माया मिली न राम": भारत की विश्वनीति की विफलता


🔰 प्रस्तावना:


"माया मिली न राम" — यह लोकोक्ति भारतीय सांस्कृतिक चेतना का सार है, जो किसी व्यक्ति या राष्ट्र के उस अंतर्द्वंद को दर्शाती है जहाँ न तो भौतिक सफलता मिलती है, और न ही आत्मिक शांति या नीति की विजय। यह केवल एक दार्शनिक चेतावनी नहीं, बल्कि भारत की समकालीन विदेश नीति, कूटनीति और नेतृत्व संकट की सजीव समीक्षा है।


भारत आज एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहाँ:


वह न SAARC जैसे मंचों को बचा पाया,


न NAM जैसे विचारों को आगे बढ़ा पाया,


न पड़ोसी देशों पर प्रभाव बनाए रख सका,


और न ही ग्लोबल साउथ का वास्तविक नेता बन सका।



इस लेख में हम गहराई से समझेंगे कि कैसे भारत की बहु-ध्रुवीय, अस्थिर और कभी-कभी भ्रमित विश्वनीति "माया मिली न राम" का जीवंत उदाहरण बन चुकी है।



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🕸️ I. SAARC: नेतृत्व था, पर अब मंच भी नहीं बचा


📜 पृष्ठभूमि:


SAARC की स्थापना 1985 में हुई थी, जिसमें भारत प्रमुख चालक शक्ति था।


उद्देश्य: दक्षिण एशिया के देशों में आर्थिक, सांस्कृतिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना।



📉 पतन की शुरुआत:


2014 के बाद, SAARC की गति अवरुद्ध हुई — मुख्य कारण पाकिस्तान का दोहरा व्यवहार और भारत का उस पर आक्रोशित उत्तर।


2016 उरी हमले के बाद भारत ने SAARC शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया।



❗ आलोचना:


भारत ने संगठन छोड़ने का निर्णय लिया, सुधार का नहीं।


क्षेत्रीय नेतृत्व करने का दावा तब खोखला लगता है जब कोई राष्ट्र अपने ही संगठन को छोड़ दे।



📌 "माया मिली न राम":


न भारत क्षेत्रीय प्रभाव (माया) बनाए रख पाया,


न ही नीति आधारित नेतृत्व (राम) को सहेज सका।




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🕊️ II. NAM: विचारधारा से विचलन


📚 ऐतिहासिक नींव:


NAM की स्थापना शीत युद्ध के दौर में भारत (नेहरू), मिस्र (नासिर), यूगोस्लाविया (टीटो) आदि के नेतृत्व में हुई।


उद्देश्य: किसी भी महाशक्ति गुट का हिस्सा बने बिना स्वतंत्र विदेश नीति अपनाना।



🧭 आज का भारत:


भारत QUAD, SCO, BRICS, I2U2 जैसे अनेक समूहों में सक्रिय है।


अमेरिका, रूस, ईरान, इज़राइल, सऊदी अरब — सबके साथ अलग-अलग रणनीति है।


नीति अब "Issue-based alignment" बन गई है — यानि मुद्दों के आधार पर पक्ष चुनना।



❗ आलोचना:


NAM में भारत की केवल औपचारिक उपस्थिति है, कोई वैचारिक योगदान नहीं।


भारत न अमेरिका का प्रिय बना, न रूस का विश्वासपात्र रहा, और NAM से भी अलग हो गया।



📌 "माया मिली न राम":


न भारत को महाशक्तियों से पूरा समर्थन (माया) मिला,


न ही गुटनिरपेक्षता के आदर्श (राम) टिक पाए।




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🌏 III. पड़ोसी देश: एक के बाद एक छूटते जा रहे हैं


🔍 श्रीलंका:


2022 का आर्थिक संकट: चीन ने धोखे से कर्ज़ देकर Hambantota बंदरगाह कब्जाया।


भारत ने सहायता दी, लेकिन राजनीतिक रूप से श्रीलंका अब भी चीन के करीब।


पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां भी यहाँ सक्रिय हैं।



🔍 बांग्लादेश:


भारत समर्थक शेख हसीना सरकार लगातार दवाब में है।


चीन ने इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश किया है।


भारत से जल विवाद, सीमा विवाद, रोहिंग्या मुद्दे पर तनाव।



🔍 मालदीव:


