दिल्ली में भूजल दोहन: धरती के भीतर सूखते जीवन-स्रोत की त्रासदी




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प्रकाशन तिथि: 10 जून 2025


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प्रस्तावना: जल संकट की ओर बढ़ता महानगर

देश की राजधानी दिल्ली, जहाँ एक ओर चमचमाती इमारतें, चौड़ी सड़कें और तीव्र विकास दिखाई देता है, वहीं दूसरी ओर धरती के गर्भ में एक भयावह संकट आकार ले रहा है—भूजल का अत्यधिक दोहन। यह संकट अब न सिर्फ पर्यावरणीय संतुलन को चुनौती दे रहा है, बल्कि जनस्वास्थ्य, सामाजिक स्थिरता और भविष्य की जीवन-रेखाओं को भी सीधे प्रभावित कर रहा है।

दिल्ली में जल संकट कोई नई बात नहीं है, परंतु जिस गति से भूजल स्तर गिरता जा रहा है, वह आने वाले वर्षों में एक बड़े जल-संकट का संकेतक बन चुका है। यह लेख दिल्ली में भूजल दोहन की समस्या को विस्तार से समझता है, उसके कारणों, प्रभावों, सरकारी प्रयासों और संभावित समाधानों की गहराई से पड़ताल करता है।


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1. दिल्ली का जल परिदृश्य: आवश्यकता बनाम उपलब्धता

दिल्ली की जनसंख्या वर्तमान में 3.2 करोड़ के करीब पहुँच चुकी है। जल की मांग प्रतिदिन लगभग 1100 मिलियन गैलन (MGD) है, जबकि दिल्ली जल बोर्ड केवल 935 MGD तक ही आपूर्ति कर पाता है। इस अंतर को पाटने के लिए लोगों ने निजी स्तर पर ट्यूबवेल और बोरवेल का सहारा लेना शुरू किया है, जिससे भूजल पर निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है।

केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board - CGWB) की वर्ष 2024 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के 11 में से 9 जिले 'गंभीर' या 'अत्यधिक दोहन' (Over-Exploited) की श्रेणी में आ चुके हैं।


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2. भूजल स्तर में गिरावट: आंकड़ों की भयावहता

अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों और सरकारी रिपोर्टों में यह स्पष्ट हुआ है कि दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में भूजल स्तर हर वर्ष 10 से 25 सेंटीमीटर तक गिर रहा है।

● सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र:

द्वारका: यहाँ औसतन 20-25 सेंटीमीटर प्रति वर्ष गिरावट दर्ज की गई है।

संगम विहार, नरेला, रोहिणी और वसंत कुंज: इन क्षेत्रों में जल स्तर 40 मीटर से भी नीचे चला गया है।

यमुना पार क्षेत्र: यहाँ भी स्थिति गंभीर है क्योंकि भूजल में भारी मात्रा में नाइट्रेट व अन्य प्रदूषक पाए जा रहे हैं।



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3. भूजल दोहन के प्रमुख कारण

● बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण

दिल्ली की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। प्रवासी आबादी और अनधिकृत कॉलोनियों के विस्तार से जल की मांग पर जबरदस्त दबाव पड़ा है। इन क्षेत्रों में पाइपलाइन से जल आपूर्ति नहीं होने के कारण लोग भूजल पर ही निर्भर हो गए हैं।

● अनियंत्रित निजी बोरवेल

दिल्ली में लाखों अवैध बोरवेल बिना किसी अनुमति के संचालित हो रहे हैं। सरकार के दिशा-निर्देशों के बावजूद इन पर निगरानी का अभाव है।

● वर्षा जल संचयन की उपेक्षा

वर्षा जल का उचित संचयन नहीं किया जा रहा है। रेनवाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली केवल कागज़ों में दिखती है, या बेजान ढांचे की तरह भवनों की छतों पर पड़ी रहती है।

● औद्योगिक इकाइयाँ और व्यावसायिक केंद्र

दिल्ली में स्थित हज़ारों लघु और मध्यम दर्जे की औद्योगिक इकाइयाँ भूजल का बड़े पैमाने पर दोहन करती हैं। इनमें अधिकांश इकाइयाँ बिना जल शोधन संयंत्र के कार्य कर रही हैं।


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4. भूजल प्रदूषण: गुणवत्ता का संकट

केवल मात्रा ही नहीं, दिल्ली के भूजल की गुणवत्ता भी गिरती जा रही है। जल में फ्लोराइड, नाइट्रेट, आर्सेनिक, हेवी मेटल्स और बैक्टीरियल संदूषण की बढ़ती मात्रा अब स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुकी है।

