चीन क्यों रोक रहा है भारत का विकास रथ?

 


रणनीतिक, आर्थिक और वैचारिक परिप्रेक्ष्य में







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🔷 प्रस्तावना




21वीं सदी की वैश्विक राजनीति में भारत और चीन दो ऐसे राष्ट्र हैं जो अपने-अपने विकास मॉडल, वैश्विक दृष्टिकोण, और रणनीतिक लक्ष्यों के कारण लगातार आमने-सामने खड़े होते जा रहे हैं। भारत जहां लोकतंत्र, समावेशिता और मानवाधिकार आधारित वैश्विक व्यवस्था का समर्थन करता है, वहीं चीन केंद्रीकृत सत्ता, नियंत्रण और प्रभुत्व की ओर अग्रसर है।




इन दोनों शक्तियों का परस्पर टकराव अब केवल सीमाओं या व्यापार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक वैचारिक, तकनीकी, भूराजनीतिक और कूटनीतिक संघर्ष का रूप ले चुका है। इस पृष्ठभूमि में यह आवश्यक है कि भारत चीन को केवल एक “चुनौती” के रूप में न देखे, बल्कि उसे एक बहुआयामी विरोधी, एक रणनीतिक परीक्षक, और एक सभ्यतामूलक विकल्प के रूप में समझे।






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🔷 1. चीन की रणनीतिक दृष्टि: एशिया पर वर्चस्व की आकांक्षा




चीन की विदेश नीति का मूल आधार है: "झोन्गगुओ" (Zhongguo) यानी ‘विश्व का केंद्र’ बनने की भावना। इसके तहत वह एशिया में किसी भी दूसरी शक्ति, विशेषकर भारत को अपने समकक्ष नहीं देखना चाहता।




✳ भारत को घेरने की रणनीति:




चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)




हंबनटोटा (श्रीलंका), चट्टग्राम (बांग्लादेश), ग्वादर (पाकिस्तान) जैसे बंदरगाहों पर नियंत्रण




नेपाल, मालदीव, भूटान, म्यांमार में निवेश के माध्यम से भारत की कूटनीतिक पकड़ कमजोर करना






✳ QUAD और Indo-Pacific में भारत की सक्रियता चीन को असहज करती है।




इसलिए चीन भारत को रणनीतिक स्तर पर सीमित रखने की लगातार कोशिश करता है।






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🔷 2. व्यापारिक असंतुलन और तकनीकी निर्भरता




चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, लेकिन यह संबंध अत्यंत असमान और असंतुलित है। भारत का चीन से आयात निर्यात की तुलना में तीन गुना अधिक है।




✳ समस्या की जड़ें:




सस्ते चीनी उत्पाद भारतीय उद्योगों को नुकसान पहुँचाते हैं।




डंपिंग नीति के जरिए चीन भारत के MSME सेक्टर को कुचलता है।




मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों को इससे बाधा मिलती है।






✳ डिजिटल डोमिनेशन:




मोबाइल, CCTV, एप्लिकेशन (TikTok, UC Browser आदि) के माध्यम से चीन भारत के डिजिटल इकोसिस्टम में गहराई से घुसा हुआ है।




इससे डेटा सुरक्षा, निजता, और राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।






इस परिप्रेक्ष्य में चीन केवल एक व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि एक डिजिटल उपनिवेशवादी शक्ति भी बन जाता है।






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🔷 3. वैश्विक मंचों पर चीन की अड़चनकारी भूमिका




चीन निरंतर भारत को वैश्विक कूटनीतिक मंचों पर सीमित करने की नीति पर काम कर रहा है।




✳ प्रमुख उदाहरण:




UNSC की स्थायी सदस्यता का विरोध




NSG (Nuclear Suppliers Group) में भारत की सदस्यता रोकना




जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकियों को वैश्विक आतंकी घोषित करने में वीटो का प्रयोग




ब्रिक्स जैसे मंचों पर भारत की स्वतंत्र आवाज को नियंत्रित करना






यह स्पष्ट करता है कि चीन भारत को केवल क्षेत्रीय शक्ति बनाए रखना चाहता है, उसे वैश्विक नेतृत्व से वंचित रखना उसकी रणनीति है।



🔷 4. वैचारिक और सांस्कृतिक टकराव: लोकतंत्र बनाम अधिनायकवाद


भारत और चीन न केवल भौगोलिक, बल्कि वैचारिक रूप से भी दो विपरीत ध्रुव हैं। यह संघर्ष अब वैश्विक विमर्श में एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

