Asian Unity Explained: भारत-चीन-पाक-बांग्लादेश के बीच सहयोग संभव?

 






21वीं सदी को "एशियाई सदी" की और आशा जा रही है, जिसकी पृष्ठभूमि चीन और भारत की आर्थिक प्रगति, वैश्विक शक्ति के पुनर्वितरण और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के उभार में निहित है। चीन, भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों की स्थिति, संसाधन, जनसंख्या और भू-रणनीतिक विशेषताएँ यह संकेत देती हैं कि यदि सहयोग की मानसिकता विकसित की जाए तो यह क्षेत्र विश्व व्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।




२. चारों देशों की वर्तमान स्थिति: शक्ति, संसाधन और सीमाएँ




भारत, चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश दक्षिण और पूर्व एशिया के सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्र हैं। इन चारों की विशिष्ट भूमिकाएं, सामर्थ्य और समस्याएँ निम्नलिखित प्रकार से विश्लेषित की जा सकती हैं:




देश राजनीतिक प्रणाली आर्थिक स्थिति वैश्विक भूमिका




भारत लोकतंत्र 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था QUAD, BRICS, G20 सदस्य


चीन एकदलीय साम्यवादी शासन 2वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था UNSC स्थायी सदस्य, BRI नेतृत्व


पाकिस्तान लोकतंत्र/सैन्य संतुलन आर्थिक संकट, IMF पर निर्भरता OIC, चीन पर निर्भरता


बांग्लादेश लोकतंत्र तेज़ विकास दर, टेक्सटाइल हब SAARC, BIMSTEC में सक्रिय






यह तालिका स्पष्ट करती है कि चारों देशों में विकास की गति, संरचना और कूटनीतिक भूमिका में भिन्नता है, परंतु वे एक-दूसरे के पूरक भी हो सकते हैं।




३. ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भू-राजनीतिक संबंध




(क) साझा इतिहास:




भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश कभी एक उपनिवेश थे। सांस्कृतिक, भाषिक और पारिवारिक संबंध आज भी विद्यमान हैं।




चीन का भारत से ऐतिहासिक संपर्क बौद्ध धर्म, रेशम मार्ग और प्राचीन दूतावासों के माध्यम से रहा है।






(ख) विभाजन और वैमनस्य:




भारत-पाकिस्तान विभाजन और 1971 के युद्ध की छाया आज भी संबंधों पर है।




भारत-चीन युद्ध (1962), डोकलाम विवाद, गलवान संघर्ष ने संबंधों में विश्वास की कमी पैदा की है।






(ग) भू-रणनीतिक टकराव:




चीन का BRI और पाकिस्तान के साथ CPEC भारत की संप्रभुता को चुनौती देता है।




पाकिस्तान की कश्मीर नीति और भारत विरोधी आतंकवाद को समर्थन क्षेत्रीय सहयोग में सबसे बड़ी बाधा है।






४. सहयोग के संभावित क्षेत्र




(क) आर्थिक सहयोग:




भारत-बांग्लादेश में बिजली, वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण में सहयोग हो रहा है।




यदि भारत-पाकिस्तान व्यापार बहाल हो तो फार्मा, कृषि, और कपड़ा क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं।




चीन और भारत तकनीकी और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में साझेदारी कर सकते हैं यदि सीमा विवाद को नियंत्रित किया जाए।






(ख) उर्जा और जल संसाधन:




ब्रह्मपुत्र, सिंधु, गंगा जैसी नदियाँ साझा हैं।




चारों देश जल-बंटवारे और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हैं — सहयोग से टिकाऊ समाधान संभव हैं।






(ग) शिक्षा और स्वास्थ्य:




विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों में सहयोग;




महामारी प्रतिक्रिया प्रणाली, दवाओं की आपूर्ति श्रृंखला (जैसे कोविशील्ड-बांग्लादेश को निर्यात)।






(घ) पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान:




बौद्ध पर्यटन सर्किट, उर्दू-हिंदी साझा विरासत, बंगाली संस्कृति का प्रसार




चीन की कन्फ्यूशियस नीति बनाम भारत की सॉफ्ट पावर रणनी


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२. चारों देशों की वर्तमान स्थिति: शक्ति, संसाधन और सीमाएँ




भारत, चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश दक्षिण और पूर्व एशिया के सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्र हैं। इन चारों की विशिष्ट भूमिकाएं, सामर्थ्य और समस्याएँ निम्नलिखित प्रकार से विश्लेषित की जा सकती हैं:




