(चीन, रूस, ईरान और उत्तर कोरिया द्वारा निर्मित वैश्विक गुटबंदी और भारत की रणनीति)
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🔰 प्रस्तावना
21वीं सदी के तीसरे दशक में वैश्विक सत्ता संतुलन तेजी से बदल रहा है। जहां एक ओर पश्चिमी लोकतंत्रों का नेतृत्व अमेरिका और यूरोप कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे देश उभरकर सामने आ रहे हैं जो इस पश्चिमी वर्चस्व को चुनौती दे रहे हैं। विश्लेषकों ने इन देशों के गठजोड़ को एक नया नाम दिया है — “Axis of Upheaval” यानी उथल-पुथल की धुरी।
इस धुरी में प्रमुख हैं — चीन (Dragon), रूस (Bear), ईरान (Cleric State) और उत्तर कोरिया (Rogue Nuclear State)। ये चारों देश न केवल अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे संगठनों को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि एक नया वैश्विक तानाशाही मॉडल भी प्रस्तुत कर रहे हैं जो लोकतंत्र, मानवाधिकार और पारदर्शिता जैसे मूल्यों के विपरीत खड़ा है।
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🧭 1. शब्द का मूल और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
‘Axis’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध में हुआ था — जब जर्मनी, इटली और जापान के गठबंधन को “Axis Powers” कहा गया था। बाद में 2002 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने ‘Axis of Evil’ शब्द गढ़ा, जिसमें ईरान, इराक और उत्तर कोरिया को शामिल किया गया।
आज ‘Axis of Upheaval’ शब्द का उपयोग उन राष्ट्रों के लिए किया जा रहा है जो मौजूदा वैश्विक सत्ता व्यवस्था को उलटने या अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं।
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🌍 2. धुरी में शामिल देश और उनकी भूमिका
🇨🇳 चीन (Dragon): आर्थिक व तकनीकी अधिनायक
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जरिए 140+ देशों में निवेश।
दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों का सैन्यकरण।
हाई-टेक जासूसी और निगरानी प्रणाली का विश्व में प्रसार।
UN मंचों पर वीटो पॉलिटिक्स और विकासशील देशों को ऋण-जाल में फँसाना।
🇷🇺 रूस (Bear): सैन्य ताकत और ऊर्जा शक्ति
यूक्रेन पर आक्रमण और नाटो के विस्तार के खिलाफ सैन्य रुख।
पश्चिमी प्रतिबंधों को दरकिनार कर ईरान और चीन के साथ गठजोड़।
तेल-गैस के निर्यात के ज़रिए यूरोप पर दबाव।
Wagner Group जैसी प्राइवेट सेनाओं के ज़रिए अफ्रीका और मध्य एशिया में हस्तक्षेप।
🇮🇷 ईरान: मध्य पूर्व का उग्रवादी खिलाड़ी
इस्राइल और अमेरिका विरोधी नीति।
शिया कट्टरपंथ का प्रसार (हिज़बुल्लाह, हौथी)।
नाभिकीय कार्यक्रम पर दुनिया को बरगलाना।
चीन-रूस के साथ 25 साल का 400 अरब डॉलर का समझौता।
🇰🇵 उत्तर कोरिया: अराजक परमाणु खतरा
लगातार परमाणु परीक्षण और मिसाइल लॉन्च।
जनसंख्या पर कठोर नियंत्रण और विदेशी मीडिया पर प्रतिबंध।
चीन और रूस का संरक्षण — भोजन, ईंधन और कूटनीतिक ढाल के रूप में।
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⚙️ 3. इन देशों की साझा रणनीति
3.1 अमेरिका और नाटो का विरोध
हर वैश्विक मुद्दे पर पश्चिमी प्रस्तावों का विरोध या वीटो।
UN, WHO, IMF जैसी संस्थाओं में समानांतर समूहों का निर्माण।
अमेरिका की सैन्य उपस्थिति का विरोध — खासकर एशिया और मध्य एशिया में।
3.2 वैकल्पिक आर्थिक व्यवस्था
डॉलर से अलग हटकर रूबल-युआन व्यापार,
CIPS (चीन), SPFS (रूस) जैसे भुगतान तंत्र,
BRICS करेंसी के प्रस्ताव।
3.3 सूचना, साइबर और तकनीकी युद्ध