भारत चीन

लोकतंत्र एकदलीय तानाशाही

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मीडिया सेंसरशिप

विविधता और बहुलवाद केंद्रीकरण 

मानव अधिकार दमन और निगरानी

भारत का लोकतांत्रिक मॉडल चीन के शासन मॉडल के लिए वैधता की चुनौती बनता जा रहा है। यही कारण है कि चीन भारत को एक "लोकतांत्रिक आदर्श" के रूप में उभरने से रोकना चाहता है।

🔷 5. साइबर युद्ध और सुरक्षा खतरे

चीन आज केवल भू-सीमा तक सीमित नहीं है। वह साइबर-स्पेस में भी घुसपैठ कर रहा है। भारत सरकार द्वारा 200 से अधिक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध इस खतरे का संकेत हैं।

✳ मुख्य चिंताएं:

डेटा चोरी और जासूसी

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से निगरानी

इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे टेलीकॉम, बिजली ग्रिड आदि में चीनी हस्तक्षेप

साइबर युग में यह एक नया "युद्ध का मैदान" है, जहां चीन एक छाया युद्ध लड़ रहा है।

🔷 6. भारत की आंतरिक स्थिरता को प्रभावित करने का प्रयास

चीन भारत की आंतरिक राजनीति, विशेषकर सीमावर्ती राज्यों और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विचारधारात्मक और अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के प्रयास करता रहा है।

अरुणाचल प्रदेश पर दावा

पाकिस्तान के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में अस्थिरता को समर्थन

आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध में अड़चन

इससे भारत की आंतरिक स्थिरता प्रभावित होती है और आर्थिक-सामाजिक विकास की गति धीमी हो जाती है।

🔷 7. चीन का वैश्विक छवि युद्ध

चीन "सॉफ्ट पावर" के माध्यम से भारत के वैकल्पिक नेतृत्व को भी कमजोर करने की कोशिश करता है:

Confucius Institutes के ज़रिए शिक्षा पर नियंत्रण

विश्व मीडिया में भारत विरोधी नैरेटिव फैलाना

विकासशील देशों में भारत की सहायता की छवि को कमज़ोर करना

🔷 भारत की ओर से उत्तर: चुनौती का उत्तराधिकार

भारत ने बीते वर्षों में चीन की इन गतिविधियों का कई स्तरों पर उत्तर दिया है:

1. चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध और डिजिटल आत्मनिर्भरता

2. विकल्पीय आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण

3. QUAD, I2U2, Indo-Pacific जैसे रणनीतिक गठबंधनों में भागीदारी

4. ब्रिक्स और SCO जैसे मंचों पर मुखरता

5. सीमा क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास (BRO और ISRO के माध्यम से)

🔷 निष्कर्ष: केवल चुनौती नहीं, चेतावनी भी

चीन भारत के लिए केवल एक चुनौती नहीं है। वह:

एक रणनीतिक बाधा,

एक आर्थिक असंतुलन का स्रोत,

एक डिजिटल खतरा,

एक वैचारिक प्रतिद्वंद्वी,

और एक कूटनीतिक अवरोध है।

भारत को चीन की इन बहुआयामी नीतियों का विवेकपूर्ण, दूरदर्शी और आत्मनिर्भर उत्तर देना होगा। भारत का लोकतंत्र, युवा शक्ति, विविधता और वैश्विक स्वीकार्यता उसकी सबसे बड़ी ताकत हैं। चीन का मुकाबला केवल हथियारों या तकनीक से नहीं, बल्कि सभ्यता, विचार और नेतृत्व के स्तर पर किया जाना चाहिए।

🔷 उपसंहार

21वीं सदी का वैश्विक नेतृत्व केवल GDP या सैन्य ताकत से तय नहीं होगा, बल्कि इससे तय होगा कि कौन-सी व्यवस्था मानवता के लिए अधिक न्यायपूर्ण, टिकाऊ और स्वतंत्र भविष्य का मार्ग दिखा सकती है।

भारत के लिए चीन न केवल एक चुनौती है, बल्कि एक अवसर भी — यह सिद्ध करने का कि लोकतंत्र, बहुलतावाद और समावेशिता के रास्ते भी विश्व नेतृत्व संभव है।


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