अंतरराष्ट्रीय मंचों की खोखली हकीकत: भूसे का बछड़ा और भारत का नया रास्ता

 


प्रस्तावना

भारत 21वीं सदी की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक वास्तविकता बनकर उभरा है। लेकिन इसके साथ ही उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों की खोखली हकीकत का भी अनुभव हुआ है। वैश्विक संगठन, रणनीतिक साझेदारी, और बहुपक्षीय मंच—जिनसे भारत को बड़ी उम्मीदें थीं—वास्तव में भारत के लिए “मरे हुए बछड़े की खोल में भरा गया भूसा” सिद्ध हो रहे हैं।

इन मंचों की नीतिगत निष्क्रियता, दोगली रणनीतियाँ और केवल भाषणों तक सिमटी घोषणाएँ भारत को गुमराह करती रहीं। यह लेख भारत की बहुपक्षीय विदेश नीति, इन मंचों की विफलता, और अब भारत को आगे क्या करना चाहिए, इस पर केंद्रित है।


1. वैश्विक मंचों का भ्रम: भूसे का बछड़ा

1.1 QUAD: खोखला हिंद-प्रशांत गठबंधन

QUAD (Quadrilateral Security Dialogue) को अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत का एक रणनीतिक मंच माना गया। इसका उद्देश्य था चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करना। लेकिन जब भारत को चीन से सबसे अधिक खतरा था—2020 का गलवान संघर्ष, लद्दाख में अतिक्रमण—तब QUAD केवल एक निष्क्रिय दर्शक बना रहा। न तो कोई संयुक्त सैन्य प्रतिक्रिया आई, न ही कोई ठोस नीति।

QUAD ने आपूर्ति श्रृंखला, जलवायु और डिजिटल सहयोग जैसे मुद्दों पर तो घोषणा की, पर चीन के खिलाफ कोई ठोस कार्य नहीं किया। यह भारत के लिए एक ऐसा मंच बनकर रह गया है जो केवल दिखावटी समर्थन देता है, ठोस कार्रवाई नहीं।

1.2 BRICS: बहुध्रुवीय दुनिया का झांसा

BRICS (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) को भारत ने एक वैकल्पिक वैश्विक व्यवस्था के रूप में देखा था। लेकिन चीन और रूस की आक्रामकता ने इस मंच को भारत-विरोधी बना दिया।

BRICS बैंक (NDB) हो या राजनीतिक घोषणाएं, इनसे भारत को रणनीतिक रूप से कोई लाभ नहीं हुआ। भारत जब-जब कश्मीर या आतंकवाद जैसे मुद्दों को उठाना चाहता है, चीन विरोध करता है और रूस चुप रहता है। यह मंच भारत के लिए बहुध्रुवीय समानता की जगह चीन के प्रभुत्व का औजार बन गया है।

1.3 SCO: विरोधियों का मंच

Shanghai Cooperation Organization (SCO) में भारत और पाकिस्तान दोनों सदस्य हैं। लेकिन यह मंच चीन और पाकिस्तान के हितों की पूर्ति का माध्यम बन चुका है। भारत यहाँ अलग-थलग ही दिखता है।

SCO में भारत ने कनेक्टिविटी, आतंकवाद और आर्थिक सहयोग के मुद्दों पर बातें कीं, लेकिन पाकिस्तान और चीन ने बार-बार भारत-विरोधी बातें उठाईं, जैसे कि कश्मीर। भारत इन बैठकों में भाग तो लेता है, लेकिन नीति निर्धारण में उसका कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखता।

1.4 UNSC, WTO, NSG: निष्क्रिय समर्थन

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत अब तक स्थायी सदस्य नहीं बन पाया है, जबकि उसका आर्थिक और सैन्य कद कई सदस्यों से अधिक है। चीन, फ्रांस और अमेरिका का कभी समर्थन, कभी चुप्पी – इस सदस्यता को दशकों से लंबित रखे हुए हैं।

WTO में भारत के खिलाफ कृषि सब्सिडी, डिजिटल सेवा कर और वैक्सीन पेटेंट जैसे मुद्दों पर लगातार दबाव बनाया गया। NSG (Nuclear Suppliers Group) में भी चीन ने भारत की सदस्यता को अवरुद्ध कर रखा है।


2. भारत की उम्मीदें और विश्व की असलियत

भारत को उम्मीद थी कि वह वैश्विक लोकतंत्रों के साथ खड़ा होकर साझा सुरक्षा, विकास और स्थिरता को बढ़ावा देगा। लेकिन व्यवहार में:

  • अमेरिका ने CAA और NRC जैसे आंतरिक मामलों पर आलोचना की।
  • यूरोपीय संघ ने मानवाधिकार के नाम पर भारत को बार-बार घेरा।
  • OIC (इस्लामिक देशों का संगठन) ने कश्मीर को बार-बार उठाया, पाकिस्तान के दबाव में।
  • ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों ने खालिस्तानी उग्रवादियों को संरक्षण दिया।

