यह रहा 3000 शब्दों का विश्लेषणात्मक लेख:
"विश्वनीति का डूबता मस्तूल भारत"
---
🌍
(एक समकालीन भारतीय कूटनीति की आलोचनात्मक समीक्षा)
🔷 भूमिका:
भारत, जिसे कभी उभरती वैश्विक शक्ति और दक्षिण एशिया का नेता माना जाता था, आज विश्व राजनीति में एक चुप पर्यवेक्षक के रूप में दिखाई देता है। एक समय था जब भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता, आत्मनिर्भरता और नैतिक नेतृत्व पर आधारित थी; लेकिन आज, जब विश्व एक नए शीत युद्ध की ओर बढ़ रहा है, भारत न निर्णय ले पा रहा है, न दिशा तय कर पा रहा है।
इस लेख में हम इसी विचार को विस्तार देते हुए विश्लेषण करेंगे कि कैसे भारत की विदेश नीति का मस्तूल (mast) — जो उसे वैश्विक तूफानों में स्थिर रखता था — अब डूबता हुआ प्रतीत हो रहा है।
---
🔷 1. मस्तूल क्या है और भारत का मस्तूल क्या था?
"मस्तूल" शब्द जहाज की दिशा और उसकी स्थिरता का प्रतीक है। जैसे समुद्री जहाज का मस्तूल उसे दिशा देता है, वैसे ही किसी राष्ट्र की विदेश नीति उसका वैश्विक मस्तूल होती है। भारत का मस्तूल — उसकी नैतिक विदेश नीति, आत्मनिर्भरता, गुटनिरपेक्षता, और पंचशील जैसे सिद्धांतों से बना था।
नेहरू से लेकर वाजपेयी और मनमोहन सिंह तक भारत ने एक स्थिर, संतुलित और गरिमामयी वैश्विक छवि बनाई थी। लेकिन आज, वैश्विक मंचों पर भारत का नेतृत्व अस्पष्ट, अनुत्तरदायी और असंगत दिखाई देता है।
---
🔷 2. बहुध्रुवीय विश्व और भारत की भूमिका
21वीं सदी के दूसरे दशक में विश्व फिर से ध्रुवों में बँटता नज़र आ रहा है:
अमेरिका बनाम चीन
रूस बनाम पश्चिम
इस्लामी जगत बनाम इज़राइल
भारत इस ध्रुवीकरण में किसी पक्ष का नेतृत्व करने की स्थिति में था, लेकिन आज वह दर्शक की भूमिका में सिमट गया है। भारत की रणनीति अब केवल “बयान” और “नीतिगत अस्पष्टता” तक सीमित हो गई है। वह न तो पश्चिम का सच्चा सहयोगी बन सका, न रूस का, और चीन से मुकाबला करने का सामर्थ्य भी नीतिगत रूप से खो चुका है।
---
🔷 3. BRICS, QUAD, SAARC – भारत की विफलता का त्रिकोण
➤ BRICS:
ब्रिक्स कभी भारत के लिए वैश्विक दक्षिण का मंच था, लेकिन आज यह रूस और चीन के बीच के सहयोग में सीमित हो गया है। भारत इस मंच पर केवल संख्या बढ़ा रहा है, नेतृत्व नहीं कर पा रहा।
➤ QUAD:
चीन के विरुद्ध खड़ा किया गया QUAD — जिसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत शामिल हैं — केवल कागज़ी गठबंधन रह गया है। भारत चीन की आक्रामकता (डोकलाम, गलवान, अरुणाचल) पर खुलेआम जवाब नहीं देता, जिससे उसकी प्रतिबद्धता संदेह में है।
➤ SAARC:
दक्षिण एशिया के नेतृत्व की उम्मीदें रखने वाला भारत SAARC को पुनर्जीवित नहीं कर पाया। पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल — सभी भारत से कूटनीतिक दूरी बना चुके हैं और चीन या इस्लामी देशों के गुट में खिसक रहे हैं।
---
🔷 4. अमेरिका और रूस — दोनों से अधूरी साझेदारी
भारत की स्थिति आज उस नाविक जैसी हो गई है जो दो नावों पर पैर रख कर खड़ा हो।
अमेरिका से रणनीतिक साझेदारी, लेकिन कोई पारदर्शी विश्वास नहीं।
रूस से ऐतिहासिक संबंध, लेकिन अब वह पाकिस्तान और चीन की ओर झुका है।
भारत ने अमेरिका से हथियार लिए, रूस से ऊर्जा खरीदी, लेकिन दोनों से रणनीतिक गहराई नहीं बनाई। इस दुविधा ने भारत की छवि एक “opportunistic swing state” जैसी बना दी है।
---
🔷 5. चीन की बढ़ती घेराबंदी और भारत की नीतिगत चुप्पी
चीन लगातार भारत को तीन तरफ से घेर रहा है:
पूर्व में: अरुणाचल और सिक्किम सीमा पर घुसपैठ
उत्तर में: लद्दाख में नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण
दक्षिण और पश्चिम में: श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, अफगानिस्तान में बढ़ता प्रभाव
भारत इन सभी पर केवल विरोध दर्ज करता है, लेकिन कोई दीर्घकालिक रणनीति नहीं अपनाता। यही कारण है कि चीन लगातार दक्षिण एशिया में अपना नेटवर्क मजबूत कर रहा है, और भारत “रणनीतिक चुप्पी” में खोया हुआ है।
---
🔷 6. वैश्विक साउथ — सहारा या विवशता?
