महरौली , लाल कोट और क़ुतुब मीनार: इतिहास की दब गई परतें
दिल्ली, भारत की राजधानी, एक ऐसा नगर है जिसकी हर ईंट इतिहास की कहानियाँ कहती है। जब हम दिल्ली के स्मारकों की बात करते हैं, तो सबसे पहले जो नाम ज़ेहन में आता है, वह है – क़ुतुब मीनार। परंतु इस मीनार की नींव जिस भूमि पर रखी गई, उसका इतिहास बहुत पुराना और भारतीय परंपरा से जुड़ा हुआ है। यह स्थान था – मिहिरावली, जो आज महरौली क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र का संबंध न केवल खगोलशास्त्र से है, बल्कि हिंदू और जैन मंदिरों, वैदिक परंपरा, और तोमर वंश की राजधानी लाल कोट किले से भी रहा है।
यह लेख क़ुतुब मीनार के निर्माण से पहले के सांस्कृतिक, धार्मिक और खगोलीय इतिहास को उजागर करने का प्रयास है, जिसमें मिहिरावली और लाल कोट के गहरे संदर्भों को शामिल किया गया है।
महरौली: दिल्ली की सबसे प्राचीन जीवित परंपरा
महरौली को दिल्ली की सबसे पुरानी बसी हुई बस्ती माना जाता है। यह वह स्थान है जहां वैदिक, गुप्त, राजपूत, और इस्लामी युगों के निशान एक साथ मिलते हैं। यहीं स्थित था "मिहिरावली" — एक ऐसा स्थल जिसका नाम वराहमिहिर जैसे खगोलशास्त्रियों की परंपरा से जुड़ा हुआ माना जाता है।
"मिहिर" शब्द संस्कृत में सूर्य या खगोलशास्त्री को इंगित करता है और "वली" का अर्थ होता है – स्थान। इस प्रकार मिहिरावली का अर्थ हुआ – सूर्य पूजकों या खगोलविदों का स्थान।
मिहिरावली का खगोलीय और धार्मिक महत्त्व
मिहिरावली केवल एक भू-स्थान नहीं था, बल्कि यह हिंदू वैदिक संस्कृति, खगोलविद्या, ज्योतिष और धार्मिक अनुष्ठानों का केंद्र था। यहाँ स्थित लौह स्तंभ इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।
लौह स्तंभ:
क़ुतुब परिसर में स्थित यह लौह स्तंभ आज भी वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य का विषय है क्योंकि यह लगभग 1600 वर्षों से बिना जंग लगे खड़ा है। शिलालेख के अनुसार यह स्तंभ सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने विष्णुपद गिरि पर स्थापित किया था। इसे कई इतिहासकार खगोलशास्त्रीय उपयोग के लिए बने ध्रुव स्तंभ के रूप में देखते हैं।
यह स्तंभ यह भी दर्शाता है कि यह स्थल वैष्णव परंपरा का धार्मिक स्थल रहा होगा। इसके आधार पर संस्कृत में ब्राह्मी लिपि में खुदे शिलालेख इस स्थान की धार्मिकता को सिद्ध करते हैं।
लाल कोट का किला: तोमरों की राजधानी
महरौली क्षेत्र में स्थित एक और ऐतिहासिक संरचना है – लाल कोट का किला। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में तोमर वंश के राजा अनंगपाल तोमर ने कराया था। यह वही राजा थे जिनके नाम का उल्लेख लौह स्तंभ पर भी मिलता है।
लाल कोट को ही बाद में पृथ्वीराज चौहान ने विस्तारित कर किला राय पिथौरा का रूप दिया। यह किला हिंदू शासन व्यवस्था, सुरक्षा और संस्कृति का केंद्र था। यही वह किला है जो 1192 में मोहम्मद ग़ोरी के आक्रमण के दौरान टूटा और उसके पश्चात मिहिरावली क्षेत्र पर इस्लामी आधिपत्य स्थापित हुआ।
मंदिरों का विध्वंस और इस्लामी स्थापत्य
