प्रतिस्पर्धा का नया चेहरा
विश्व राजनीति और वैश्विक व्यापार अब केवल हथियारों और सैन्य टकरावों तक सीमित नहीं है — आपूर्ति शृंखला नियंत्रण (Supply Chain Warfare) आज का नया रणनीतिक हथियार बन चुका है। भारत और चीन के बीच संबंधों में छिपा हुआ संघर्ष अब खुलकर वस्तुओं की आपूर्ति और प्रौद्योगिकी अवरोधों में परिवर्तित हो रहा है।
वर्ष 2025 में चीन द्वारा रेयर अर्थ एलॉयज (Rare Earth Alloys) और रासायनिक उर्वरकों की भारत को आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाना इसका सबसे ताजा और चिंताजनक उदाहरण है। यह घटना भारत के लिए केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक चेतावनी है।स्तारित लेख यथावत रहेगा)
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चीन की रोक: तथ्य और परिप्रेक्ष्य
1. दुर्लभ मक्ष्य
1. दुर्लभ मृदा की आपूर्ति पर नियंत्रण
रेयर-अर्थ तत्त्व जैसे नियोडिमियम, प्रासीडिमियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम इत्यादि:
विद्युत मोटर, पवन टर्बाइन, मिसाइल नियंत्रण प्रणाली, ड्रोन, मोबाइल, लैपटॉप आदि में उपयोगी होते हैं।
भारत इनका लगभग 90% चीन से आयात करता है।
चीन ने अप्रैल 2025 में "राष्ट्रीय सुरक्षा" का हवाला देते हुए मैग्नेटिक रेयर-अर्थ एलॉयज के निर्यात पर नियंत्रण सख्त कर दिया। इससे भारत की इलेक्ट्रॉनिक, रक्षा और वाहन निर्माण इंडस्ट्री प्रभावित हुई है।
2. रासायनिक उर्वरकों पर निर्यात प्रतिबंध
भारत की कृषि उत्पादन प्रणाली मुख्यतः DAP, यूरिया और पोटाश पर आधारित है।
भारत 40% से अधिक DAP और 20% से अधिक पोटाश आयात करता है, जिनमें चीन एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
मई 2025 में चीन ने खाद्य सुरक्षा का हवाला देकर उर्वरकों के निर्यात पर सीमाएं लागू कर दीं।
इस कदम से भारत में विशेषकर खरीफ फसल की बुआई पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
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चीन की नीति का उद्देश्य क्या है?
चीन यह भलीभांति जानता है कि भारत की आत्मनिर्भरता को झटका देने का सबसे सटीक तरीका उसकी वर्तमान औद्योगिक निर्भरता को बाधित करना है।
> दुर्लभ मृदा की आपूर्ति रोककर वह भारत की रक्षा और विनिर्माण क्षमता पर अंकुश लगाना चाहता है।
उर्वरकों की रोक से वह भारत की कृषि उत्पादकता और खाद्य मूल्यों को अस्थिर करना चाहता है।
यानी यह युद्ध नहीं, परंतु "आर्थिक घुटन रणनीति" (Strategic Chokehold) है।
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भारत का संभावित प्रतिवाद
भारत को इस स्थिति में संयम और रणनीतिक सक्रियता दोनों के साथ जवाब देना होगा। इस उत्तर को तीन स्तरों पर बांटा जा सकता है:
1. तात्कालिक रणनीति: लक्षित चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध
भारत को उन चीनी वस्तुओं पर आयात प्रतिबंध लगाना चाहिए जिनमें भारत में उत्पादन की पूरी संभावना है:
श्रेणी भारत में उत्पादन की क्षमता रणनीतिक असर
मोबाइल/टेलीविज़न असेंबली उच्च Foxconn, Lava को बल
खिलौने और सजावटी सामान अत्यधिक MSMEs को नवजीवन
सस्ते उपकरण-पुर्जे मध्यम PLI योजना से सपोर्ट
स्टेशनरी, पटाखे उच्च स्वदेशी अभियान को बल