अमेरिका और यूरोप के चुनावों में साइबर हस्तक्षेप,
सोशल मीडिया पर फेक न्यूज, बॉट नेटवर्क और भ्रामक प्रचार,
डिजिटल निगरानी तकनीक का निर्यात (e.g. चीन की HikVision, Russia’s Kaspersky नेटवर्क)।
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🪖 4. सैन्य तालमेल और अभ्यास
Vostok, Zapad और Peace Mission जैसे संयुक्त युद्धाभ्यास।
ईरान-रूस-चीन नौसेना अभ्यास।
उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों पर चीन-रूस की चुप्पी।
यूक्रेन, सीरिया, और अफगानिस्तान में साझा सैन्य और रणनीतिक गतिविधियाँ।
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🇮🇳 5. भारत पर प्रभाव
5.1 चीन की चुनौती
डोकलाम, गलवान, अरुणाचल प्रदेश में सैन्य घुसपैठ।
भारत के पड़ोसी देशों में बढ़ता चीनी निवेश — नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार।
पूर्वोत्तर भारत में उग्रवादी समूहों को हथियार और समर्थन।
5.2 रूस का झुकाव
पारंपरिक मित्र रहा रूस अब चीन के निकट।
भारत की रक्षा निर्भरता पर असर, खासकर S-400, MIG, SU-30 जैसे सौदों में देरी।
भारत-रूस व्यापार अब रूबल और रुपये में हो रहा है लेकिन चीन की मंशा इससे जुड़ी हुई है।
5.3 ईरान और पाकिस्तान
ईरान और पाकिस्तान का सुरक्षा सहयोग,
ईरान के बंदरगाहों में चीन की मौजूदगी (चाबहार बनाम ग्वादर)
अफगानिस्तान में तालिबान को लेकर भारत और ईरान की रणनीतियों में विरोध।
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💣 6. वैश्विक अस्थिरता की आशंकाएँ
6.1 तीसरे विश्व युद्ध का खतरा
ताइवान, यूक्रेन और इस्राइल-गाजा जैसे संवेदनशील मोर्चे।
अमेरिका और नाटो बनाम Axis of Upheaval — वैश्विक सैन्य टकराव की आशंका।
6.2 वैश्विक मंदी और आपूर्ति श्रृंखला पर प्रभाव
तेल-गैस, चिप्स, फर्टिलाइज़र की सप्लाई बाधित।
चीनी बंदरगाहों पर युद्ध आशंका से वैश्विक व्यापार प्रभावित।
6.3 लोकतंत्र बनाम तानाशाही की वैचारिक लड़ाई
भारत सहित वैश्विक दक्षिण को तय करना होगा कि वह लोकतंत्र के साथ खड़ा है या अधिनायकवाद के साथ।
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🇮🇳 7. भारत की रणनीति क्या होनी चाहिए?
7.1 गुटनिरपेक्षता 2.0
भारत को स्वतंत्र रणनीतिक रास्ता अपनाना चाहिए — “Issue-based Alliance” का प्रयोग।
7.2 डिजिटल और साइबर संप्रभुता
साइबर रक्षा कमांड, 5G और AI में आत्मनिर्भरता,
डिजिटल डिप्लोमेसी और सोशल मीडिया वैकल्पिक पारिस्थितिकी।
7.3 क्षेत्रीय संतुलन और कूटनीतिक आक्रामकता
BIMSTEC, IORA, ASEAN के साथ समझौते।
Indo-Pacific में Quad (भारत-जापान-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया) को मज़बूत करना।
अफ्रीका और मध्य एशिया में भारतीय निवेश को बढ़ावा देना।
7.4 सैन्य आधुनिकीकरण और रणनीतिक निर्भरता घटाना
आत्मनिर्भर भारत के तहत रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी।
रूस और इज़राइल के साथ संयुक्त रक्षा परियोजनाएं।
📌 निष्कर्ष: भारत का वैश्विक धर्म
“Axis of Upheaval” केवल एक कूटनीतिक गठबंधन नहीं, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों, सूचना की स्वतंत्रता और वैश्विक संतुलन के लिए एक वैचारिक युद्ध है। भारत के सामने चुनौती है कि वह लोकतंत्र, स्वतंत्रता और न्याय की पक्षधर शक्ति बनकर इस धुरी का सामना करे।
भारत को अपने पुराने कूटनीतिक मूल्यों को नए रूप में ढालकर, आत्मविश्वास और विवेक के साथ “वसुधैव कुटुम्बकम्” के सिद्धांत को वैश्विक नीति में बदलना होगा।
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