ग़ोरी की विजय के बाद उसके सेनापति क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने मिहिरावली क्षेत्र में 27 हिंदू और जैन मंदिरों को ध्वस्त कर उनके अवशेषों से कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण करवाया। यह भारत में बनी पहली मस्जिदों में से एक मानी जाती है।
मस्जिद की दीवारों और स्तंभों में आज भी हिंदू स्थापत्य के अवशेष जैसे नृत्य करती अप्सराएं, शंख, चक्र, कलश, मकरमुख, गणेश और अन्य देवी-देवताओं की आकृतियाँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं। यह वास्तुकला सिद्ध करता है कि यह मस्जिद किसी मुस्लिम शैली में नहीं, बल्कि पूरी तरह मंदिरों के ढांचे को पुनः प्रयोग कर बनाई गई थी।
क़ुतुब मीनार: इतिहास का प्रतिस्थापन
क़ुतुब मीनार को ऐबक ने विजय स्तंभ के रूप में शुरू किया और बाद में इल्तुतमिश और फिरोजशाह तुगलक ने इसे पूर्ण किया। परंतु इसकी दिशा, सामग्री और निर्माण शैली यह संकेत देते हैं कि इसका वास्तुशिल्प मंदिर स्थापत्य से प्रेरित था।
यह भी माना जाता है कि मीनार संभवतः एक प्राचीन वेधशाला का स्तंभ रहा हो, जिसका संबंध सूर्य या ध्रुव नक्षत्र की दिशा निर्धारण से रहा हो। यह परिकल्पना मिहिरावली के खगोलशास्त्रीय स्वरूप को और अधिक प्रमाणित करती है।
इतिहासकारों और प्रमाणों की भूमिका
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अलेक्जेंडर कनिंघम जैसे ब्रिटिश पुरातत्त्ववेत्ताओं ने स्वीकार किया कि कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद मंदिरों के स्तंभों से बनाई गई है।
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ASI (भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण) ने भी माना है कि परिसर में मंदिरों के खंडहरों का पुनः उपयोग हुआ है।
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संस्कृत शिलालेखों में अनंगपाल तोमर द्वारा दिल्ली बसाए जाने और लौह स्तंभ की स्थापना का उल्लेख है।
सांस्कृतिक विस्मृति और पुनर्स्मरण
मिहिरावली, लाल कोट और क़ुतुब मीनार – ये तीनों एक ही स्थान की परतें हैं, परंतु भारतीय इतिहास लेखन में केवल क़ुतुब मीनार को केंद्र में रखकर बाकी सांस्कृतिक और वैदिक विरासत को विस्मृत कर दिया गया।
यह केवल स्थापत्य नहीं, बल्कि सांस्कृतिक प्रतिस्थापन (Cultural Replacement) का उदाहरण है, जहाँ एक पूरी सभ्यता को मिटाकर उसके ऊपर दूसरी पहचान आरोपित की गई।
दिल्ली का यह भूभाग केवल एक मीनार या मस्जिद नहीं, बल्कि भारतीय खगोलविद्या, धार्मिक आस्था, स्थापत्य कला और वैदिक परंपरा का गवाही देने वाला क्षेत्र है। मिहिरावली को जानना, लाल कोट को समझना, और क़ुतुब मीनार के पीछे के मौन इतिहास को उजागर करना आज के भारत के लिए ऐतिहासिक न्याय की दिशा में एक ज़रूरी कदम है।
सुझाव
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क़ुतुब परिसर में "मिहिरावली संस्कृति संग्रहालय" स्थापित किया जाए।
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ASI द्वारा मंदिरों और खगोलशास्त्रीय अवशेषों के चिन्हों की स्पष्ट पहचान की जाए।
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इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में महरौली के वैदिक और राजपूत अतीत को यथोचित स्थान मिले।
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