#रूस-चीन गठजोड़ और भारत की रणनीतिक दुविधा
#RIC Triangle in Crisis: India’s Position Amid China-Russia Closeness
रूस सदैव एक स्वतंत्र और संप्रभु महाशक्ति के रूप में वैश्विक राजनीति में सक्रिय रहा है। शीत युद्ध काल में अमेरिका के समकक्ष और सोवियत संघ के उत्तराधिकारी के रूप में उसकी पहचान एक वैश्विक शक्ति की थी। परंतु 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद उत्पन्न भू-राजनीतिक असंतुलन, पश्चिमी देशों के प्रतिबंध और आंतरिक आर्थिक संकट ने रूस को चीन की ओर झुकाव के लिए विवश किया है। यह स्थिति भारत के लिए एक नई कूटनीतिक चुनौती बनती जा रही है, क्योंकि रूस भारत का पारंपरिक मित्र और रक्षा साझेदार रहा है।
1. यूक्रेन युद्ध और रूस की वैश्विक स्थिति में गिरावट
2022 में यूक्रेन पर रूस के सैन्य आक्रमण ने वैश्विक व्यवस्था में भूचाल ला दिया। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर व्यापक आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिससे रूसी बैंकिंग व्यवस्था, ऊर्जा निर्यात और तकनीकी क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए।
रूस की निर्भरता चीन पर तेजी से बढ़ी —
ऊर्जा निर्यात (गैस-तेल) अब यूरोप से हटकर चीन की ओर केंद्रित हो गया है।
माइक्रोचिप, हाईटेक उपकरण और सैन्य तकनीक में चीन का विकल्प बनना शुरू हो गया है।
पश्चिमी फर्मों के रूस छोड़ने के बाद चीनी कंपनियों ने शून्य को भरा।
SCO, BRICS जैसे मंचों पर भी अब चीन की प्रधानता स्पष्ट है, जहाँ रूस अब जूनियर साझेदार के रूप में देखा जाने लगा है।
2. चीन-रूस की बढ़ती नजदीकियां: रणनीतिक साझेदारी या अधीनता?
चीन और रूस दोनों अमेरिका के नेतृत्व वाली पश्चिमी विश्व व्यवस्था के आलोचक रहे हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे के समीप आए। लेकिन इस समीपता में असंतुलन स्पष्ट है।
2022 के बाद द्विपक्षीय व्यापार में 30% से अधिक की वृद्धि हुई।
चीन रूस से ऊर्जा और कच्चे माल को भारी छूट पर खरीद रहा है।
सैन्य अभ्यासों (Vostok, Northern Interaction) में रूस अब चीन के नेतृत्व का पालन करता दिखता है।
AI, ड्रोन और उपग्रह तकनीक में रूस अब चीन पर निर्भर होता जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी रूस की चीन पर निर्भरता स्पष्ट है – जैसे संयुक्त राष्ट्र में चीन की प्राथमिकता और अफ्रीकी देशों में रूस की भूमिका अब चीन समर्थक बन रही है।
3. भारत-रूस संबंध: ऐतिहासिक मित्रता पर संकट
भारत और रूस (तथा पूर्व में सोवियत संघ) के संबंध शीत युद्ध काल से ही अत्यंत घनिष्ठ रहे हैं:
रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार रहा है – Su-30, MIG, S-400, ब्रह्मोस जैसी परियोजनाएं।
रूस ने 1971 युद्ध के समय भारत को सुरक्षा परिषद में वीटो के माध्यम से समर्थन दिया।
अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और रणनीतिक स्वायत्तता में भी रूस भारत का सहयोगी रहा।
लेकिन आज:
रूस-पाकिस्तान रक्षा संपर्क (हेलीकॉप्टर, संयुक्त अभ्यास) बढ़ रहे हैं।
रूस-चीन सैन्य गठजोड़ भारत के लिए असहज है।
ब्रह्मोस जैसी भारत-रूस साझेदार परियोजनाओं की तकनीकी लीक की आशंका बढ़ी है।
रूसी मीडिया और संस्थान अब भारत को अमेरिकी समर्थक बताकर संदिग्ध नज़र से देखने लगे हैं।
भारत, रूस और चीन के बीच 'रणनीतिक त्रिकोण' की अवधारणा अब छलावे से अधिक कुछ नहीं लगती, क्योंकि रूस का झुकाव स्पष्टतः चीन की ओर होता जा रहा है। इस त्रिकोण में भारत न तो समान अधिकार वाला भागीदार दिखता है और न ही रूस उसकी सुरक्षा चिंताओं को गंभीरता से लेता है।
RIC त्रिकोण: क्या अब केवल छलावा?