देश राजनीतिक प्रणाली आर्थिक स्थिति वैश्विक भूमिका




भारत लोकतंत्र 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था QUAD, BRICS, G20 सदस्य


चीन एकदलीय साम्यवादी शासन 2वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था UNSC स्थायी सदस्य, BRI नेतृत्व


पाकिस्तान लोकतंत्र/सैन्य संतुलन आर्थिक संकट, IMF पर निर्भरता OIC, चीन पर निर्भरता


बांग्लादेश लोकतंत्र तेज़ विकास दर, टेक्सटाइल हब SAARC, BIMSTEC में सक्रिय






यह तालिका स्पष्ट करती है कि चारों देशों में विकास की गति, संरचना और कूटनीतिक भूमिका में भिन्नता है, परंतु वे एक-दूसरे के पूरक भी हो सकते हैं।




३. ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भू-राजनीतिक संबंध




(क) साझा इतिहास:




भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश कभी एक उपनिवेश थे। सांस्कृतिक, भाषिक और पारिवारिक संबंध आज भी विद्यमान हैं।




चीन का भारत से ऐतिहासिक संपर्क बौद्ध धर्म, रेशम मार्ग और प्राचीन दूतावासों के माध्यम से रहा है।






(ख) विभाजन और वैमनस्य:




भारत-पाकिस्तान विभाजन और 1971 के युद्ध की छाया आज भी संबंधों पर है।




भारत-चीन युद्ध (1962), डोकलाम विवाद, गलवान संघर्ष ने संबंधों में विश्वास की कमी पैदा की है।






(ग) भू-रणनीतिक टकराव:




चीन का BRI और पाकिस्तान के साथ CPEC भारत की संप्रभुता को चुनौती देता है।




पाकिस्तान की कश्मीर नीति और भारत विरोधी आतंकवाद को समर्थन क्षेत्रीय सहयोग में सबसे बड़ी बाधा है।






४. सहयोग के संभावित क्षेत्र




(क) आर्थिक सहयोग:




भारत-बांग्लादेश में बिजली, वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण में सहयोग हो रहा है।




यदि भारत-पाकिस्तान व्यापार बहाल हो तो फार्मा, कृषि, और कपड़ा क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं।




चीन और भारत तकनीकी और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में साझेदारी कर सकते हैं यदि सीमा विवाद को नियंत्रित किया जाए।






(ख) उर्जा और जल संसाधन:




ब्रह्मपुत्र, सिंधु, गंगा जैसी नदियाँ साझा हैं।




चारों देश जल-बंटवारे और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हैं — सहयोग से टिकाऊ समाधान संभव हैं।






(ग) शिक्षा और स्वास्थ्य:




विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों में सहयोग;




महामारी प्रतिक्रिया प्रणाली, दवाओं की आपूर्ति श्रृंखला (जैसे कोविशील्ड-बांग्लादेश को निर्यात)।






(घ) पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान:




बौद्ध पर्यटन सर्किट, उर्दू-हिंदी साझा विरासत, बंगाली संस्कृति का प्रसार




चीन की कन्फ्यूशियस नीति बनाम भारत की सॉफ्ट पावर रणनीति






५. सहयोग में प्रमुख बाधाएँ




(क) भारत-चीन सीमा विवाद:




LAC, गलवान और अरुणाचल पर दावे द्विपक्षीय विश्वास को तोड़ते हैं।




भारत की रणनीतिक मजबूती चीन को असहज करती है, विशेषतः QUAD और इंडो-पैसिफिक नीति के कारण।






(ख) भारत-पाकिस्तान तनाव:




कश्मीर, आतंकवाद, सियाचिन और करतारपुर जैसे मुद्दे निरंतर अस्थिरता के स्रोत हैं।




पाकिस्तान के आतंकी संगठनों को समर्थन सहयोग की सबसे बड़ी बाधा है।






(ग) चीन की प्रभुत्ववादी नीति:




BRI और ऋण-जाल कूटनीति से वह अपने पड़ोसियों को अधीन बनाना चाहता है।




भारत के प्रति चीन की असहिष्णुता उसके समकक्ष के रूप में स्वीकार करने में दिखती है।






(घ) घरेलू राजनीति और राष्ट्रवाद:




चारों देशों में राष्ट्रवादी शक्तियाँ कूटनीतिक समझौते को ‘कमजोरी’ मानती हैं।




चुनावों के समय पाकिस्तान-विरोध या चीन-विरोध आंतरिक राजनीति का हिस्सा बनता है।






६. क्षेत्रीय मंच और उनका प्रभाव




(क) SAARC:




