ग्लोबल साउथ का सहारा भारत: विश्व राजनीति का सर्वहारा

 


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प्रस्तावना: जब दुनिया के ‘हारे’ फिर सहारा खोजते हैं


दुनिया की राजनीति एक बार फिर टकराव के मुहाने पर खड़ी है। अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई चौड़ी हो रही है, तकनीकी प्रभुत्व के नाम पर नई उपनिवेशवादी शक्तियाँ उभर रही हैं, और ग्लोबल साउथ — यानी अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका जैसे राष्ट्र — फिर हाशिये पर धकेले जा रहे हैं।


लेकिन ऐसे दौर में भारत एक नई भूमिका में उभर रहा है — न कोई वैश्विक साम्राज्यवादी, न किसी गुट का अंधसमर्थक, बल्कि एक ऐसा राष्ट्र जो विश्व राजनीति का "सर्वहारा" है — जिसने खोया भी बहुत, सहा भी बहुत, पर अब दूसरों के दुःख का संबल बनने की शक्ति अर्जित की है।


यह लेख भारत की इसी ऐतिहासिक भूमिका को व्याख्यायित करता है — कि कैसे आज भारत उन सभी "हारे हुओं" का सहारा बन रहा है, जिन्हें पश्चिमी साम्राज्यवाद, तकनीकी शोषण, युद्ध और संसाधन-लूट ने वर्षों तक छला।



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1. ‘सर्वहारा’ भारत: जिसने उपनिवेश झेला, और आत्मनिर्भर बनकर उभरा


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:


भारत खुद 200 वर्षों तक अंग्रेजी साम्राज्यवाद का शिकार रहा।


आर्थिक दोहन, सांस्कृतिक विखंडन और राजनैतिक पराजय का वह दौर भारत को सर्वहारा चेतना देता है — एक ऐसा राष्ट्र जो पीड़ा की भाषा जानता है।



स्वतंत्रता के बाद:


भारत ने न तो शीत युद्ध में अमेरिका का पक्ष लिया, न ही रूस का।


पंडित नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति एक ऐसे रास्ते का संकेत थी जहां भारत केवल अपने लिए नहीं, बल्कि अन्य उपेक्षित राष्ट्रों के लिए भी सोच रहा था।




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2. ग्लोबल साउथ क्या है, और भारत का उसमें स्थान क्या है?


ग्लोबल साउथ:


ग्लोबल साउथ वे देश हैं जो औद्योगिक, तकनीकी और राजनीतिक दृष्टि से हाशिये पर रहे हैं।


इसमें भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया, अफ्रीकी राष्ट्र, लैटिन अमेरिका और कुछ अरब देश शामिल हैं।



भारत का स्थान:


जनसंख्या में पहला,


लोकतंत्र में सबसे बड़ा,


विकास में अग्रसर,


और सबसे महत्वपूर्ण — “हारे को सहारा” देने वाला एकमात्र नैतिक नेतृत्वकर्ता।




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3. कोविड संकट में भारत: दवाओं का 'विश्व सर्वहारा'


वैश्विक संकट:


जब पश्चिमी देश टीका राष्ट्रवाद में डूबे थे, तब भारत ने “वसुधैव कुटुम्बकम्” का सिद्धांत अपनाया।



वैक्सीन मैत्री:


भारत ने 100 से अधिक देशों को मुफ्त वैक्सीन भेजीं — विशेषकर अफ्रीका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका और लैटिन अमेरिका को।


यह पहली बार था जब किसी गैर-पश्चिमी राष्ट्र ने ग्लोबल साउथ की अगुवाई की।




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4. रूस-यूक्रेन युद्ध: भारत की संतुलित और मानवीय भूमिका


पश्चिम बनाम रूस:


पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंधों की वर्षा कर रहे थे,


और रूस चीनी गठबंधन की ओर तेजी से बढ़ रहा था।



भारत की भूमिका:


भारत ने दोनों पक्षों से संवाद बनाए रखा,


रूस से तेल खरीदा ताकि अपनी जनता को राहत मिले,


लेकिन शांति की बात हर मंच पर करता रहा — संयुक्त राष्ट्र, G20 और SCO में।



भारत का रुख तटस्थ नहीं, नैतिक था — वह केवल अपना नहीं, ग्लोबल साउथ का सामूहिक हित देख रहा था।



