भारत-अमेरिका के बीच बढ़ती दूरी: गहराई से विश्लेषण
भारत और अमेरिका के संबंध लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चर्चा का विषय रहे हैं। इन दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच संबंधों ने कई मोड़ लिए हैं, लेकिन हाल के समय में इन रिश्तों में खटास के संकेत मिल रहे हैं। क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में बदलाव, व्यापारिक विवाद, और कूटनीतिक प्राथमिकताओं के चलते भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती दूरी एक गंभीर चुनौती बन गई है। यह संपादकीय इस मुद्दे को गहराई से समझने और समाधान की दिशा में प्रकाश डालने का प्रयास करेगा।
1. भारत-अमेरिका संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से बदलते रहे हैं।
- शीत युद्ध काल:
शीत युद्ध के दौरान भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया, जबकि अमेरिका ने पश्चिमी गुट का समर्थन किया। भारत का झुकाव सोवियत संघ की ओर था, जिससे दोनों देशों के बीच दूरी बनी रही। - 1990 के दशक:
सोवियत संघ के पतन के बाद, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बनाया और अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए। - 21वीं सदी:
2005 के ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु समझौते ने इन संबंधों को नई ऊंचाई दी। इसके बाद आतंकवाद, व्यापार, और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ा।
हालांकि, हाल के समय में ये संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं, और इनकी जड़ें कई राजनीतिक, आर्थिक, और कूटनीतिक मुद्दों में हैं।
2. मौजूदा तनाव के कारण
(क) रूस-यूक्रेन युद्ध पर मतभेद
- रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने तटस्थ रुख अपनाया और रूस से तेल आयात जारी रखा।
- अमेरिका ने इसे "भारत का रूस के साथ झुकाव" बताया, जबकि भारत ने इसे अपनी ऊर्जा सुरक्षा की जरूरत बताया।
- इस मुद्दे ने दोनों देशों के बीच अविश्वास की भावना को बढ़ाया।
(ख) व्यापारिक विवाद और संरक्षणवादी नीतियां
- भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक असंतुलन बड़ा मुद्दा है।
- अमेरिका ने भारत पर H1-B वीजा प्रतिबंध, तकनीकी कंपनियों के खिलाफ डेटा सुरक्षा कानूनों, और उच्च आयात शुल्क का आरोप लगाया।
- दूसरी ओर, भारत ने अमेरिकी संरक्षणवादी नीतियों और कृषि व टेक्सटाइल उत्पादों पर लगाए गए प्रतिबंधों की आलोचना की।
(ग) मानवाधिकार और अल्पसंख्यक मुद्दों पर आलोचना
- अमेरिका ने भारत की कश्मीर नीति, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दों पर टिप्पणी की।
- भारत ने इसे अपनी संप्रभुता पर हस्तक्षेप बताया और इसे खारिज कर दिया।
(घ) दक्षिण एशिया में अमेरिकी हस्तक्षेप
- अमेरिका ने बांग्लादेश में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश की, जिसे भारत ने अपनी क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा माना।
- दक्षिण एशिया में अमेरिकी 'Divide and Rule' रणनीति ने भारत के लिए चुनौती खड़ी की है, खासकर जब यह पाकिस्तान और कट्टरपंथी ताकतों का समर्थन करता है।
(ङ) हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्राथमिकताओं का टकराव
- चीन के बढ़ते प्रभुत्व को रोकने के लिए भारत और अमेरिका ने क्वाड (Quad) जैसे मंचों पर सहयोग किया।
- लेकिन, अमेरिका की प्राथमिकताएं अक्सर अपने हितों तक सीमित रहती हैं, जो भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के साथ मेल नहीं खातीं।
3. बढ़ती दूरी के प्रभाव
(क) क्षेत्रीय स्थिरता पर असर
- भारत और अमेरिका के बीच तनाव से दक्षिण एशिया में अस्थिरता बढ़ सकती है।
- चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी कमजोर होने से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन बिगड़ सकता है।
(ख) आर्थिक संबंधों पर असर
- 2023 में भारत-अमेरिका व्यापार $191 बिलियन तक पहुंचा, लेकिन बढ़ते तनाव से यह धीमी गति पकड़ सकता है।
- भारतीय आईटी उद्योग और अमेरिका के तकनीकी क्षेत्र में सहयोग प्रभावित हो सकता है।
(ग) वैश्विक कूटनीति पर प्रभाव
- भारत को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए रूस, चीन, और यूरोपीय संघ जैसे अन्य साझेदारों की ओर झुकना पड़ सकता है।
- अमेरिका के लिए दक्षिण एशिया में एक स्थिर सहयोगी का अभाव उसकी रणनीति को कमजोर कर सकता है।
4. समाधान की दिशा
(क) पारस्परिक सम्मान और संवाद
- दोनों देशों को एक-दूसरे की प्राथमिकताओं और संवेदनाओं का सम्मान करना होगा।
- उच्च-स्तरीय वार्ता और नियमित संवाद से गलतफहमियों को कम किया जा सकता है।
(ख) स्वतंत्र विदेश नीति का सम्मान
- अमेरिका को भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को स्वीकारते हुए, सहमति के नए रास्ते तलाशने चाहिए।
(ग) व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा
- व्यापारिक असंतुलन और नीतिगत बाधाओं को दूर करने के लिए समझौते किए जा सकते हैं।
- डेटा सुरक्षा और तकनीकी सहयोग पर समान दृष्टिकोण विकसित करना होगा।
(घ) क्षेत्रीय स्थिरता के लिए साझेदारी
- दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए भारत और अमेरिका को मिलकर काम करना होगा।
- कट्टरपंथी ताकतों और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को मजबूत करना जरूरी है।
5. निष्कर्ष
भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती दूरी दोनों देशों के हित में नहीं है। ये दो बड़े लोकतांत्रिक देश न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और अमेरिका के रणनीतिक हितों के बीच संतुलन बनाना समय की मांग है।
- यदि दोनों देश संवाद और सहयोग के माध्यम से अपने मतभेदों को सुलझाते हैं, तो यह साझेदारी 21वीं सदी के सबसे मजबूत और प्रभावी द्विपक्षीय संबंधों में से एक बन सकती है।
भारत और अमेरिका को यह समझना होगा कि उनके संबंध न केवल उनके अपने भविष्य के लिए, बल्कि वैश्विक राजनीति के संतुलन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
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