भारत फिर 1947 वाली ज़मीन पर खड़ा है
लेखक: राजीव रंजन | प्रकाशन तिथि: 7 जुलाई 2025

भूमिका: इतिहास का आईना, वर्तमान का प्रतिबिंब
1947 में भारत को राजनीतिक स्वतंत्रता तो मिली, लेकिन वैश्विक शक्ति समीकरण में उसकी कोई निर्णायक भूमिका नहीं थी। आज 2025 में भी भारत विश्व के केंद्र में खड़ा होकर भी किनारे खड़ा महसूस करता है।
1. स्वतंत्रता से बाज़ार तक: भारत की वैश्विक यात्रा
1947–2025 तक भारत ने गुटनिरपेक्षता, उदारीकरण, सामरिक साझेदारियाँ और तकनीकी सशक्तिकरण जैसे कई चरण पार किए हैं। पर आज भी उसका वैश्विक प्रभाव सीमित है।
2. बाज़ार बनाम सम्मान
भारत आज एक महाशक्ति-स्तरीय बाजार तो बन गया है, लेकिन उसे वैश्विक मंचों पर निर्णयकारी भूमिका नहीं मिलती। सब उसे खरीदना चाहते हैं, पर उसका सम्मान नहीं करते।

3. चारों ओर से घेरे: विश्व शक्तियाँ और भारत
- चीन: आर्थिक व्यापार बढ़ाता है, पर सीमा पर उकसाता है।
- रूस: भारत का परंपरागत मित्र, पर अब पाकिस्तान से नजदीकियां बढ़ा रहा है।
- अमेरिका: रणनीतिक साझेदार है, पर तकनीकी समानता नहीं देता।
- फ्रांस: रक्षा बिक्री में अग्रणी, पर UNSC पर मौन।
4. 1947 जैसी मनःस्थिति: स्वतंत्रता, पर निर्णयहीनता
“सभी का थोड़ा मित्र, किसी का भी गहरा साथी नहीं — भारत की मौजूदा विदेश नीति की यही पहचान बन गई है।”
5. रणनीतिक अधूरापन
मेक इन इंडिया के बावजूद भारत अब भी हथियारों और तकनीक के लिए बाहर पर निर्भर है — यह रक्षा आत्मनिर्भरता की अधूरी कहानी है।
6. पड़ोसी और इस्लामिक राष्ट्र: चुप्पी और विरोध
भारत के चारों ओर के राष्ट्र या तो चीन के प्रभाव में हैं या भारत के विरुद्ध जनमत रखते हैं — यह सामरिक चिंता है।
7. भारत: वैश्विक खरीददार या नीति निर्धारक?
भारत को अब अपनी विदेश नीति में निर्णायक बदलाव लाना होगा, केवल खरीदार नहीं, वैश्विक नीति निर्माता बनना होगा।
8. समाधान: आत्मबल और नेतृत्व
- टेक्नोलॉजिकल आत्मनिर्भरता
- वैचारिक नेतृत्व (Global South के लिए)
- तीसरी शक्ति बनकर उभरना

निष्कर्ष
भारत को अब 1947 की तरह फिर से आत्मबल, विचार और रणनीति से नई राह बनानी होगी। दुनिया के बाजार में केवल खड़ा नहीं रहना है, उसे दिशा भी देनी है।
“2025 का भारत तभी सम्मान पाएगा, जब वह सिर्फ़ ताकतवर नहीं, नैतिक और नीति-निर्माता भी बनेगा।”
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