एक विस्तृत विश्लेषण (2024–2025)
योगी राज में शिक्षा
भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश, शिक्षा के क्षेत्र में अनेक प्रकार की चुनौतियों और संभावनाओं का केंद्र है। यहाँ की सरकारी विद्यालय प्रणाली न केवल राज्य के बच्चों के लिए शिक्षा का मुख्य स्रोत है, बल्कि सामाजिक समानता, लैंगिक समानता और आर्थिक समावेशन का भी माध्यम है। वर्ष 2024–2025 के शैक्षिक आंकड़े इस बात को रेखांकित करते हैं कि शिक्षा व्यवस्था में भारी परिवर्तन हो रहा है — कभी सकारात्मक, तो कभी नकारात्मक। इस लेख में हम उत्तर प्रदेश के सरकारी विद्यालयों की वर्तमान स्थिति, समस्याएं, सुधार योजनाएं और भविष्य की दिशा का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।
1. नामांकन में गिरावट: एक चिंताजनक संकेत
उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों में नामांकन में भारी गिरावट देखी गई है। वर्ष 2023-24 में कुल नामांकन 1.74 करोड़ था जो 2024–25 में घटकर लगभग 1.52 करोड़ रह गया है। यह गिरावट 22 लाख छात्रों की है। इसके कई प्रमुख कारण हैं:
- निजी स्कूलों की ओर झुकाव: मध्यवर्गीय परिवार अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा के नाम पर निजी विद्यालयों में भेजने लगे हैं।
- शहरीकरण और प्रवासन: ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन के कारण गांवों के स्कूल खाली होते जा रहे हैं।
- फर्जी नामांकन की सफाई: पहले कई स्कूलों में नाम मात्र के छात्र दर्ज थे। अब डिजिटल निगरानी और UDISE डेटा के कारण फर्जीवाड़ा कम हुआ है।
यह गिरावट राज्य सरकार के लिए चुनौती भी है और अवसर भी — एक ओर जहां यह चिंता का विषय है, वहीं यह व्यवस्था को दुरुस्त करने का भी मौका देती है।
2. विद्यालयों की संख्या और पुनर्गठन
वर्तमान में उत्तर प्रदेश में लगभग 1.3 लाख प्राथमिक और उच्च प्राथमिक सरकारी विद्यालय हैं। इनमें से लगभग 28 हजार विद्यालयों में 50 से भी कम छात्र हैं। इस कारण से सरकार ने इन स्कूलों के पुनर्गठन (school merger) की योजना बनाई है।
- Project Alankar जैसे कार्यक्रमों के तहत स्कूलों को समेकित कर इंफ्रास्ट्रक्चर और शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार किया जा रहा है।
- इन कम नामांकन वाले स्कूलों को आसपास के बड़े स्कूलों में मर्ज कर छात्रों और संसाधनों का केंद्रीकरण किया जा रहा है।
यह कदम सकारात्मक है, किंतु यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच प्रभावित न हो।
3. शिक्षक की भारी कमी
शिक्षा की गुणवत्ता का सीधा संबंध शिक्षक संख्या और गुणवत्ता से होता है। उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की भारी कमी है:
- प्राथमिक स्तर पर लगभग 1.8 लाख पद खाली हैं।
- माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर क्रमशः 40% और 59% पद रिक्त हैं।
- छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR) 39:1 है जबकि राष्ट्रीय औसत 23:1 है।
यह स्थिति अत्यंत गंभीर है। इससे छात्रों पर व्यक्तिगत ध्यान नहीं दिया जा सकता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का लक्ष्य अधूरा रह जाता है। राज्य सरकार ने मार्च 2026 तक सभी रिक्त पदों को भरने का लक्ष्य रखा है।
4. परीक्षा परिणाम और ट्रांज़िशन रेट
शैक्षिक गुणवत्ता के आकलन का एक पैमाना परीक्षा परिणाम होते हैं। उत्तर प्रदेश के छात्रों का प्रदर्शन निम्नलिखित रहा:
- CBSE कक्षा 10 में पास प्रतिशत 90.27% और कक्षा 12 में 80.1% रहा।
- राज्य ने माध्यमिक से उच्च माध्यमिक स्तर पर 76.7% ट्रांज़िशन रेट प्राप्त किया, जो देश में सबसे अधिक है।
- लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों से बेहतर रहा है।
ये आँकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि जहां एक ओर आधारभूत शिक्षा में समस्याएं हैं, वहीं माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर सुधार हो रहा है।
5. इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल परिवर्तन
सरकारी विद्यालयों की दशा सुधारने के लिए राज्य सरकार ने "Project Alankar" की शुरुआत की है। इसके तहत:
- 2,441 विद्यालयों में स्मार्ट क्लासरूम, पुस्तकालय, शौचालय, प्रयोगशाला आदि स्थापित किए गए।
- इससे स्कूलों में नामांकन में 23% की वृद्धि और उपस्थिति में औसतन 11% वृद्धि हुई है।
- ICT (सूचना प्रौद्योगिकी) लैब्स और विज्ञान प्रयोगशालाएं अभी भी लगभग 40% स्कूलों में नहीं हैं।
यह इंगित करता है कि प्रयास हो रहे हैं, लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
6. पाठ्यक्रम और शैक्षिक नवाचार
शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के लिए पाठ्यक्रम में भी बदलाव किए गए हैं:
- कक्षा 3 के लिए NCERT आधारित स्थानीय पाठ्यक्रम लागू किया गया है।
- कक्षा 4 के लिए 2026–27 में इसी तरह का पाठ्यक्रम लाने की योजना है।
यह बदलाव बच्चों को स्थानीय भाषा, परिवेश और संस्कृति के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने में सहायक होगा।
7. सहायता प्राप्त स्कूलों की उदासीनता
उत्तर प्रदेश में लगभग 4,000 से अधिक सहायता प्राप्त विद्यालय हैं। इन स्कूलों में प्रशासनिक और डाटा पारदर्शिता की भारी कमी है:
- केवल 1% स्कूलों ने ही अपने शिक्षक और नामांकन डाटा को UDISE पोर्टल पर अपडेट किया है।
- इससे नीतिगत योजना में बाधा आती है और जवाबदेही नहीं बन पाती।
राज्य सरकार को इन स्कूलों को जवाबदेह बनाने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।
8. सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
सरकारी विद्यालय केवल शिक्षा का माध्यम नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन के केंद्र भी हैं। परंतु, BSP जैसी पार्टियाँ सरकारी स्कूलों में गिरते नामांकन को लेकर चिंता जता रही हैं और मदरसों को बढ़ावा देने की बात कह रही हैं।
इससे साफ है कि शिक्षा भी राजनीतिक विमर्श का विषय बन चुकी है, जो कभी-कभी सकारात्मक सुधारों को राजनीतिक विवाद में उलझा देती है।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में सरकारी विद्यालयों की स्थिति एक जटिल मिश्रण है — कहीं प्रगति तो कहीं गिरावट। एक ओर जहां इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार, ट्रांज़िशन रेट और परिणाम में सकारात्मकता है, वहीं नामांकन में गिरावट, शिक्षक की कमी और सहायता प्राप्त स्कूलों की निष्क्रियता चिंता का विषय हैं।
आवश्यक है कि सरकार शिक्षा को राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठाकर एक मिशन के रूप में देखे। 'शिक्षा का अधिकार' केवल नीति पत्रों में नहीं, ज़मीनी सच्चाई में दिखना चाहिए। तभी उत्तर प्रदेश की नई पीढ़ी सशक्त, सक्षम और संवेदनशील नागरिक बन सकेगी।
टिप्पणियाँ