विशेष रूप से यमुना के पास वाले क्षेत्रों में भूजल में सीवर जल का रिसाव पाया गया है, जिससे यह पीने योग्य नहीं रह गया है। इससे डायरिया, हैजा, फ्लोरोसिस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ा है।


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5. सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

भूजल की गिरती स्थिति का सबसे बड़ा असर गरीब और हाशिए पर खड़े वर्गों पर पड़ता है। निम्न आय वर्ग की कॉलोनियाँ जहाँ नगर पालिका जल आपूर्ति नहीं कर पातीं, वहाँ महिलाओं और बच्चों को लंबी दूरी तय कर पानी लाना पड़ता है। इसके कारण:

बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है।

महिलाओं का स्वास्थ्य और समय दोनों पर बोझ बढ़ता है।

जल खरीदने के लिए आय का बड़ा हिस्सा खर्च होता है।



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6. सरकारी प्रयास: नीतियाँ और उनकी विफलताएँ

● दिल्ली जल बोर्ड की पहल

दिल्ली जल बोर्ड ने रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य किया है, और कुछ क्षेत्रों में पुनर्चक्रित जल आपूर्ति की भी शुरुआत की है। परंतु निगरानी तंत्र की कमी, जन-जागरूकता का अभाव, और भ्रष्टाचार इन प्रयासों को निष्प्रभावी बना रहे हैं।

● CGWA के निर्देश

केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने निजी बोरवेलों के लिए लाइसेंस प्रणाली शुरू की है, परंतु अधिकांश लोग इस प्रक्रिया से अनजान हैं या जानबूझकर इसका उल्लंघन करते हैं।

● वर्षा जल संचयन के आदेश

2001 में ही दिल्ली सरकार ने भवन निर्माण में रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य कर दिया था, परंतु 2025 तक केवल 20% इमारतों में ही यह कार्यान्वित हुआ है।


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7. विशेषज्ञों की चेतावनी

डॉ. अनूप श्रीवास्तव, पर्यावरण वैज्ञानिक, कहते हैं:

> "दिल्ली की जल आपूर्ति यमुना, गंगा और भूजल पर निर्भर है। यमुना पहले से ही मृतप्राय है, गंगा से आने वाला जल सीमित है, और अब भूजल भी समाप्ति की कगार पर है। अगर तुरंत कठोर कदम नहीं उठाए गए तो यह संकट जन विद्रोह में भी बदल सकता है।"




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8. संभावित समाधान

● रेनवाटर हार्वेस्टिंग का अनिवार्य और व्यावहारिक क्रियान्वयन

सभी सरकारी और निजी भवनों में वर्षाजल संचयन को कार्यात्मक बनाया जाए। इसके लिए इंसेंटिव और दंड दोनों प्रणाली लागू की जानी चाहिए।

● जल पुनर्चक्रण और ग्रे वाटर का उपयोग

वाशबेसिन, शावर, वॉशिंग मशीन जैसे स्रोतों से निकले पानी को पुनः उपयोग में लाया जाए, जिससे ताजे जल पर दबाव घटे।

● अवैध बोरवेल पर सख्त कार्रवाई

नगर निगमों और स्थानीय प्राधिकरणों को निगरानी अधिकार सौंपे जाएँ। GPS आधारित सर्वे और रजिस्ट्रेशन से अवैध दोहन को रोका जा सकता है।

● सामुदायिक जल प्रबंधन

स्थानीय कॉलोनियाँ और RWA मिलकर जल समिति बनाएं, जो जल उपयोग की निगरानी और संरक्षण सुनिश्चित करें।


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9. दिल्ली की जनता की भूमिका

सरकार और वैज्ञानिक तो समाधान सुझा सकते हैं, लेकिन असल परिवर्तन तभी संभव है जब नागरिक स्वयं जल संरक्षण को जीवन शैली का हिस्सा बनाएँ:

नल खुला न छोड़ें

गाड़ी, छत या फर्श धोने के लिए पाइप की जगह बाल्टी का प्रयोग करें

बच्चों को स्कूलों में जल संरक्षण की शिक्षा दी जाए



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10. निष्कर्ष: अब भी समय है जागने का

दिल्ली में भूजल संकट आज की समस्या नहीं, कल की आपदा है। इसका समाधान सिर्फ नीतियों या अभियानों से नहीं, बल्कि नीति, समाज और नागरिकों के त्रिकोणीय प्रयास से ही संभव है। अगर अब भी जागरूकता, सहभागिता और सख्ती नहीं लाई गई, तो अगली पीढ़ी के लिए दिल्ली एक पानी-विहीन शहर बन सकती है।

यह संकट मौन है, परंतु इसकी पुकार को अनसुना करना भविष्य से विश्वासघात होगा।


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🖋️ [डॉ. राजीव रंजन]

पर्यावरण एवं जल संरक्षण विशेषज्ञ


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