अमेरिका रूस और भारतीय मेधा बनाम श्रम


बदलते दौर में भारतीय मानव श्रम की वैश्विक मांग और चुनौतियाँ

1. प्रस्तावना: श्रम के लिए बदलती वैश्विक ध्रुवता

भारत, जो कभी श्रम-आपूर्तिकर्ता देश के रूप में देखा जाता था, आज तकनीकी, औद्योगिक, स्वास्थ्य, निर्माण और सुरक्षा क्षेत्र में एक ‘मैनपावर सुपरपावर’ बनकर उभरा है। बदलते दौर में रूस और इज़राइल जैसे देश भारत से सीधे मानव श्रम आयात की वकालत कर रहे हैं, जबकि खाड़ी देशों में भारतीय श्रमिकों की विशाल उपस्थिति पहले से ही मौजूद है। वहीं, अमेरिका जैसे देश में, राजनीतिक बदलाव और चुनावी बयानबाज़ी के तहत भारत से जाने वाले टेक्नोक्रेट्स पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी भी दी जा रही है — विशेषतः ट्रंप जैसे नेताओं द्वारा।

2. रूस-इज़राइल की मांग: भारत से कुशल-अकुशल मानव बल

रूस की रणनीति: युद्ध और श्रम का संतुलन

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस को कुशल निर्माण, आधारभूत ढांचे की मरम्मत, और तकनीकी पुनर्निर्माण के लिए श्रमिकों की जरूरत है।

भारत से श्रमिक आयात की पहल रूस की श्रम शक्ति की भरपाई का प्रयास है।

रूसी प्रस्ताव ‘विशेष श्रमिक वीज़ा व्यवस्था’ के तहत भारत को एक विश्वसनीय भागीदार मानता है।

इज़राइल: कृषि से रक्षा तक भारतीय भरोसा

हमास संघर्ष के बाद इज़राइल की कृषि, निर्माण और रक्षा-सहायक क्षेत्रों में श्रमिकों की भारी कमी हुई है।

भारत और इज़राइल के बीच एक श्रम समझौता हुआ है जिसके अंतर्गत हज़ारों श्रमिक भेजे जा रहे हैं।

इज़राइल भारत को ‘न्यूनतम विवाद वाले उच्च उत्पादकता’ वाले मानव संसाधन स्रोत के रूप में देखता है।

3. खाड़ी देशों में भारतीय श्रमिक: परंपरा और परतें

सऊदी अरब, यूएई, कुवैत, क़तर, ओमान और बहरीन में 85 लाख से अधिक भारतीय प्रवासी कार्यरत हैं।

ये श्रमिक आर्थिक रूप से भारत के लिए विदेशी मुद्रा (Remittance) के स्रोत हैं— लगभग 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष।

हालाँकि खाड़ी देशों में अब नेशनलाइज़ेशन नीति के कारण भारतीय श्रमिकों की संख्या में स्थिरता या कमी की आशंका भी है।

4. अमेरिका में संकट: भारतीय ब्रेन पर ब्रेक?

ट्रंप की चेतावनी: टेक्नोक्रेट्स पर शंका

ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनते हैं तो वे H-1B वीज़ा पर रोक लगाने की बात कर चुके हैं।

उनका आरोप है कि भारतीय टेक्नोक्रेट्स अमेरिकी नौकरियों को हथिया रहे हैं और Big Tech भारत से संचालित हो रही है।

गूगल-माइक्रोसॉफ्ट चेतावनी का कारण

ट्रंप द्वारा Google, Microsoft, Amazon जैसी कंपनियों को चेतावनी देने का उद्देश्य “अमेरिका फर्स्ट” की नीति को फिर से लागू करना है।

Sundar Pichai (Google) और Satya Nadella (Microsoft) जैसे भारतीय मूल के CEO को लक्षित करना एक तरह का राष्ट्रवादी चुनावी हथकंडा भी है।

5. भारतीय श्रमिक-नीति की विडंबना

भारत में असंगठित श्रमिकों की संख्या 90% से अधिक है, फिर भी संगठित रूप से श्रम का निर्यात हो रहा है।

‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ जैसी योजनाओं के बावजूद, देश में रोजगार की कमी और प्रशिक्षण की विषमता भारत को मानव बल निर्यातक देश बना रही है।

मानव संसाधन का पलायन (Brain Drain) और शारीरिक श्रम का प्रवाह (Body Drain) — दोनों भारत के लिए दोधारी तलवार हैं।

6. नैतिक और रणनीतिक प्रश्न

क्या भारत एक उत्पादन राष्ट्र बनने के बजाय सिर्फ मानव संसाधन निर्यातक बनकर रह जाएगा?

क्या यह रोजगार की असफलता का संकेत है?

क्या विकसित देश भारतीय श्रम पर निर्भरता बढ़ाकर नव-उपनिवेशवाद का रास्ता बना रहे हैं?

7. आगे की रणनीति: भारत को क्या करना चाहिए?

i. सामरिक मानव-शक्ति नीति

सरकार को श्रमिकों की गुणवत्ता, सुरक्षा, और अंतर्राष्ट्रीय अधिकार सुनिश्चित करने वाली Global Labor Treaty की पहल करनी चाहिए।

ii. घरेलू औद्योगिकीकरण और SME सेक्टर का सशक्तिकरण

भारत को घरेलू रोजगार सृजन के लिए MSME, निर्माण, और सेवा क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना होगा।

iii. स्किल मैपिंग और अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणन

विदेश भेजे जाने वाले श्रमिकों के लिए ISO या WHO मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण कार्यक्रम अनिवार्य करने होंगे।

iv. भारतीय प्रवासी अधिकार आयोग

एक विधायी निकाय बनाना होगा जो विदेशों में भारतीय श्रमिकों के अधिकारों, वेतन, और शोषण से जुड़े मामलों की निगरानी करे।


8. निष्कर्ष: अवसर और चेतावनी


भारत के पास मानव संसाधन का महासागर है, जिसे वैश्विक मंच पर बुद्धिमानी से उपयोग किया जा सकता है। लेकिन यह तभी सार्थक होगा जब भारत रोजगार उत्पादक राष्ट्र के रूप में भी खड़ा हो, ना कि केवल मानव श्रम निर्यातक राष्ट्र के रूप में। रूस और इज़राइल जैसे देशों की मांग भारत के लिए अवसर है, लेकिन अमेरिका जैसी ताकतों की आशंका भारत के लिए चेतावनी भी है।

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