🔰 प्रस्तावना
21वीं सदी के तीसरे दशक में भारत एक अभूतपूर्व वैश्विक भूमिका में उभरकर सामने आया है। अमेरिका और चीन के बीच शक्ति संघर्ष, रूस-ईरान-चीन के गठबंधन "Axis of Upheaval", ट्रंप टैरिफ जैसी नीतियां, और दक्षिण एशिया में उग्रवाद—ये सभी भारत के राजनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक भविष्य को परिभाषित कर रहे हैं।
यह लेख अब तक के सभी प्रमुख विश्लेषणों (ट्रंप टैरिफ, चीन का आतंकवाद पोषण, एक्सिस ऑफ अपहीवल, भारत की आक्रामक विदेश नीति, वैश्विक ध्रुवीकरण) के निष्कर्षों को एक सूत्र में पिरोता है और भारतीय राजनीति एवं विश्वनीति का भावी खाका प्रस्तुत करता है।
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🇮🇳 1. भारत की विदेश नीति का वैचारिक मोड़
✅ 'गुटनिरपेक्षता 2.0' की शुरुआत
भारत अब पुराने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की जगह “Issue-Based Alliances” को प्राथमिकता दे रहा है।
Quad, SCO, BRICS, G20 सभी मंचों पर सक्रिय भागीदारी, लेकिन किसी एक शक्ति के प्रभाव में नहीं।
✅ 'कर बहियां बल अपने' की रणनीति
भारत अब दूसरों पर निर्भर न होकर आत्मनिर्भरता, नवाचार और रणनीतिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता दे रहा है।
अमेरिका, रूस, चीन, यूरोपीय संघ—सबसे रिश्ते संतुलित लेकिन भारत की प्राथमिकता भारत ही है।
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🌏 2. वैश्विक परिदृश्य और 'Axis of Upheaval'
🔴 क्या है यह धुरी?
चीन, रूस, ईरान, उत्तर कोरिया जैसे देश मिलकर अमेरिका और नाटो के प्रभाव को चुनौती देने वाली धुरी बना रहे हैं।
इनका उद्देश्य है एक वैकल्पिक, केंद्रीकृत, पश्चिम-विरोधी वैश्विक संरचना बनाना।
🇮🇳 भारत की चुनौती
भारत इन देशों के साथ पारंपरिक रूप से जुड़ा रहा है (विशेषतः रूस और ईरान)।
लेकिन चीन और पाकिस्तान के गठजोड़, पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद और दक्षिण एशिया में चीन का निवेश भारत के लिए रणनीतिक सिरदर्द बन चुके हैं।
✅ भारत का उत्तर
भारत ने 'डिजिटल स्वतंत्रता', 'रक्षा उत्पादन', 'नवाचार', और 'भू-राजनीतिक संतुलन' के जरिए इस गठजोड़ से दूरी और सावधानी बनाए रखी है।
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💹 3. अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और ट्रंप टैरिफ
📉 अमेरिका की विफलता
ट्रंप ने चीन पर भारी टैरिफ लगाए लेकिन चीन झुका नहीं। अमेरिका को आपूर्ति श्रृंखला संकट, महंगाई और वैश्विक असंतुलन का सामना करना पड़ा।
🇮🇳 भारत पर असर
अमेरिका ने चीन के बाद भारत पर दबाव बनाया—GSP समाप्त, H-1B नियम सख्त, डिजिटल नियंत्रण की कोशिश।
भारत ने इनका डटकर जवाब दिया और अपनी डिजिटल और तकनीकी संप्रभुता कायम रखी।
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🕸️ 4. चीन: आतंकवाद का नया गॉडफादर
🔫 रणनीतिक समर्थन
नेपाल, म्यांमार और पाकिस्तान के जरिए भारत के सीमांत इलाकों में आतंकवादी नेटवर्क को समर्थन।
आर्थिक निवेश के बहाने सुरक्षा प्रतिष्ठानों की जासूसी और दखलंदाजी।
🇮🇳 भारत की रणनीति
NIA, IB और RAW का मजबूत समन्वय।
सीमाओं पर इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण, सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण, और पूर्वोत्तर में शांति वार्ता का संयोजन।
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🎯 5. भारत की रणनीतिक उपलब्धियाँ
क्षेत्र उपलब्धि
डिजिटल UPI, CoWIN, ONDC, Aadhaar आधारित वैश्विक मॉडल
रक्षा HAL, DRDO, LCA Tejas, S-400 अधिग्रहण
अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व G20 अध्यक्षता, Vaccine Maitri, Global South की आवाज
व्यापार भारत-यूरोप FTA प्रस्ताव, INDO-Pacific व्यापार साझेदारी
स्पेस चंद्रयान, आदित्य L1, Gaganyaan
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🏛️ 6. भारत की राजनीति: राष्ट्रवाद और वैश्विक नेतृत्व
🧠 वैचारिक पुनर्निर्माण
भारत की राजनीति अब आत्मविश्वास, सांस्कृतिक गौरव, और वैश्विक सक्रियता के इर्द-गिर्द घूम रही है।
“राष्ट्र प्रथम” की नीति, लेकिन “विश्व हित” में भूमिका का निर्वहन।
🤝 विपक्ष की भूमिका
भारत की वैश्विक छवि केवल सत्ताधारी दल की नहीं, पूरे लोकतंत्र की होती है।
विदेश नीति पर विपक्ष का सकारात्मक समर्थन और संयुक्त रणनीति आवश्यक है।
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🌐 7. आने वाले दशक की दिशा
✅ भारत की 5 स्तंभीय विश्वनीति:
1. स्वराज और संप्रभुता: रक्षा, साइबर, डेटा में आत्मनिर्भरता।
2. साझेदारी और संतुलन: अमेरिका-रूस-ईरान-फ्रांस सबके साथ संतुलित नीति।
3. लोकतांत्रिक मूल्य: चीन जैसे तानाशाही मॉडल से दूरी।
4. वैश्विक नेतृत्व: दक्षिण एशिया, अफ्रीका, Indo-Pacific में रणनीतिक पहुंच।
5. सांस्कृतिक कूटनीति: योग, आयुर्वेद, संस्कृत, रामायण डिप्लोमेसी।
📊 संभावनाएँ और खतरे
संभावना खतरा
वैश्विक तकनीकी नेता बनना चीन और अमेरिका की टकराव में फँसना
लोकतांत्रिक मॉडल निर्यात करना आतंरिक अस्थिरता या राजनीतिक ध्रुवीकरण
दक्षिण एशिया का नेतृत्व पाकिस्तान और चीन द्वारा छद्म युद्ध
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🔚 समेकित निष्कर्ष
भारत एक निर्णायक मोड़ पर है।
न वह अब केवल विकासशील देश है, न ही पराधीन रणनीति अपनाने वाला।
भारत अब विकल्प नहीं, “दिशा” है। वह पश्चिम और पूर्व के बीच संतुलन है, और लोकतंत्र व अधिनायकवाद के संघर्ष में न्यायप्रिय शक्ति।
➡️ कर बहियां बल अपने, छोड़ पराई आस —
यही भारत की आगामी विश्वनीति का सूत्र वाक्य है।
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