भारत की बहुध्रुवीय चुनौतियों, असफल मंच और नई रणनीति

 


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(एक समेकित विश्लेषण 


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प्रस्तावना: एकाकी विश्वनीति की ओर


21वीं सदी के तीसरे दशक में भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय राजनीति केवल मित्रता, समझौते और साझा विकास का खेल नहीं रह गया, बल्कि यह अस्तित्व, अस्मिता और आत्मनिर्भरता की जंग बन गई। भारत ने लंबे समय तक वैश्विक मंचों, बहुपक्षीय गठबंधनों और कूटनीतिक सम्मेलनों पर भरोसा किया। लेकिन 2020 के बाद एक के बाद एक घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया कि—


> “जो राष्ट्र अपनी रणनीति स्वयं नहीं बनाते, उनकी नीतियाँ दूसरों की मोहरे बन जाती हैं।”




भारत अब विश्व राजनीति के उस मुकाम पर खड़ा है, जहाँ उसे “कर बहियां बल अपने”—अर्थात् अपनी शक्ति पर निर्भर रहकर नीति निर्धारण करना होगा।



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1. बहुध्रुवीय युद्ध: जब पाकिस्तान मुखौटा था


भारत की सुरक्षा चुनौतियाँ कभी सीमित नहीं रहीं, लेकिन 2020 के बाद जो संघर्ष उभरा वह केवल एक द्विपक्षीय युद्ध नहीं था। पाकिस्तान तो केवल एक मुखौटा था; उसके पीछे चीन, तुर्की, बांग्लादेश, ईरान और यहां तक कि रूस और अमेरिका की परोक्ष छायाएँ थीं।


चीन लद्दाख में अतिक्रमण कर रहा था, और BRICS–SCO मंचों पर भारत की आवाज़ को दबा रहा था।


तुर्की कश्मीर और मुस्लिम विश्व के नाम पर भारत-विरोधी एजेंडा चला रहा था।


बांग्लादेश चीन की गोद में बैठकर पाकिस्तान के इस्लामी नैरेटिव को समर्थन दे रहा था।


ईरान ने खुलकर पाकिस्तान के पक्ष में बयान नहीं दिए, लेकिन चाबहार की ठंडक उसकी रणनीति में साफ दिखी।


रूस ने पाकिस्तान को तेल, हथियार और सैन्य अभ्यास देकर भारत की पीठ में छुरा घोंपा।


अमेरिका—ट्रंप काल में—FATF, अफगान डील और CAA पर भारत को बार-बार नीचा दिखाता रहा।



भारत एक साथ छह-सात मोर्चों पर लड़ा, लेकिन इस संघर्ष में वह अकेला पड़ता गया। कोई मंच, कोई गठबंधन, कोई 'मित्र' भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ।



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2. भूसे के बछड़े: मंचों की खोखली हकीकत


भारत ने QUAD, BRICS, SCO, UNSC जैसे मंचों में वर्षों तक विश्वास किया। लेकिन इन सभी मंचों ने भारत को संकट के समय केवल खोखले भाषण दिए।


🔹 QUAD


चीन से मुकाबले की बात होती रही, पर गलवान संघर्ष में केवल मौन समर्थन।


न कोई संयुक्त अभ्यास, न कोई प्रत्यक्ष दबाव चीन पर।



🔹 BRICS


चीन और रूस की दोस्ती, भारत के हितों पर भारी पड़ी।


भारत की हर बात को चीन ने वीटो किया—चाहे आतंकवाद हो या कश्मीर।



🔹 SCO


पाकिस्तान और चीन के साझा मंच में भारत केवल "न्यौता प्राप्त सदस्य" बनकर रह गया।


चीन ने बार-बार भारत को नीचा दिखाया।



🔹 UNSC, WTO, NSG


आज तक भारत को स्थायी सदस्यता नहीं। NSG में चीन की दीवार।


WTO में भारत की सब्सिडी पर सवाल, लेकिन अमेरिका की छूट बरकरार।



> इन मंचों ने भारत को शक्ति नहीं, केवल प्रतीक्षा दी।





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3. भारत की रणनीतिक पीड़ा: जब सबने छोड़ा