RIC (Russia-India-China) त्रिकोण की अवधारणा 1990 के दशक में बहुध्रुवीय विश्व की उम्मीद के साथ उभरी थी। इसका उद्देश्य था – वैश्विक सत्ता संतुलन, संयुक्त राष्ट्र में सुधार, आतंकवाद पर सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता। लेकिन वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में RIC की उपयोगिता पर गहरे प्रश्नचिन्ह हैं:
चीन की आक्रामक विस्तारवादी नीति ने भारत-चीन विश्वास को तोड़ा है (डोकलाम, गलवान)।
रूस अब चीन की गोद में बैठा हुआ नजर आता है – आर्थिक, तकनीकी और कूटनीतिक रूप से।
भारत RIC की तुलना में अब QUAD, I2U2 और Indo-Pacific जैसे मंचों में सक्रिय है।
RIC अब केवल औपचारिक बयानबाज़ी का मंच बनकर रह गया है, जिसमें भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता। यह मंच आज की वास्तविकता से मेल नहीं खाता।
4. भारत के लिए रणनीतिक असहजता
भारत की विदेश नीति स्वायत्तता पर आधारित रही है, लेकिन:
चीन-रूस निकटता से भारत को Indo-Pacific में अलग-थलग किया जा सकता है।
QUAD (भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया) जैसे मंचों पर भारत की सक्रियता रूस को चीन की ओर और अधिक झुका सकती है।
यदि रूस पूरी तरह चीन के अधीन हो जाता है, तो भारत के लिए दो मोर्चों पर सैन्य और कूटनीतिक दबाव बढ़ जाएगा – चीन और पाकिस्तान।
SCO (शंघाई सहयोग संगठन) जैसे मंचों पर भी यह रणनीतिक असहजता सामने आई है, जहाँ आतंकवाद के मुद्दे पर भारत की आवाज़ को बार-बार दबाया गया है। चीन और पाकिस्तान के विरोध के चलते भारत आतंकवाद की स्पष्ट निंदा का प्रस्ताव तक पारित नहीं करवा सका, जबकि रूस ने भी इस मामले में तटस्थ रुख अपनाया। यह भारत के लिए एक कूटनीतिक हार की तरह रहा है।
भारत को यह समझना होगा कि अब केवल परंपरागत मित्रता पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है।
5. एशिया में बदलता शक्ति संतुलन
रूस की कमजोरी और चीन की आक्रामक कूटनीति एशिया में संतुलन को बिगाड़ रही है:
मध्य एशिया में चीन का प्रभाव तेज़ी से बढ़ा है, जहाँ पहले रूस प्रभावशाली था।
अफगानिस्तान में चीन-पाकिस्तान रणनीतिक समझदारी बन रही है।
भारत के चारों ओर चीन की ‘String of Pearls’ रणनीति और रूस की निष्क्रियता – दोनों ही खतरनाक हैं।
BRICS जैसे मंचों पर चीन की आर्थिक शक्ति के सामने रूस और भारत दोनों फीके लगते हैं।
6. भारत की संभावित रणनीतियाँ और विकल्प
भारत को निम्नलिखित रणनीतिक विकल्प अपनाने चाहिए:
(क) रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में विविधता:
अमेरिका, फ्रांस, इज़राइल, दक्षिण कोरिया जैसे देशों से रक्षा और तकनीकी साझेदारी बढ़ाना।
परमाणु और नवीकरणीय ऊर्जा में रूस पर निर्भरता घटाना।
(ख) संवाद बनाये रखना:
रूस के साथ रणनीतिक संवाद जारी रहना चाहिए।
Track-II diplomacy, बहुपक्षीय मंचों पर संवाद बनाए रखना भारत के हित में है।
(ग) मल्टी-एलायंस नीति:
केवल QUAD पर नहीं, बल्कि यूरोप, जापान, ASEAN के साथ बहुआयामी सहयोग।
G20 और SCO जैसे मंचों पर लचीली कूटनीति अपनाना।
(घ) चीन की घेराबंदी:
Indo-Pacific रणनीति को मज़बूत करना।
बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका जैसे पड़ोसियों में निवेश और संपर्क बढ़ाना।
निष्कर्ष
रूस यदि चीन की कठपुतली बन जाता है, तो यह न केवल उसकी स्वतंत्र शक्ति की पहचान को समाप्त कर देगा, बल्कि भारत के लिए एक गहन कूटनीतिक संकट पैदा करेगा। भारत को अपनी स्वायत्त विदेश नीति के तहत संतुलन साधते हुए नए साझेदारों की ओर देखना होगा।
रूस के साथ पुराना रिश्ता न तोड़ा जाए, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया जाए कि भारत की रणनीतिक सुरक्षा केवल एक शक्ति पर आधारित न हो। 21वीं सदी में भारत को बहुध्रुवीयता और विवेकपूर्ण संतुलन की नीति अपनानी होगी — तभी वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकेगा।
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