भारत-अमेरिका संबंध: अमेरिका की दादागिरी और भारत की लाचारी

भारत-अमेरिका संबंध: अमेरिका की दादागिरी और भारत की लाचारी

भारत-अमेरिका संबंध: अमेरिका की दादागिरी और भारत की लाचारी

🔸 प्रस्तावना (Introduction)

भारत और अमेरिका के रिश्ते 21वीं सदी में गहरे होते जा रहे हैं। लेकिन इस साझेदारी में शक्ति संतुलन अक्सर अमेरिका के पक्ष में झुकता दिखता है। अमेरिका की नीतियाँ कई बार भारत के निर्णयों को प्रभावित करती हैं, जिससे "रणनीतिक साझेदारी" की जगह "रणनीतिक दबाव" नज़र आता है।

🔸 अमेरिका की दादागिरी के उदाहरण (American Pressure Tactics)

  • CAATSA: रूस से S-400 डील पर भारत को प्रतिबंधों की धमकी।
  • H-1B वीज़ा: भारतीय IT पेशेवरों के लिए बाधाएं।
  • डिफेंस समझौते: LEMOA, COMCASA, BECA जैसे समझौते अमेरिकी हितों के अनुरूप।
  • WTO में रुख: भारत की सब्सिडी नीति और बाजार सुरक्षा का विरोध।
  • रूस-यूक्रेन युद्ध: भारत की तटस्थता की आलोचना, पश्चिमी गठबंधन का दबाव।

🔸 भारत की स्थिति: लाचारी या संतुलन? (Helplessness or Balance?)

भारत न तो अमेरिका का पक्का सहयोगी है, न रूस या चीन का। वह हर मोर्चे पर स्वतंत्र नीति बनाने की कोशिश करता है।

  • रूस से सस्ते तेल की खरीद जारी रखी
  • QUAD (अमेरिका) और SCO/BRICS (चीन-रूस) दोनों में सक्रिय
  • रुपया व्यापार, डिजिटल स्वायत्तता जैसे कदमों से डॉलर निर्भरता कम करने की कोशिश

🔸 चीन फैक्टर (China Factor)

भारत और चीन के बीच LAC पर तनाव और इंडो-पैसिफ़िक रणनीति में अमेरिका का हस्तक्षेप भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए मजबूर करता है। अमेरिका भारत को First Line Ally की भूमिका में देखना चाहता है, पर यह भूमिका भारत की स्वतंत्र विदेश नीति से टकराती है।

🔸 व्यापार विश्लेषण (India-US Trade: 2010–2024)

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार लगातार बढ़ा है, पर असंतुलन अब भी मौजूद है।

🔸 निष्कर्ष (Conclusion)

भारत को अमेरिकी दादागिरी के सामने झुकने की बजाय अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखनी चाहिए। एक परिपक्व लोकतंत्र और आर्थिक शक्ति के रूप में भारत को संतुलित, निर्भीक और आत्मनिर्भर विदेश नीति पर जोर देना होगा। दोस्ती हो, लेकिन बराबरी की शर्त पर।

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