भारत की सीमाओं पर छद्म युद्ध की रणनीति
प्रस्तावना
21वीं सदी के दूसरे दशक में आतंकवाद की वैश्विक संरचना बदल रही है। पहले जहां यह धार्मिक या क्षेत्रीय कट्टरता से संचालित होता था, अब इसे महाशक्तियाँ अपनी सामरिक नीति का हिस्सा बना रही हैं। इस परिवर्तन का सबसे खतरनाक चेहरा चीन है, जो एक ओर अंतरराष्ट्रीय शांति की बात करता है, वहीं दूसरी ओर छद्म युद्ध (Proxy War) के ज़रिए अपने पड़ोसियों — खासकर भारत — को अस्थिर करने में जुटा है।
यह लेख चीन की भूमिका को 'आतंकवाद के गॉडफादर' के रूप में प्रस्तुत करता है और विश्लेषण करता है कि कैसे वह पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए भारत की सुरक्षा को सीधे चुनौती दे रहा है।
1. नक्सलवाद और चीन: वैचारिक जड़ें
भारत में उग्र वामपंथी आंदोलन (नक्सलवाद) की उत्पत्ति 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से हुई। यह आंदोलन माओ त्से तुंग की विचारधारा से प्रेरित था, जो चीनी क्रांति के जनक माने जाते हैं। चीन ने इस आंदोलन को प्रारंभिक स्तर पर प्रत्यक्ष रूप से समर्थन नहीं दिया, परंतु विचारधारात्मक रूप से प्रेरणा दी।
- नक्सली साहित्य और दस्तावेज़ों में माओवाद का ज़िक्र स्पष्ट मिलता है।
- नेपाल के माओवादी विद्रोह को चीन से अप्रत्यक्ष समर्थन मिला, जो भारत में भी प्रभाव डालता रहा।
- कुछ खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, नक्सलियों को सीमावर्ती क्षेत्रों से हथियारों और सामग्रियों की आपूर्ति होती रही है।
चीन की यह रणनीति भारत को आंतरिक रूप से कमजोर करने की रही है ताकि वह बाहरी मोर्चों पर आसानी से दबाव बना सके।
2. पाकिस्तान और चीन का आतंक गठबंधन
पाकिस्तान और चीन का संबंध केवल रणनीतिक साझेदारी तक सीमित नहीं है, बल्कि अब यह एक गहरा आतंक गठबंधन बन गया है।
- चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कई बार मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे आतंकियों को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्तावों को वीटो किया।
- फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) में पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट होने से बचाने में चीन की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जो भारत के क्षेत्र (PoK) से होकर गुजरता है, वहां आतंकी गतिविधियाँ भी सक्रिय हैं।
यह गठजोड़ भारत की पश्चिमी सीमा पर लगातार खतरा बना रहा है। चीन की नीति है कि पाकिस्तान आतंकियों को पाले और वह उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बचाए।
3. पूर्वोत्तर भारत पर म्यांमार और बांग्लादेश के रास्ते दबाव
पूर्वोत्तर भारत चीन की रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र संवेदनशील, विविधतापूर्ण और कई उग्रवादी संगठनों से प्रभावित है।
- NSCN (IM), ULFA, PLA (Manipur) जैसे संगठन म्यांमार की सीमा से लगे जंगलों में शरण पाते हैं।
- चीन इन संगठनों को हथियार, संचार उपकरण, और प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है।
- अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में चीन की गतिविधियाँ डिजिटल निगरानी, नकली पहचान-पत्र और नकली करेंसी के रूप में भी देखी गई हैं।
बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठनों में चीन के प्रति सहानुभूति रखने वाले तत्व भी देखे गए हैं, जो भविष्य में भारत के खिलाफ इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
4. कश्मीर और पंजाब में आतंकवाद को चीनी सहायता
