SCO 2025: भारत के लिए प्रमुख चुनौतियाँ

 

(SCO बैठक 2025 में भारत के समक्ष खड़ी रणनीतिक, राजनयिक और भू-राजनीतिक चुनौतियों का विश्लेषण)



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🔷 भूमिका


2025 में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक एक ऐसे समय में हुई जब वैश्विक राजनीति में अस्थिरता, बहुध्रुवीयता और क्षेत्रीय गुटबाज़ी चरम पर थी। भारत, जो स्वयं को एक संतुलित वैश्विक शक्ति के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, को SCO मंच पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ये चुनौतियाँ न केवल क्षेत्रीय हैं, बल्कि भारत की विदेश नीति की स्थिरता और रणनीतिक स्वायत्तता के लिए गंभीर सवाल भी उठाती हैं।



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🔷 1. पाकिस्तान और आतंकवाद पर दोहरा रवैया


❖ चुनौती:


SCO के सदस्य देश सार्वजनिक रूप से आतंकवाद की निंदा करते हैं, लेकिन पाकिस्तान को बार-बार “स्ट्रेटेजिक एक्सेप्शन” मिलता है। भारत द्वारा सीमापार आतंकवाद के मुद्दे को उठाने पर सदस्य देशों (विशेषतः चीन और रूस) का समर्थन कमजोर होता है।


❖ परिणाम:


पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा संयुक्त वक्तव्य नहीं निकल पाता।


भारत की आवाज़ अकेली पड़ जाती है।


SCO की "आतंकवाद विरोधी" साख पर भी सवाल उठता है।




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🔷 2. चीन की बढ़ती आधिपत्य नीति


❖ चुनौती:


चीन SCO को एक विकल्पहीन एशियाई गुट में बदलना चाहता है जहाँ उसकी रणनीतिक प्राथमिकताएँ सर्वोपरि हों – जैसे BRI परियोजना, जिसमें भारत पहले से असहमति जता चुका है।


❖ परिणाम:


भारत को हर बार BRI के विरोध में अकेले खड़ा होना पड़ता है।


चीन-प्रायोजित प्रस्तावों पर भारत को असहज समझौतों में भाग लेना पड़ता है।


सीमा विवाद के कारण परस्पर अविश्वास बढ़ता है।




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🔷 3. रूस की असमंजसपूर्ण भूमिका


❖ चुनौती:


रूस, जो कभी भारत का भरोसेमंद सहयोगी था, अब चीन के निकट जाता दिख रहा है। यूक्रेन युद्ध के चलते रूस अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग है और चीन पर अधिक निर्भर हो गया है।


❖ परिणाम:


भारत-रूस की रणनीतिक दूरी बढ़ रही है।


रूस का संतुलनकारी रवैया कमजोर हुआ है।


भारत की "मल्टी-अलाइंड" नीति पर दबाव।




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🔷 4. अफगानिस्तान और सुरक्षा संकट


❖ चुनौती:


तालिबान-शासित अफगानिस्तान SCO में पर्यवेक्षक के रूप में चर्चा का विषय रहा, लेकिन भारत के लिए यह सुरक्षा और रणनीतिक अस्थिरता का कारण है।


❖ परिणाम:


मध्य एशिया में चरमपंथ और नशीले पदार्थों का खतरा बढ़ता है।


अफगानिस्तान में पाकिस्तान-चीन की गुप्त गतिविधियाँ भारत की चिंता।


भारत की "soft presence" कमजोर पड़ती है।




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🔷 5. व्यापार और कनेक्टिविटी में बाधाएँ


❖ चुनौती:


भारत के लिए SCO देशों से सीधे व्यापार हेतु भौगोलिक बाधाएँ हैं — विशेषतः पाकिस्तान द्वारा सड़क मार्ग नहीं देना।


❖ परिणाम:


INSTC (International North South Transport Corridor) पर निर्भरता बढ़ती है।


चाबहार पोर्ट विकल्प है, लेकिन उसका SCO में समर्थन कमजोर।


भारत के व्यापार प्रस्तावों को पर्याप्त समर्थन नहीं मिलता।




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🔷 6. विचारधारा की असमानता


❖ चुनौती:


SCO का अधिकांश सदस्य समूह अधिनायकवादी या एकदलीय शासन का है, जबकि भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है। यह मूल्य आधारित टकराव भारत के कूटनीतिक निर्णयों को जटिल बनाता है।


❖ परिणाम:


मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर भारत अलग-थलग।


लोकतांत्रिक मूल्यों की आवाज़ SCO में दब जाती है।




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🔷 7. सीमित प्रभाव और नीतिगत अस्पष्टता


❖ चुनौती:


भारत SCO का सदस्य तो है, लेकिन उसकी नीति स्पष्ट नहीं है कि वह इसे केवल रणनीतिक मंच मानता है या गंभीर क्षेत्रीय गुट।


❖ परिणाम:


भारत की SCO नीति अन्य सदस्य देशों की तुलना में प्रतिक्रियात्मक दिखती है।


भारत की भूमिका स्पष्ट दिशा में नहीं बदल पा रही।




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🔷 निष्कर्ष: क्या SCO भारत के लिए अवसर है या जाल?


भारत के लिए SCO एक रणनीतिक मंच है, जहाँ वह मध्य एशिया, रूस और चीन जैसे महाशक्तियों के साथ संवाद बना सकता है। लेकिन जब ये संवाद असमानताओं, अविश्वास और अलग-अलग हितों से भरे हों, तो यह मंच अवसर से अधिक चुनौती बन जाता है।


👉 सुझाव:


भारत को SCO में अपनी भूमिका को सशक्त बनाते हुए स्पष्ट रणनीतिक लक्ष्य तय करने होंगे।


द्विपक्षीय वार्ताओं को प्राथमिकता देते हुए बहुपक्षीय मंचों पर संतुलन साधना होगा।


BRI जैसे मामलों में विरोध के साथ वैकल्पिक सहयोग मॉडल प्रस्तुत करना होगा।




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यदि आप चाहें तो इस विश्लेषण को ब्लॉग, रिपोर्ट या प्रस्तुति के रूप में तैयार किया जा सकता है — हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों में। बताइए किस रूप में चाहिए?


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