इन सब प्रयासों का उद्देश्य भारत को रणनीतिक रूप से कमजोर करना और उसका वैश्विक नैरेटिव नियंत्रित करना था।


3. भूसे के बछड़े की असली पहचान

इन मंचों का विश्लेषण यह स्पष्ट करता है कि:

“ये मंच केवल घोषणाएँ करते हैं, सुरक्षा नहीं; नीतियाँ बनाते हैं, समाधान नहीं; सदस्यता देते हैं, नेतृत्व नहीं।”

भारत जैसे राष्ट्र के लिए जो तेजी से उभरती शक्ति है, इन मंचों की निष्क्रियता अब रणनीतिक जोखिम बन गई है।


4. आगे क्या? भारत के लिए नई राह

जब मंच परिणाम नहीं दे रहे, तो अब भारत को अपनी विदेश नीति को नए संदर्भ में गढ़ना होगा। इसका आधार निम्न बिंदु हैं:

4.1 परिणाम आधारित गठजोड़

भारत को चाहिए कि वह केवल सदस्यता के लिए नहीं, बल्कि नीतिगत प्रभाव और सुरक्षा के लिए गठजोड़ करे। जैसे:

  • Indo-Pacific में ASEAN और अफ्रीकी देशों के साथ व्यावहारिक साझेदारी
  • रणनीतिक रक्षा सहयोग: फ्रांस, इजराइल, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ संयुक्त उत्पादन और तकनीकी हस्तांतरण

4.2 नई संरचनाएं बनाना

भारत को वैकल्पिक मंचों की शुरुआत करनी चाहिए:

  • Global South Alliance (वैश्विक दक्षिण देशों का संगठन)
  • Digital Sovereignty Forum
  • Indo-African Economic Corridor
  • South Asian Security Grid (SAARC का पुनर्निर्माण एक नई सोच के साथ)

4.3 रणनीतिक स्वावलंबन

भारत को तीन क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से काम करना होगा:

  • रक्षा उत्पादन: हथियार, मिसाइल, टैंक और ड्रोन निर्माण में पूर्ण आत्मनिर्भरता
  • ऊर्जा स्वतंत्रता: ग्रीन एनर्जी, परमाणु और हाइड्रोजन ऊर्जा पर निवेश
  • डिजिटल संप्रभुता: डेटा सुरक्षा, खुद के ऐप्स, स्वदेशी OS, चिप्स और सर्वर इंफ्रास्ट्रक्चर

4.4 भू-राजनीतिक संतुलन

भारत को पश्चिम और रूस-चीन दोनों से संतुलित दूरी बनाते हुए नए साझेदार खोजने होंगे:

  • लातिन अमेरिका: ब्राजील, अर्जेंटीना
  • अफ्रीका: केन्या, घाना, नाइजीरिया
  • प्रशांत क्षेत्र: फिजी, वानुअतु

4.5 सूचना युद्ध की कमान भारत के हाथ में

भारत को अपने नैरेटिव को वैश्विक स्तर पर स्थापित करना होगा। इसके लिए:

  • अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारतीय पत्रकारों की भागीदारी
  • थिंक टैंक और यूनिवर्सिटीज को वैश्विक मंचों से जोड़ना
  • Digital Diplomacy Cells की स्थापना, जो सोशल मीडिया और मीडिया में भारतीय हितों का प्रतिनिधित्व करें

4.6 नैतिक नेतृत्व की स्थापना

भारत को केवल सैन्य और आर्थिक शक्ति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक शक्ति के रूप में खुद को प्रस्तुत करना होगा। इसमें शामिल हैं:

  • जलवायु न्याय: वैश्विक सौर गठबंधन का नेतृत्व
  • ग्लोबल हेल्थ: कोविड वैक्सीन मैत्री जैसे उदाहरण
  • आतंकवाद विरोध: स्पष्ट और ठोस नीति, वैश्विक मंचों पर आवाज़
  • शांति निर्माण: भारत का ध्यान केवल युद्ध पर नहीं, स्थिरता पर हो

5. भारत के लिए संदेश

अब भारत को समझना होगा:

"मंचों पर तालियाँ नहीं, नीतियों में परिणाम चाहिए।"

भारत को केवल आमंत्रित सदस्य नहीं, निर्णायक नेतृत्व बनना है। उसे चाहिए कि वह अपनी विदेश नीति में "विचारधारा रहित व्यावहारिकता" को प्राथमिकता दे और आत्मनिर्भरता को रणनीतिक सुरक्षा से जोड़े।


समापन विचार

भारत ने जिस विश्वास के साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भागीदारी की, समय ने दिखा दिया कि वह विश्वास एकतरफा था। अब समय है आत्मनिर्भर और परिणामोन्मुख नीति की ओर बढ़ने का। भारत को चाहिए कि वह इन भूसे से भरे बछड़ों की जगह असली रणनीतिक साझेदारी और नए मंचों की रचना करे।

भारत यदि यह कर सका, तो वह न केवल भू-राजनीति का संतुलन बदल सकता है, बल्कि 21वीं सदी में वैश्विक नेतृत्व की नई परिभाषा भी गढ़ सकता है।

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