◾ ट्रंप की कूटनीतिक धूर्तता


पाकिस्तान को अफगान शांति का दरवाज़ा बनाया गया।


पाकिस्तानी जनरल वॉशिंगटन बुलाए गए।


भारत की घरेलू नीतियों पर सवाल उठे: CAA, NRC, कश्मीर।



◾ रूस की शातिर चुप्पी


भारत की पारंपरिक दोस्ती के बावजूद पाकिस्तान को रियायती तेल, हथियार और सैन्य अभ्यास।



◾ पश्चिमी दुनिया का दोगलापन


मानवाधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर भारत को घेरा गया।


कनाडा-UK जैसे देशों ने खालिस्तानी तत्वों को छूट दी।



> भारत, जिसने सबका साथ चाहा था, सबका अकेलापन भुगत रहा था।





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4. नई दिशा: कर बहियां बल अपने...


जब मंच धोखा दें, जब गठबंधनों से केवल घाव मिलें—तब राष्ट्रों को आत्मनिर्भर बनना पड़ता है। भारत अब उसी मोड़ पर है।


4.1 रक्षा में आत्मनिर्भरता


HAL, DRDO और निजी क्षेत्र के समन्वय से हथियार निर्माण।


टैंक, मिसाइल, ड्रोन से लेकर विमान तक "मेक इन इंडिया"।



4.2 ऊर्जा में संप्रभुता


सौर ऊर्जा, ग्रीन हाइड्रोजन, और थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा पर बल।


E20 एथेनॉल मिशन।



4.3 तकनीकी स्वतंत्रता


डेटा सुरक्षा कानून, भारतमाला डेटा सेंटर।


स्वदेशी 5G, ऑपरेटिंग सिस्टम, माइक्रोचिप निर्माण।



4.4 सूचना युद्ध और नैरेटिव निर्माण


विश्व पटल पर भारतीय विमर्श को मज़बूत करना।


डिजिटल राजनय, भारतीय पत्रकारों और थिंक टैंकों की वैश्विक भागीदारी।




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5. भारत की वैकल्पिक विश्वनीति: नेतृत्व की ओर


भारत को अब सिर्फ जवाब देने वाला देश नहीं, नीति निर्माता राष्ट्र बनना होगा।


◾ Global South नेतृत्व


भारत को अफ्रीका, लातिन अमेरिका और दक्षिण एशिया में नई संरचनाओं की अगुवाई करनी चाहिए।



◾ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद


भारत की परंपरा, सभ्यता और योग जैसे प्रतीकों को नैतिक शक्ति में बदलना होगा।



◾ Indo-African Corridors, Digital Alliance


भारत को चीनी बेल्ट-रोड का उत्तर बनना होगा।



> भारत अब समर्थ है। पर अब उसे समर्पण नहीं, रणनीतिक नेतृत्व चुनना होगा।





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समापन: आत्मनिर्भर भारत की विश्वनीति


भारत ने बहुत लंबा समय दूसरों के भरोसे नीति बनाने में गंवाया। अब समय है—"कर बहियां बल अपने" का। अर्थात्:


अपने कंधों पर अपनी सुरक्षा।


अपने नैरेटिव की कमान अपने हाथ।


अपने मंच, अपने सहयोगी, और अपनी दृष्टि।



भारत को अब दुनिया के नियम मानने नहीं, बदलने हैं।



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📘 अंतिम संदेश:


> अब भारत को किसी मंच की प्रतीक्षा

 नहीं करनी,

बल्कि मंच स्वयं गढ़ने हैं।

यही है — कर बहियां बल अपने।





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यदि आप चाहें तो इसका HTML, PDF या चार-भाषीय संस्करण (हिंदी, अंग्रेज़ी, अरबी, फ़ारसी) मैं तुरंत तैयार कर सकता हूँ। आगे?


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