पाकिस्तान-भारत तनाव के कारण निष्क्रिय।




बांग्लादेश और नेपाल इसके भविष्य को लेकर शंकित।






(ख) BIMSTEC:




भारत और बांग्लादेश सक्रिय, लेकिन पाकिस्तान अनुपस्थित।




व्यापार, तकनीक और आपदा प्रबंधन में सहयोग की संभावनाएँ।






(ग) SCO:




चीन और भारत दोनों शामिल, पाकिस्तान भी सदस्य।




आतंकवाद विरोध, ऊर्जा सुरक्षा पर चर्चा होती है।




परंतु सीमित परिणाम, रणनीतिक अविश्वास बना रहता है।






(घ) BBIN:




बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल समूह, पाकिस्तान बाहर।




सड़क सं


पर्क, व्यापार और पर्यावरण पर ध्यान।




७. वैश्विक शक्तियों की भूमिका




(क) अमेरिका:




अमेरिका दक्षिण एशिया में भारत को चीन के मुकाबले एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में देखता है।




भारत-अमेरिका रक्षा और तकनीकी सहयोग, QUAD, IPEF जैसे मंचों पर आधारित है।




अमेरिका पाकिस्तान के साथ संबंधों को रणनीतिक दृष्टि से सीमित रूप में बनाए रखता है।






(ख) रूस:




रूस पारंपरिक रूप से भारत का सहयोगी रहा है, लेकिन अब चीन के साथ अधिक घनिष्ठ हो रहा है।




रूस पाकिस्तान के साथ भी हथियार व्यापार और रणनीतिक संपर्क बढ़ा रहा है।






(ग) यूरोपीय संघ:




यूरोपीय संघ बांग्लादेश और भारत के साथ व्यापार व मानवाधिकारों पर आधारित सहयोग को बढ़ावा देता है।




यह क्षेत्रीय स्थिरता में रुचि रखता है, परंतु सुरक्षा नीति में सीमित भूमिका निभाता है।






(घ) संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षीय संस्थाएँ:




संयुक्त राष्ट्र और IMF जैसी संस्थाएँ क्षेत्र में आर्थिक स्थिरता और जलवायु-संवेदनशील परियोजनाओं में सहयोग कर सकती हैं।




BRI और CPEC जैसी परियोजनाएँ भी UN के सतत विकास लक्ष्यों से जुड़ी हो सकती हैं यदि उन्हें पारदर्शिता और स्थानीय सहभागिता मिले।






८. भारत की भूमिका: संतुलनकारी शक्ति या क्षेत्रीय नेता?




भारत के समक्ष दो विकल्प हैं:




1. संतुलनकारी शक्ति: चीन और अमेरिका के बीच, भारत संतुलनकारी भूमिका निभाकर क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ा सकता है। यह भूमिका अधिक समावेशी और सहयोग आधारित होगी।






2. क्षेत्रीय नेता: भारत यदि दक्षिण एशिया में नेतृत्व का दावा करता है, तो उसे अधिक उत्तरदायित्व लेना होगा — आर्थिक सहयोग, आपदा प्रबंधन, शिक्षा, और स्वास्थ्य में अग्रणी बनकर।








भारत को यह समझना होगा कि प्रभुत्व नहीं, बल्कि समावेश और साझा विकास ही सहयोग को स्थायी बना सकते हैं।




९. निष्कर्ष: क्या यह सपना केवल कल्पना है या निकट भविष्य की संभावना?




भारत, चीन, पाकिस्तान और बां

ग्लादेश का सहयोग अभी अव्यावहारिक प्रतीत हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक रूप में यह दक्षिण एशिया को एक नया स्वरूप दे सकता है। इसके लिए आवश्यक है:




राजनीतिक इच्छाशक्ति




कूटनीतिक यथार्थवाद




साझा हितों की पहचान




आपसी सम्मान और संप्रभुता का पालन




आतंकवाद और कट्टरता का निषेध




जन संवाद और सांस्कृतिक संपर्क का विस्तार






यदि इन सिद्धांतों पर अमल हो, तो एशिया एक नया शक्ति केंद्र बन सकता है


 — जहाँ विविधता, लोकतंत्र, नवाचार और समावेशी विकास का मेल हो। यही 21वीं सदी की वास्तविक एशियाई सदी होगी।


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