जहां पाकिस्तान पारंपरिक रूप से कश्मीर और पंजाब में आतंकवाद का स्रोत रहा है, वहीं अब चीन भी उसकी इस गतिविधि में एक 'साइलेंट पार्टनर' बन गया है।
- पुलवामा, उरी और पठानकोट जैसे हमलों में मिले इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज़ और ड्रोन पर चीनी निर्माण की मुहर पाई गई।
- जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के पास मिले सैटेलाइट फोनों और GPS सिस्टम्स के मूल में चीनी टेक्नोलॉजी थी।
- पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में हाल के वर्षों में ड्रोन के ज़रिए हथियारों और नशे की तस्करी में चीन निर्मित सामग्री पाई गई।
यह सब दर्शाता है कि चीन अब आतंकी नेटवर्क को हाई-टेक बना रहा है और पाकिस्तान को एक लॉजिस्टिक मार्ग के रूप में उपयोग कर रहा है।
5. डिजिटल आतंकवाद और सूचना युद्ध
चीन की सबसे खतरनाक रणनीति अब डिजिटल आतंकवाद और सूचना युद्ध के रूप में सामने आ रही है।
- TikTok, Helo और Likee जैसे चीनी ऐप्स के ज़रिए भारत के युवा वर्ग को कट्टरता की ओर मोड़ा गया।
- सोशल मीडिया पर भारत विरोधी कंटेंट को बॉट्स और फेक प्रोफाइल्स से ट्रेंड कराया जाता रहा है।
- नक्सल और कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चीन आधारित साइबर नेटवर्क फ़ेक न्यूज़ और दुष्प्रचार फैलाते हैं।
- भारत के रक्षा प्रतिष्ठानों पर चीनी हैकिंग ग्रुप्स के साइबर अटैक की घटनाएं कई बार सामने आ चुकी हैं।
यह एक प्रकार का मानसिक और सूचनात्मक युद्ध है जिसे चीन बिना सीमा पार किए लड़ रहा है।
6. वैश्विक आतंकवाद में चीन की समान रणनीति
भारत ही नहीं, चीन ने अन्य देशों में भी आतंकवाद को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है:
- तालिबान के साथ चीन की बातचीत यह दर्शाती है कि वह चरमपंथियों से व्यवहारिक संबंध बनाने में नहीं हिचकता।
- अफ्रीकी देशों (जैसे नाइजीरिया, सूडान) में चीनी परियोजनाओं की रक्षा के लिए स्थानीय आतंकी समूहों से समझौते किए गए।
- फिलीपींस, इंडोनेशिया और श्रीलंका में भी ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहां चीनी प्रभाव का लाभ आतंकवादियों को मिला।
इससे स्पष्ट होता है कि चीन का उद्देश्य केवल सामरिक विजय नहीं बल्कि वैचारिक अस्थिरता और नियंत्रण है।
7. भारत के लिए रणनीतिक उत्तर
भारत को अब चीन की इस रणनीति के खिलाफ बहुआयामी और संगठित प्रतिरोध की आवश्यकता है।
कूटनीतिक:
- चीन को आतंकवाद के संरक्षक राष्ट्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर करना।
- Quad, I2U2 और ASEAN के साथ मिलकर चीन के प्रभाव को संतुलित करना।
- तिब्बत, हांगकांग और शिनजियांग के मानवाधिकार मुद्दों पर भारत को सक्रिय रुख अपनाना।
सैन्य और सुरक्षा:
- सीमाओं पर उच्च तकनीकी निगरानी प्रणाली जैसे AI और ड्रोन आधारित निगरानी।
- साइबर सुरक्षा के लिए पृथक बल और निगरानी एजेंसियों की स्थापना।
- पूर्वोत्तर और सीमांत क्षेत्रों में जनसंपर्क और स्थानीय भागीदारी बढ़ाना।
डिजिटल और आर्थिक:
- चीनी ऐप्स, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर पर पूर्ण प्रतिबंध।
- मेड इन इंडिया विकल्पों को प्रोत्साहन देना।
- डिजिटल साक्षरता अभियान चलाना ताकि फेक न्यूज़ और प्रोपेगेंडा का मुकाबला किया जा सके।
निष्कर्ष: एक 'गॉडफादर' का असली चेहरा
चीन अब केवल एक आर्थिक और सामरिक महाशक्ति नहीं, बल्कि एक 'साइलेंट आतंकवादी' राष्ट्र बन चुका है। उसका उद्देश्य केवल भारत की सीमाओं पर नियंत्रण नहीं, बल्कि भारत के अंदरूनी ढांचे को कमजोर करना है — चाहे वह वैचारिक हो, डिजिटल हो या क्षेत्र
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