?
✅ गुटनिरपेक्षता की छाया
नेहरू की सबसे बड़ी कूटनीतिक विरासत थी गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM)। आज जब भारत रूस-अमेरिका युद्ध (यूक्रेन) में किसी एक पक्ष का खुला समर्थन नहीं करता, ईरान-इज़राइल टकराव में मौन रहता है और चीन से तनाव के बावजूद संवाद बनाए रखता है — तो यह नेहरू की "सभी से दोस्ती, किसी का गुलाम नहीं" नीति की झलक देता है।
✅ संप्रभुता का ज़ोर
नेहरू की तरह मोदी सरकार भी संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता की बात करती है, वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ को बुलंद करती है, और पश्चिमी दबाव के बावजूद तेल नीति या रक्षा सौदों में आत्मनिर्भर निर्णय लेती है।
✅ ब्रिक्स, एससीओ और ग्लोबल साउथ की ओर झुकाव
नेहरू ने एशिया-अफ्रीका एकता की बात की थी। आज भारत ब्रिक्स और एससीओ के ज़रिए एक वैकल्पिक ध्रुव रचने की कोशिश कर रहा है जो अमेरिकी नेतृत्व वाले वेस्टर्न एलायंस से इतर है।
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🔹 2. क्या भाजपा रूस-अमेरिका-चीन के ट्रैप में है?
⚠️ तीनों महाशक्तियों का अलग-अलग एजेंडा
अमेरिका चाहता है कि भारत QUAD और Indo-Pacific में उसकी रणनीति का हिस्सा बने।
रूस चाहता है कि भारत चीन से उसकी दोस्ती में रोड़ा न बने और यूक्रेन युद्ध पर उसका मौन समर्थन करता रहे।
चीन चाहता है कि भारत एशियाई क्षेत्र में अमेरिका का विरोध न करे और LAC पर ज़्यादा आक्रामकता न दिखाए।
इन तीनों का दबाव भारत पर है — आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर।
⚠️ रणनीतिक भ्रम की स्थिति
भारत ने रूस से तेल लेना बंद नहीं किया (रूस खुश), अमेरिका से रक्षा डील की (अमेरिका खुश), लेकिन चीन से संबंध नहीं सुधारे (चीन नाराज़)। इस "सबको संतुष्ट" करने की नीति एक रणनीतिक जाल जैसा प्रतीत हो सकता है।
🔹 3. भाजपा की विदेश नीति की वास्तविक दिशा
✅ रणनीतिक स्वायत्तता बनाम रणनीतिक उलझाव
भारत की विदेश नीति आज स्वायत्तता और विकल्पों की बहुलता पर आधारित है। यह नेहरू की गुटनिरपेक्षता से अलग है क्योंकि अब भारत 'multi-alignment' की नीति अपना रहा है — यानी सबके साथ संबंध, लेकिन राष्ट्रीय हित सर्वोपरि।
✅ भू-राजनीतिक संतुलन की कला
• रूस से रक्षा
• अमेरिका से टेक्नोलॉजी
• चीन से व्यापार
• इज़राइल से इंटेलिजेंस
• ईरान से एनर्जी कॉरिडोर
यह नीति भारत को बड़े खतरों से बचाती है लेकिन कुछ हद तक समझौतावादी भी है।
🔹 4. क्या भाजपा नेहरू के रास्ते पर चल रही है?
✳️ समानताएं:
गुटनिरपेक्षता/मल्टी-अलाइनमेंट
ग्लोबल साउथ की लीडरशिप
कूटनीतिक संतुलन
✳️ विरोधाभास:
भाजपा की विचारधारा राष्ट्रवादी है, नेहरू की अंतरराष्ट्रीयतावादी थी
भाजपा पश्चिम से प्रौद्योगिकी और पूंजीगत सहयोग चाहती है, नेहरू समाजवादी वैश्विक मॉडल के हिमायती थे
भाजपा की विदेश नीति संवेदनशील है लेकिन कठोर भी, नेहरू की नीति भावनात्मक और वैचारिक थी
🔹 5. भाजपा और फारुख अब्दुल्ला जैसे चेहरे की संभावनाएं
भाजपा यदि फारुख अब्दुल्ला जैसे कश्मीरी मुस्लिम चेहरे को उपराष्ट्रपति बनाती है, तो यह:
विश्व को सेकुलर भारत का संदेश देगा
कश्मीर नीति को संतुलित दिखाएगा
मुस्लिम दुनिया के साथ रिश्तों को सुदृढ़ करेगा
और यह भी दर्शाएगा कि भाजपा अब मूल्य आधारित कूटनीति की ओर बढ़ रही है, जैसे कभी नेहरू बढ़े थे
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🔹 6. निष्कर्ष: क्या भाजपा फंसी है या संभली है?
> न भाजपा पूरी तरह नेहरू की नीति अपना रही है, न पूरी तरह फंसी है।
यह एक ऐसी रस्सी पर चल रही है जहाँ दोनों ओर खाई है — लेकिन अगर संतुलन बना रहा, तो यह भविष्य का विश्व नेता बन सकता है।
नेहरू ने आदर्शवाद से भारत को वैश्विक पहचान दी थी। मोदी-शाह की भाजपा व्यावहारिकता से भारत को वैश्विक ताकत बना रही है।
इस बीच फारुख अब्दुल्ला जैसे चेहरे या मुस्लिम प्रतिनिधित्व को आगे बढ़ाना भारत की विदेश नीति में नई कूटनीतिक चाल हो सकती है — एक ऐसा दांव, जो विरोधियों को भी चौंका दे और मुस्लिम दुनिया में भारत की विश्वसनीयता फिर मजबूत करे।
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