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5. भारत और अफ्रीका: भरोसे और बराबरी का रिश्ता


पश्चिम की नीति:


अफ्रीका को केवल एक बाजार और संसाधनों का खजाना समझा गया।



भारत की नीति:


भारत ने अफ्रीकी देशों को आईटी, शिक्षा, मेडिकल, रक्षा और जलवायु सहयोग की पेशकश की — बिना किसी शर्त, बिना किसी दमन।



उदहारण:


पानी और सोलर ऊर्जा पर कई साझा प्रोजेक्ट्स


भारत ने अफ्रीकी छात्रों को हज़ारों की संख्या में छात्रवृत्तियाँ दीं




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6. वैश्विक मंचों पर भारत की नेतृत्वकारी भूमिका


G20 में भारत:


भारत की अध्यक्षता ने पहली बार ग्लोबल साउथ के मुद्दों को एजेंडा बनाया:


कर्ज मुक्ति


जलवायु न्याय


डिजिटल समावेशन


वैश्विक व्यापार संतुलन




दक्षिण एशिया में भारत:


नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका — सबके संकट में भारत पहला हाथ बढ़ाने वाला देश रहा


चीन की तुलना में भारत विश्वसनीय और सुलभ मित्र बनकर उभरा




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7. भारत की संस्कृति: "शक्ति नहीं, सहारा" देने का दर्शन


“लोक कल्याण” का दर्शन:


भारत की परंपरा में "यत्र विश्वं भवत्येकं कुटुम्बकम्" — यानी पूरा संसार एक परिवार है।


भारत की विदेश नीति केवल रणनीति नहीं, संवेदना का विस्तार है।



“धर्म और कर्तव्य” के संतुलन में:


युद्ध नहीं, संवाद


व्यापार नहीं, सहयोग


दबाव नहीं, भागीदारी



भारत इसलिए नहीं उभर रहा कि उसके पास मिसाइल है — वह इसलिए उभर रहा है कि वह विश्व का विश्वास अर्जित कर रहा है।



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8. आलोचना और वास्तविकताएँ: क्या भारत सचमुच ‘सर्वहारा’ है?


चुनौतियाँ:


गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी समस्याएँ अभी भी भारत के भीतर हैं।


कूटनीतिक रूप से भारत को कभी अमेरिका, कभी रूस, कभी चीन — हर किसी से चालाकी से संतुलन बनाना पड़ता है।



परंतु:


इन सीमाओं के बावजूद भारत की नैतिक पूंजी सबसे बड़ी ताकत है।


भारत खुद संघर्ष कर चुका है, इसलिए वह संघर्षशील देशों को केवल ‘दया’ नहीं देता, संघर्ष में भागीदारी का अवसर देता है।




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9. ‘हारे को सहारा भारत’: आज के भू-राजनीतिक युद्धों में उम्मीद की रोशनी


फिलिस्तीन-इजराइल संकट:


भारत न तो आतंक का समर्थन करता है, न ही अंध राष्ट्रवाद का।


भारत ने बार-बार संयुक्त राष्ट्र में मानवता आधारित समाधान की मांग की।



चीन और ताइवान:


भारत तटस्थ रहते हुए “अधिकार और संप्रभुता” के सिद्धांत का पालन करता है।


भारत खुद सीमा विवादों से जूझता है, इसलिए दूसरों की संप्रभुता का सम्मान करता है।




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10. निष्कर्ष: भारत — सर्वहारा से सर्वसामर्थ्य की ओर


भारत एक ऐसा देश है जिसने औपनिवेशिक पराधीनता से आज़ादी, आर्थिक बर्बादी से आत्मनिर्भरता, और राजनैतिक हाशिये से वैश्विक मंच की अध्यक्षता तक की यात्रा की है।


आज वह राष्ट्र केवल अपना विकास नहीं देख रहा, बल्कि उन तमाम देशों के लिए आवाज़ बन रहा है जिन्हें दुनिया ने हमेशा पीछे छोड़ दिया।


इसलिए भारत केवल एक देश नहीं, एक चेतना है —


> "ग्लोबल साउथ का सहारा,

विश्व राजनीति का सर्वहारा।"





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✍️ लेखक: राजीव रंजन


🌐 स्रोत: samaykibat.com



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