भारत-अमेरिका की बढ़ती दूरी और भारतीय शेयर बाजार पर प्रभाव

 भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती राजनीतिक और आर्थिक दूरियों का असर केवल कूटनीतिक संबंधों तक सीमित नहीं है; यह भारतीय शेयर बाजार पर भी गहराई से प्रभाव डाल रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका की केंद्रीय भूमिका और भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बीच यह तनाव वित्तीय बाजारों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।


1. भारत-अमेरिका दूरी के प्रमुख कारक

(क) रूस-यूक्रेन युद्ध और ऊर्जा सुरक्षा

  • अमेरिका ने भारत के रूस से तेल आयात करने और यूक्रेन पर तटस्थ रुख अपनाने की आलोचना की है।
  • इस स्थिति ने दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को बढ़ाया है।

(ख) व्यापारिक असंतुलन और संरक्षणवाद

  • अमेरिका ने भारत के आयात-निर्या
    त नीतियों को लेकर आपत्ति जताई है।
  • H-1B वीजा प्रतिबंधों और ई-कॉमर्स कंपनियों पर नियामकीय बाधाओं ने भारतीय आईटी और स्टार्टअप सेक्टर पर असर डाला है।

(ग) वैश्विक निवेश प्रवाह पर प्रभाव

  • अमेरिका द्वारा फेडरल रिजर्व की ब्याज दरें बढ़ाने से भारतीय बाजारों से विदेशी पूंजी का बहिर्गमन बढ़ा है।

2. भारतीय शेयर बाजार पर प्रभाव

(क) एफपीआई (FPI) की निकासी

  • अमेरिकी नीतियों और भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (Foreign Portfolio Investors) भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं।
  • 2023 में, भारतीय बाजार से ₹1.5 लाख करोड़ से अधिक की निकासी हुई।

(ख) तकनीकी और आईटी सेक्टर पर दबाव

  • भारतीय आईटी कंपनियां, जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं, अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों से प्रभावित हो रही हैं।
  • इंफोसिस, टीसीएस, और विप्रो जैसी कंपनियों के शेयर की कीमतों में गिरावट देखी गई।

(ग) डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर

  • अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव और निवेश की कमी के कारण रुपया कमजोर हो रहा है।
  • इससे आयातित वस्तुओं की कीमत बढ़ी और मुद्रास्फीति पर असर पड़ा।

(घ) ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र

  • अमेरिका से ऊर्जा और रक्षा उपकरणों के आयात में देरी या बाधा आने से संबंधित कंपनियों के शेयर प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

3. दीर्घकालिक जोखिम और संभावनाएं

(क) निवेश की कमी और विकास पर असर

  • यदि अमेरिका-भारत के संबंध और खराब होते हैं, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था में एफडीआई (FDI) प्रवाह को धीमा कर सकता है।
  • मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी सेक्टर में अमेरिकी कंपनियों की भागीदारी घट सकती है।

(ख) भारत के लिए अवसर

  • अमेरिका के साथ तनाव से भारत के लिए अपने घरेलू उद्योगों को आत्मनिर्भर बनाने का अवसर मिलता है।
  • भारत रूस, चीन, और यूरोपीय संघ के साथ संबंध मजबूत कर सकता है, जिससे वैश्विक स्तर पर नई संभावनाएं उभरेंगी।

4. निवेशकों के लिए सलाह

(क) विविधता में निवेश

  • निवेशकों को भारतीय बाजारों के अलावा अन्य उभरते बाजारों में निवेश का विकल्प तलाशना चाहिए।
  • डॉलर के मुकाबले कमजोर रुपये से बचाव के लिए निवेश को विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में विभाजित करना फायदेमंद हो सकता है।

(ख) दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाएं

  • बाजार में अल्पकालिक अस्थिरता के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक विकास की संभावना मजबूत बनी हुई है।

(ग) आईटी और टेक सेक्टर पर नजर

  • अमेरिकी नीतियों से प्रभावित होने वाले सेक्टरों में निवेश करते समय सतर्कता बरतें।

5. निष्कर्ष

भारत-अमेरिका के बीच बढ़ती दूरी भारतीय शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था पर तत्काल प्रभाव डाल रही है। लेकिन यह भारत के लिए अपनी आर्थिक नीतियों को और सुदृढ़ करने और विविध निवेश साझेदारी विकसित करने का भी समय है।

निवेशकों के लिए यह समय सतर्कता और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने का है। वहीं, भारत को अपने घरेलू बाजारों को सशक्त बनाने और वैश्विक बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

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