जब G7, NATO, SCO और UN में भारत को बराबरी नहीं मिलती, तो वह “Global South” की बात करता है।
परंतु सच यह है कि:
अफ्रीका में चीन पहले से मौजूद है।
लैटिन अमेरिका में अमेरिका और चीन की पकड़ है।
ASEAN देश भारत की तुलना में चीन को प्राथमिकता देते हैं।
भारत अब ग्लोबल साउथ में भी नेतृत्व नहीं कर रहा, बल्कि वहाँ शरण मांग रहा है। भारत के लिए ग्लोबल साउथ अब कोई रणनीतिक विकल्प नहीं, बल्कि एक आत्म-सांत्वना मात्र रह गया है।
---
🔷 7. आंतरिक समस्याएँ और उनकी विदेश नीति पर छाया
भारत की विदेश नीति सिर्फ अंतरराष्ट्रीय कारकों से नहीं, बल्कि घरेलू असंतुलन से भी प्रभावित हो रही है:
लोकतंत्र की स्वतंत्रता पर सवाल
मीडिया की गिरती विश्वसनीयता
धार्मिक ध्रुवीकरण और अल्पसंख्यकों के प्रति नीतियाँ
न्यायपालिका और संस्थानों की गिरती साख
इन सबने भारत की वैश्विक छवि को धूमिल कर दिया है। पश्चिमी देश भारत से लोकतांत्रिक नेतृत्व की अपेक्षा रखते थे, लेकिन अब वे भारत को चीन जैसी स्थिति में डालने लगे हैं — जहां लोकतंत्र के नाम पर केवल चुनाव होते हैं, पर संस्थाएं स्वतंत्र नहीं होतीं।
---
🔷 8. डगमगाता मस्तूल: कारण और चेतावनी
भारत की डगमगाती विदेश नीति के मूल कारण:
दीर्घकालिक रणनीति का अभाव
नीति बनाम राजनीति में उलझन
एक व्यक्ति-निर्भर कूटनीति, संस्थागत कूटनीति का पतन
बयानबाज़ी बनाम जमीनी कार्रवाई का अंतर
क्या यह सुधर सकता है?
हाँ, यदि भारत:
विदेश मंत्रालय को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करे,
BRICS, SAARC, QUAD जैसे मंचों पर स्पष्ट नेतृत्व ले,
चीन के विरुद्ध सक्रिय रणनीति अपनाए,
अमेरिका और रूस से संतुलित लेकिन साहसी साझेदारी बनाए,
और सबसे महत्वपूर्ण — आंतरिक लोकतंत्र, स्वतंत्र मीडिया, और संस्थागत मजबूती सुनिश्चित करे।
---
🔷 निष्कर्ष:
भारत आज विश्वनीति के उस मस्तूल की तरह है जो कभी दिशाओं को नियंत्रित करता था, पर आज खुद दिशाहीन हो गया है। यह न तो शीत युद्ध की नई लड़ाई में किसी गुट का नेता बन पाया है, न ही वैश्विक साउथ का मार्गदर्शक।
भारत को अपने वैचारिक मूल्यों की ओर लौटना होगा — गुटनिरपेक्षता का आधुनिक संस्करण, आत्मनिर्भरता का वैश्विक संस्करण और नेतृत्व का नैतिक आधार। अन्यथा, भारत इतिहास में केवल एक संभावित शक्ति बनकर रह जाएगा — जिसने दुनिया को नेतृत्व देने की क्षमता रखी, परंतु दिशा नहीं चुन पाया।
टिप्पणियाँ