इस कदम से भारत चीन को यह संकेत देगा कि भारत मात्र खरीदार नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धी उत्पादक भी बन सकता है।
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2. मध्यम अवधि रणनीति: घरेलू उत्पादन को पुनर्जीवित करना
(क) दुर्लभ मृदा उद्योग
भारत सरकार ने ₹5,000 करोड़ की "रेयर अर्थ आत्मनिर्भर योजना" का ऐलान किया है।
DAE और NMDC के संयुक्त उपक्रमों को खनन और प्रसंस्करण हेतु सक्षम किया जा रहा है।
IIT, BARC, DRDO जैसे संस्थानों को स्थानीय रीसाइक्लिंग और प्रोसेसिंग तकनीकों पर अनुसंधान हेतु फंड मिल रहा है।
(ख) उर्वरक उत्पादन
गोविंदपुर, गोरखपुर, सिंदरी, रामागुंडम जैसे पुराने संयंत्रों को पुनर्जीवित किया गया है।
जैविक और नैनो-उर्वरकों के लिए विशेष प्रोत्साहन योजनाएं लागू की गई हैं।
IFFCO, NFL जैसी कंपनियों को तकनीकी सहायता और वित्तीय निवेश प्रदान किया जा रहा है।
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3. दीर्घकालीन रणनीति: वैश्विक गठबंधन और तकनीकी नवाचार
(क) वैश्विक वैकल्पिक स्रोत
भारत को "China Plus One" नीति के तहत अन्य देशों से आपूर्ति बढ़ानी चाहिए:
उत्पाद संभावित साझेदार लाभ
रेयर अर्थ ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, वियतनाम लोकतांत्रिक और पारदर्शी व्यवस्था
पोटाश कनाडा, बेलारूस स्थापित सप्लाई नेटवर्क
फॉस्फेट मोरक्को, जॉर्डन सस्ते और दीर्घकालीन अनुबंध
(ख) तकनीकी नवाचार
E-waste से रेयर अर्थ की पुनर्प्राप्ति पर अनुसंधान।
जैविक और स्मार्ट उर्वरकों (जैसे Seaweed Extract, Nano-Fert) का विकास।
कृषि में उर्वरक उपयोग की दक्षता हेतु IoT और AI आधारित सलाह प्रणाली का निर्माण।
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आर्थिक और भू-राजनीतिक असर
भारत के लिए लाभ
स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, विशेषकर MSME और तकनीकी स्टार्टअप को।
रोज़गार में वृद्धि — ग्रामीण और औद्योगिक क्षेत्रों में नए अवसर।
वैश्विक साख में इजाफा — भारत एक स्वतंत्र और सशक्त आपूर्ति केंद्र बन सकता है।
चीन पर दबाव
भारत के ₹1.5 लाख करोड़ के बाजार पर प्रत्यक्ष हानि।
आपूर्ति श्रृंखला में भारत के बिना वैश्विक कंपनियों की असहजता।
भारत-ASEAN-EU सहयोग चीन की अर्थनीति को चुनौती दे सकता है।
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निष्कर्ष: रणनीतिक आत्मनिर्भरता ही उत्तर है
यह स्पष्ट है कि चीन की आपूर्ति रोक रणनीति केवल व्यापारिक निर्णय नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक संप्रभुता को चुनौती देने का एक रूप है।
इसका उत्तर न केवल वाणी में, बल्कि कूटनीति, नीति और उत्पादन में दिया जाना चाहिए। भारत को चाहिए कि:
1. स्थानीय क्षमता निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता दे,
2. लक्षित और सोच-समझकर चीनी आयातों पर प्रतिबंध लगाए,
3. वैश्विक साझेदारी और तकनीकी नवाचा
र को बढ़ावा दे।
तभी भारत 21वीं सदी में "आपूर्ति-आधारित साम्राज्यवाद" के विरुद्ध सफल हो पाएगा — और आत्मनिर्भरता केवल एक नारा नहीं, एक वास्तविकता बन जाएगी।
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