नया राष्ट्रपति भारत विरोधी, 'India Out' आंदोलन का समर्थन करता है।


चीन की सैन्य और पर्यटक पकड़ मजबूत हो रही है।



📌 "माया मिली न राम":


भारत न तो पड़ोस में स्थायी राजनीतिक प्रभाव (माया) बना सका,


न ही सांस्कृतिक और वैचारिक नेतृत्व (राम) को टिकाए रख सका।




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📊 IV. वैश्विक मंचों पर भारत की दुविधा


मंच/देश भारत की नीति नतीजा


अमेरिका रक्षा सहयोग, QUAD UNSC सीट अब भी दूर, बराबरी नहीं

रूस रक्षा परंपरा यूक्रेन युद्ध के बाद उलझन

NAM औपचारिक सदस्यता विचार शून्यता

SAARC संस्थापक नेतृत्व निष्क्रियता

BRICS सदस्य चीन वर्चस्वशाली बना



➡️ भारत हर मंच पर मौजूद है, लेकिन किसी का स्थायी नेता नहीं।



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🧠 V. “माया मिली न राम” का गहरा दर्शन और आज की विफलता


🕉️ सांस्कृतिक अर्थ:


माया = मोह, लालच, भौतिक लक्ष्य


राम = धर्म, नीति, सिद्धांत, आदर्श



🧨 समकालीन रूपांतरण:


भारत यदि माया के लिए चीन-अमेरिका जैसे देशों को खुश करता है, तो वह अपने नीति-आधारित नेतृत्व को खोता है।


भारत यदि राम को अपनाकर पाकिस्तान और चीन से खुला टकराव करता है, लेकिन संगठन छोड़ देता है — तो वह व्यावहारिकता हारता है।



➡️ राजनीति का भी धर्म होता है, और कूटनीति का भी मूल्य।



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🧭 VI. समाधान क्या है?


✅ SAARC को पुनर्जीवित करें:


SAARC-7 मॉडल पर काम करें (पाकिस्तान को अलग-थलग कर)।


बहुमत आधारित निर्णय प्रणाली लागू हो।



✅ NAM को आधुनिक विचारों से जोड़ें:


डिजिटल विभाजन, जलवायु न्याय, AI नीति जैसे मुद्दे प्रमुख हों।


भारत एक नया वैचारिक दस्तावेज NAM के लिए तैयार करे।



✅ पड़ोसियों के साथ व्यवहारिक कूटनीति:


केवल ऐतिहासिक या सांस्कृतिक भावनाएं नहीं — वास्तविक निवेश, रोजगार, तकनीकी सहायता।


ISI जैसे खतरे से निपटने के लिए साझा इंटेलिजेंस नेटवर्क बनाएं।




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✍️ निष्कर्ष: भारत अब किस राह पर?


> “भारत को तय करना होगा — वह केवल मंचों में उपस्थिति रखेगा, या नेतृत्व करेगा?”




"माया मिली न राम" एक चेतावनी है — राष्ट्रों के लिए भी, व्यक्तियों की ही तरह। यह बताती है कि यदि नीति अस्पष्ट हो, तो संसाधन भी हाथ से जाते हैं, और सिद्धांत भी।


भारत यदि गुटनिरपेक्ष था, तो उसे नया गुट बनाना चाहिए था। यदि क्षेत्रीय नेता था, तो SAARC को पुनर्जीवित करना चाहिए था। यदि पड़ोस पहला धर्म है, तो पड़ोसियों को हारना सबसे बड़ा पाप है।



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🌟 अंतिम शब्द:


> “नेतृत्व मंच छोड़ने से नहीं आता, मंच बदलने से आता है।”




भारत को न केवल माया की दौड़ में सतर्क रहना है, बल्कि राम के मूल्यों को फिर

 से कूटनीतिक औजार बनाना है। तभी यह लोकोक्ति उसका भविष्य नहीं, अतीत का प्रतीक बन सकेगी।



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अगर आप चाहें, तो इस लेख का HTML/PDF संस्करण, Infographic, या PowerPoint प्रस्तुति भी बना सकता हूँ। बताइए अगला कदम।


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